देखते ही देखते पूरे तीन महीने बीत गए अशोक की पढ़ाई भी अच्छी चल रही थी और वो रोज खुशी खुशी स्कूल जाता था उसे स्कूल जाना बहुत पसंद था..l
नए नए दोस्तों से मिलना उनसे बाते करना भी अशोक को बहुत ही पसंद था और पढ़ाई लिखाई में भी उसे बहुत रुचि थी....l
का हुआ बहुत निराश लागत हो.........ठंड की धूप में झोपड़ी बाहर बैठे बालू से नैया पूछती हैं l
हाँ नैया......तीन महीने पूरे हो चुके हैं.......अब अगले तीन महीनों की स्कूल की फीस भी भरना है....और कोई काम भी नहीं मिल रहा.....कब तक मैं यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठा रहूँ.......पैसों का इंतजाम कैसे होगा.....बड़े ही निराश शब्दों में बालू नैया से बोला l
तुम कहो तो हम अपनी अम्मा से कुछ पैसे माँग ले.....जब तुमका कौनो काम मिल जायगा तब उका लौटाए देंगे कुछ दिन में.....नैया अशोक से पूछती हैं l
नहीं रे नैया हम उनसे पैसे नहीं ले सकते हमे ही कुछ इंतजाम करना होगा..... हम आज अशोक को लेने स्कूल जाएंगे और मास्टर से बात कर के कुछ दिनों की मोहलत मांग लेंगे.....और फिर कुछ न कुछ इंतजाम हो ही जायगा.....पता नहीं हमारे बच्चे की किस्मत में आगे क्या लिखा है....अब तो हम राम भरोसे ही खुद को छोड़ दिए हैं.....वो जो करे वो ही ठीक.....l
और फिर बातों ही बातों में स्कूल की छुट्टी का वक़्त हो जाता है और बालू अशोक को लाने के लिये निकल जाता है फिर वहां पहुंच कर प्रधानाचार्य के कार्यालय में जाकर उनसे बात करता है....l
मालिक में अशोक का पिता हूं.......आज मुझे उसकी तीन महीनों की फीस भरनी थी किन्तु बहुत कोशिशों के बाद भी पैसों का इंतजाम नहीं हो सका इसलिये मुझे कुछ वक़्त और दे देते तो आपकी बड़ी मेहरबानी होती...... बालू प्रधानाचार्य के पैरों को पकड़ कर उससे विनती करता है....l
अच्छा तो आप है अशोक के पिता......बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर......देखिए अशोक हमारे स्कूल का सबसे होनहार बच्चा है....इस बात में कोई शक नहीं है.......और यदि कुछ आर्थिक परेशानियों के कारण यदि आप उसकी फीस अभी न भी भर सके तो कोई बात नहीं....किन्तु एक महीने के अंदर आप फीस का इंतजाम कर ले तो बेहतर होगा क्योंकि एक महीने तक तो मैं इस बात को छुपा सकता हूं पर माह के अंत में हमे भी स्कूल के संचालक को हिसाब किताब देना होता है इसलिए में मजबूर हूं अन्यथा मेरा बश चले तो अशोक जैसे बच्चों की तो मैं फीस ही न लू ......क्योंकि एसे नायाब हीरे सदियों में एक बार ही जन्म लेते हैं.......अशोक की तारीफ में प्रधानाचार्य बालू से कहते है l
और तारीफ करे भी क्यों न....अशोक था ही तारीफ के काबिल.....अपनी बुद्धिमत्ता से वो सभी शिक्षकों का चहेता बन चुका था l
प्रधानाचार्य की बाते सुनकर बालू का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था और उसके दिल में खुशियो की लहर उठ चुकी थी अब तो वो बेसब्र होकर छुट्टी की घंटी बजने का इंतजार कर रहा था ताकि अपने पुत्र को सीने से लगा ले...l
और फिर छुट्टी की घंटी बजते ही बालू का इंतजार भी खत्म होता है और अशोक के बाहर निकालते ही बालू उसे गोद में उठा लेता है...l
बाबुजी आज अम्मा क्यों नहीं आयी हमको लेने......
अशोक बड़ी ही जिज्ञासा के साथ बालू से पूछता है...l
क्योंकि आज हम तुमको घुमाने के लिए ले जाएंगे....चलो तुम्हें चॉकलेट दिलाते हैं....फिर घर पर चल कर लुका छिपी खेलेंगे...... बालू को अशोक पर बेहद प्यार आ रहा था...l
खुशियो भरा पल बीता जा रहा था
वक़्त इम्तिहान का करीब आ रहा था
आगे क्या था होना वो नहीं जानता था
वो तो बस आज में ही जीता जा रहा था
अशोक की तारीफ सुनकर कुछ समय के लिए अपनी सारी चिंताएं और तकलीफें भूलकर बालू खुशी से फूला नहीं समा रहा था...पर एक माह के अंदर तीन माह की फीस का इंतजाम करना ही उसके लिए एक इम्तिहान था......जिसमें उसे किसी भी हालत में सफलता प्राप्त करनी ही थी...l