इसी तरह दिन बीतते चले गए...... और जी तोड़ मेहनत करता हुआ बालू भी अशोक की पढ़ाई में किसी भी प्रकार की कोई रुकावट नहीं आने देना चाहता था...... परिस्थितियों से लड़ते हुए बालू खुद को पूरी तरह से भूल चुका था......अब उसे याद था तो केवल यह कि अशोक की फीस के लिए पैसों का इंतजाम किस तरह से करना है .......l
खुद को पूरी तरह से झोंक देने के बावजूद 4 साल बाद एक समय एसा आया कि बालू से फीस के लिए पैसों का इंतजाम न हो सका और अशोक को स्कूल से निकाल दिया गया....l
इस वाकिये पर मैं पुनः आपका ध्यान कहानी की शुरुआत की ओर आकर्षित करना चाहूँगा कि यदि स्कूल का संचालक चाहता तो अशोक जैसे होनहार विद्यार्थी के स्कूल की फीस में कुछ रियायत की जा सकती थी परन्तु अपने स्वार्थ के वशीभूत उस संचालक द्वारा अशोक की पढ़ाई खत्म करवा कर उस हीरे को पुनः कोयले में तबदील करने की कोशिश की गई....l
अब एसे जी कर भी क्या फायदा की हम अपने बच्चे को पढ़ा तक न सके.....हमारा तो जान देने का मन कर रहा है......अपनी आँखों से झरने की भांति आंसू बहाते हुए बालू नैया से कहता है.....l
अरे तुम निराश काहे होत हो......और फिर तुम्हरे जान देवे से अशोक की फीस भर जाएगी का....तुम ऐसन फालतू बात न बोला करो......जिससे हमरे दिल को ठेस पहुचे.....बालू की आँखों से आंसुओ को पोछते हुए नैया उसे समझाती है......l
नैया....तुम अशोक को लेकर कुछ दिनों के लिए मायके चली जाओ... और हाँ..अशोक को इस बात का पता न लगने देना की उसकी फीस न भरने के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया है....नहीं तो उस मासूम बच्चे के दिल को ठेस पहुंचेगी......तुम उससे कह देना की स्कूल की एक महीने की छुट्टी लग गई है....इसलिये तुम उसे नानी के यहां घुमाने ले जा रही हो.....और तब तक में मैं कहीं न कहीं से पैसों का इंतजाम कर उसकी फीस भर ही दूंगा.....बड़े ही निराश शब्दों में बालू नैया से विनती करता है....l
हाँ तुम ठीक ही कहत हो.....हम अशोक को लेकर कुछ दिनों के लिए अपने मायके चली जात हूं...उके बाद जब पैसों का इंतजाम हो जावे तो तुम उकी फीस भर के हमका लिवा लाना.......बालू की बातों पर सहमति व्यक्त करते हुए नैया बालू से कहती हैं....l
समेट कर मुश्किलों को खुद तक
बेशक आंच न पुत्र पर आने दी
एक पिता का कटु सत्य है ये बन्दे
झूठी कहावत नहीं है ये ज़माने की
अब जहां एक ओर बालू पैसों के इंतजाम को लेकर चिंतित था तो वही दूसरी ओर उसे इस बात की चिंता भी सता रही थी कि कहीं अशोक को इस बात की भनक न लग जाये कि स्कूल की फीस न भरने के कारण उसे स्कूल से निकाल दिया गया है....इसलिये उसने कुछ दिनों के लिए अशोक को ननिहाल भेजकर फीस का इंतजाम करने का निर्णय लिया.....किन्तु ये भी शास्वत सत्य है कि अशोक के बिना एक पल भी उसका मन नहीं लगेगा और वो बिलकुल अकेला हो जायगा....पर नियति को कौन बदल सकता है.....l
अशोक...... बेटा कहां हो तुम.....यहां आओ जल्दी....तुम्हें कुछ बताना है....जिस पर अशोक भागता हुआ पिता के पास आकर उनकी गोद में बैठ जाता है......और फिर बड़े ही मनमोहक शब्दों में वो पिता से पूछता है.....क्या बताना है पिताजी....l
बेटा तुम्हें पता है तुम्हारे टीचर आए थे.... और उन्होंने बताया कि कुछ दिनों तक तुम्हारे स्कूल की छुट्टी लग गई है.... इसलिए तुम तैयार हो जाओ हम तुम्हें तुम्हारी नानी के घर घुमाने ले जाएंगे दिल पर पत्थर रखकर बालू अपने मासूम पुत्र से झूठ कहता है....l
सच मे स्कूल की छुट्टी है पिताजी....अच्छा तो ठीक है हम अपनी किताबें भी रख लेते हैं बैग में....हम नानी के यहां ही अपना होमवर्क कर लेंगे......बड़ी ही मासूमियत के साथ अशोक अपने पिता बालू से कहता है...l
बालू चाहकर भी अपने आंसुओ को बहने से न रोक सका.....और दूर जाकर फुट फुट कर रोने लगा.....l
फिर कुछ देर बाद बालू नैया और अशोक दोनों को नैया के मायके छोड़ कर वापस लौट आता है........l