रात को लगभग 8:00 बजे बालू दिहाड़ी से वापस लौटता है और उसके इंतजार में बेसब्र नैया झटपट उसे पानी देते हुए कहती है कि... ई कौनो वक़्त है तुम्हारे लौटन का......l
अरे नैया आज छत कि लकड़ी बाँधकर आए हैं इसलिए देर हो गई.....चिन्ता तो हमे इस बात की है कि दो चार दिन में जब यहां का काम पूरा हो जायगा तब हमे कहां काम मिलेगा ....जब तक छत कि लकड़ी न खुलेंगी तब तक तो यहां का काम रुक ही जायगा....l
अरे तुम चिंता काहें करत हो मिल जायगा काम तुमका चलो खाना खाई लो.....l
अशोक दिखाई नहीं दे रहा है...सो गया क्या....खाना खाते हुए बालू नैया से पूछता है.....l
अभी तो उ सो रहा है पर सुबह जब छोटे छोटे बच्चन को स्कूल जाते देखत है तो उ भी स्कूल जाइ का कहत है.....अब हम उका स्कूल जरूर भेजेंगे चाहे हमका भी तुम्हरे साथ मजदूरी ही काहे न करनी पड़े........ नैया बड़े ही करुण शब्दों में बालू से कहती हैं.....l
ठीक है तू कहती है तो दो तीन दिन में यहां का काम खत्म हो जाने पर हम उसे स्कूल जरूर भेजेंगे अब तू चिंता न कर....तू भी खाना खा ले और सो जा......l
और फिर बालू की बात सुनकर नैया के निराश दिल में फिर से एक आस जग उठती है और वो बेहद खुश हो जाती है....l
अगले दिन बालू जब दिहाड़ी पर गया तो नैया की बातें उसके दिमाग में चल रही थी और उसने तय कर लिया था कि आज मालिक से हमारी 10 रोज की दिहाड़ी ले लेंगे और फिर अशोक को स्कूल जरूर भेजेंगे l
फिर जब बालू मालिक को आता देखता है तो सर पर रखी गिट्टी की तगाड़ी को नीचे रख कर मालिक के पास जाता है.......l
मालिक हमारी 10 रोज दिहाड़ी मिल जाती तो आप की बहुत कृपा हो जाती हम अपने बच्चे को स्कूल भेजना चाहते है........ अपने दोनों हाथों को जोड़कर बालू मालिक से कहता है l
अरे क्या करोगे उसे स्कूल भेजकर पढ़ लिख लेगा तो बड़ा होकर उसे मजदूरी करने में भी शर्म आएगी......
और वैसे भी उसकी पढ़ाई लिखाई में बहुत खर्च होगा इससे तो बेहतर होगा कि तुम उसे अपने साथ यहां लाया करो यहां के काम सीखेगा तो तुम्हारा हाथ बटा दिया करेगा....स्कूल जाकर वो क्या करेगा..........और वैसे भी मैं तुम्हारी 10 दिन की दिहाड़ी में अभी नहीं दे सकता क्योंकि कल छत डालने के बाद लकड़ी खुलने तक तुम अगर कहीं और चले गए तो.....इसलिये तुम्हारी 10 दिन की दिहाड़ी तुम्हें छत कि लकड़ियां खुलने के बाद जब तुम यहां दिहाड़ी करोगे तब ही मिलेगी..........बड़े ही निर्दयता के साथ मालिक बालू से कहता है l
परिस्थितियों का मारा बेचारा बालू मालिक की बातें सुनकर स्तब्ध सा रह गया और फिर अपने दिल पर पत्थर रखकर वो फिर से अपने काम मे लग गया l
शब्दों से अपने वो निर्दयी
एक भोले दिल को चीर गया
आशा की राहों पर जालिम
खींच वो एक लकीर गया
दिन ढलने के बाद जब सभी मजदूर अपने अपने घर जाने के लिए निकल रहे थे तभी अचानक उनकी नजर गिट्टी के ढेर के ऊपर बैठ कर रोते हुए बालू पर जाती हैं
और फिर वो सभी जाकर बालू को समझाते है कि मालिक की बातों को दिल पर न ले धीरे धीरे सब ठीक हो जायगा तुम्हारा बच्चा स्कूल जरूर जायगा मालिक कौन होता है ये तय करने वाला और फिर सभी के समझाने पर अपनी बेबसी पर रोता हुआ बालू जब घर जाने के लिए निकला तो उसे समझ नहीं आ रहा था कि घर जाकर वो क्या मुंह दिखाएगा.... मालिक की
बातें उसके कोमल दिल पर एक साँप की भांति लोट लगा रही थी......किन्तु परिस्थितियों पर किसका जोर चलता है यही सोचकर वो बेचारा अपने दिल को समझाता हुआ घर की ओर चल देता है........l