और फिर इसी तरह दिन बीतते चले गए..........पर बालू के संघर्षों और परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए अशोक का मन भी अब पढ़ाई में नहीं लगता है......l
अपने पिता बालू को इस तरह से संघर्ष करता देख कर अशोक का मन अब स्कूल जाने के बजाय अर्थिक तौर पर बालू की मदद करने को कर रहा था इसलिये उसने अंततः एक निर्णय लिया जिससे उसकी सफलता की कहानी का सृजन हुआ.....l
अम्मा अब हम स्कूल नहीं जाएंगे.......अब हमारा पढ़ने लिखने का मन नहीं करता.......और वैसे भी अब तक हम बहुत पढ़ चुके.......मात्र 15 वर्ष की उम्र में ही यथार्थता से परिचित हो चुके अशोक ने अपने दिल की बात छुपाते हुए अपनी मां नैया से कहा........l
काहे नहीं जायगा तू स्कूल......अचानक का हो गया तुमका......स्कूल में कौनो तुमका कुछ कहा का.....का बात हो गई........घबराते हुए नैया अशोक से पूछती है......l
नहीं अम्मा हमे किसी ने कुछ नहीं कहा.....और वैसे भी अब हम इतना तो पढ़ ही लिए है कि हमारा गुजर बसर हो जाए......बस इसलिये अब हम कुछ काम करना चाहते हैं......इतना कहकर अशोक घर के कुछ जरूरी सामान लाने के लिये बाजार की ओर निकल गया......l
तो वही दूसरी ओर नैया भी अशोक की आँखों में अपने पिता लिए छुपी हुई मदद की भावना को आसानी से समझ चुकी थी....... जिस पर उसे अशोक के स्कूल छोड़ देने का दुःख तो हुआ ही पर बालू के लिए अशोक का प्यार देखकर उसे हल्की खुशी भी महसूस हुई...l
नैया जरा मुझे पानी दे दे मेरा गला सुख रहा है......रात में दिहाड़ी से लौटा बालू नैया को पुकारते हुए कहता है.........जिस पर नैया पानी लेकर आती है.....l
अशोक कहां हैं कहीं दिखाई नहीं दे रहा.....कहीं बाहर गया है क्या........पानी पीते हुए बालू नैया से पूछता है.....l
उ तो सामान लाने बाजार गया है......पर आजकल उ बहुतै उदास उदास सा लागत है......और आज तो उ कह रहा था कि अब उ स्कूल नहीं जायगा......काहे की अब उका पढ़ने लिखने में मन नहीं लगता......उ अब कौनो काम करना चाहत है.......बेज़ान से शब्दों में नैया ने बालू को अशोक के दिल की सारी बाते कह दी........जिसे सुनकर बालू भी कुछ परेशान सा हो गया और फिर बेसब्री से अशोक के लौटने का इंतजार करने लगा......इतने में अशोक भी सामान लेकर घर लौट आया....और आकर अपने पिता के पास बैठ गया.......l
क्या हुआ बेटा तुम स्कूल क्यों नहीं जाना चाहते........
तुम तो पढ़ने लिखने में बहुत होशियार भी हो .....फिर
क्यों नहीं जाना चाहते तुम स्कूल....अचानक एसी कौन सी बात हो गई जो तुम अपने पिता से छुपा रहे हो....l
बड़ी ही मार्मिकता से बालू अपने पुत्र अशोक से पूछता है......जिस पर बहुत कोशिशों के बावजूद अशोक खुद को सम्भाल न सका और फूट फूट कर रोते हुए अपने पिता के सीने से लग जाता है....बाबुजी अब हम तुम्हें इस तरह से परेशान होते नहीं देख सकते....कल जब अपनी दिहाड़ी मांगने पर मालिक तुम्हें बुरा भला कह रहा था तो मुझे बहुत दुख हुआ कि मेरे कारण आप कितने दर्द झेलते चले आ रहे हो और कभी तुम्हारे माथे पर हल्की सी शिकन तक न आयी....बस अब मैं चाहे जितनी भी कोशिश कर लू पर अब मेरा पढ़ाई में मन लगना असंभव है इसलिए व्यर्थ स्कूल जाने से बेहतर होगा कि मैं अब कुछ काम करू...... पिता की सहमति की उम्मीद लिए अशोक बालू से कहता है....l
देखो बेटा अभी तुम्हारी उम्र इन बेवजह की बातों पर ध्यान देने की नहीं है............... तुम्हें स्कूल जाना ही होगा...... तुम पढ़ लिख लोगे तो तुम्हें इस तरह का जीवन नहीं जीना पड़ेगा......इसलिये तुम स्कूल जाओ और पढ़ने लिखने पर ध्यान दो......जाओ जा कर सो जाओ और अब बिना कोई बहाना किए सुबह स्कूल चले जाना.....ऊंचे स्वर में डांटते हुए बालू अशोक से स्पष्ट कह देता है....l
असमंजस में पड़ गया था वो
जाने कैसी अजब घड़ी थी
टकराना पड़ेगा जिससे उसे
चट्टान उसके समक्ष खड़ी थी