अपने आंखों से बहते आंसुओ को छुपाकर बालू घर पहुंच गया और फिर नैया को पुकारने लगा....l
इतने में नैया बालू के पास आकर पानी पिलाती है l
नैया आज मै बहुत थक गया हूं और मुझे भूख भी नहीं है में सोने जा रहा हूं......तू भी खाना खा कर सो जा...l
बड़ी ही मुश्किल से अपने आंसुओ पर काबू कर बालू नैया से कहता है l
का बात है......बड़े परेशान लागत हो.......मालिक कछु बोला का तुमका.....बताओ ना.....बालू को उदास देख नैया उससे पूछती है l
नही रे नैया आज हम बहुत थक गए है इसलिए भूख नहीं है मालिक हमको कुछ नही बोला.......अब तू भी खाना खा ले और सो जा.....अपने चेहरे पर एक बनावटी हसीं के साथ बालू नैया से बोला l
कुछ तो बात जरूर है जो तुम हमका बताना नाही चाहत हो......बताओ न का हुआ.....l
इतने में काफी देर से खुद को सम्भाल कर रखे हुए बालू ने फूट फूट कर रोते हुए नैया को सारी बाते बता दी......l
अरे तुम रो काहे रहे हो.......मालिक ने आज पैसा देने से मना किया तो का हुआ....कुछ दिन बाद तो दे ही देगा....और फिर उ होता कौन है हमको बताने वाला की हमरा बच्चा स्कूल जायगा की नहीं..... चलो अब तुम रोना बंद करो.....और कुछ खाई लो......नैया बालू के लिये खाना लेकर आती हैं l
सरकारी स्कूल बालू के घर से काफी दूर था इसलिये वो बेचारा पास ही के एक प्राइवेट स्कूल में अशोक को भेजना चाहता था जहाँ से नैया उसे छोड़ना और लाना कर लेती पर उसकी फीस बहुत थी इसलिए वो स्कूल की फीस और किताबों आदि के खर्च के बारे में सोच कर परेशान था l
खैर फिलहाल तो वो प्रतिकूल परिस्थितियों के आगोश में कुछ इस तरह से डूब गया था कि उसे ये सब असंभव नज़र आ रहा था l
फिर सुबह की एक नई किरण के साथ बालू बीते दिन की सारी बाते भूलकर खुद को समझा लेता है कि कोई बात नहीं कुछ दिन और सही ......l
अशोक भी आज सुबह जल्दी उठकर अपने पिता के पास जाकर उनसे लिपट गया और फिर अपने खेल में लग गया......l
बालू एकटक उसे निहारते हुए अपने मालिक की कहीं बातों को याद कर रहा था कि इस फूल से बच्चे को लेकर में दिहाड़ी पर जाऊँ और इसे मजदूर बनाऊं....हट.....पागल है मालिक वो अपने बच्चे को स्कूल भेज सकता है तो क्या हमे ये अधिकार नहीं है l
और फिर इन्हीं सब सोच विचार में काफी वक़्त गुजर गया और बालू तैयार होकर दिहाड़ी पर निकल गया.....इधर नैया भी अपने दैनिक कार्यों में लग गई और अशोक भी मोहल्ले के बच्चों के साथ खेल कूद में लगा हुआ था l
अशोक जो कि अभी मात्र 5 वर्ष का छोटा सा बालक था उसमे कुछ तो बात थी जो उसे मोहल्ले के बाकी बच्चों से अलग बनाती थी.......l
बच्चों के इस टोली में मोहल्ले के लगभग 15 से 20 बच्चे थे और उनमे से भी 4-5 तो लगभग 10 वर्ष की उम्र के थे बावजूद इसके किसी भी खेल में अशोक ही इनका प्रतिनिधित्व करता था कि कब, कैसे और क्या खेलना है बाकी सभी बच्चे बस अशोक का अनुसरण ही किया करते थे....l
ज्ञान किताबों का न था, फिर भी
मुख्तियार, वो बन बैठा बस्ती का
अभिमान भी न था खुद पर उसको
खेवैया था वो, हर एक कश्ती का
और वे सभी अशोक का अनुसरण इसलिए करते थे कि खेल खेल में जब भी कोई मुश्किल काम आता तो अशोक सबसे पहले आगे आता था l
बेशक इतनी छोटी सी उम्र में ही प्रतिनिधित्व करने के इस गुण ने ही इस बच्चे को लोकनायक बनाने में अहम योगदान दिया था l
एक दिन की बात है खेल खेल में दो बच्चे आपस में लड़ रहे थे कि तभी अशोक उनके पास जाकर उन दोनों को समझाता है..... कि यदि तुम इस तरह से झगड़ा करोगे तो तुम्हारे मां बाबुजी तुम्हें खेलने के लिए भी नहीं आने देंगे.......और तुम्हें घर में ही बंद कर देंगे और फिर अशोक की बात सुनकर उन दोनों ने झगड़ना
बंद कर दिया.....ये सारी बाते उनके पास ही बैठा एक बुजुर्ग व्यक्ति भी देख रहा था l
फिर उस बुजुर्ग ने अशोक को बुलाकर उससे पूछा कि जब वो दोनों लड़ रहे थे तो कितना मजा आ रहा था हम सब देखना चाह रहे थे कि कौन जीतेगा पर तुमने उनका झगड़ा क्यों खत्म करवाया.....एक बचकाने जवाब के इंतजार में बुजुर्ग ने अशोक से कहा...l
बाबा अगर उन दोनों को लड़ते हुए कोई देख लेता तो हमारा खेल ही बंद हो जाता इसलिए मैंने उन्हें रोका था......बड़े ही भोलेपन के साथ अशोक ने उस बुजुर्ग से कहा...l
इतने में उस बुजुर्ग के मुख से सहसा एक बात निकल ही गई कि........बेटा तुम बड़े होकर आसमान से भी बड़े बन जाओगे कोई तुम्हारे बराबर बड़ा नहीं होगा l
सच मे बाबा........जिज्ञासा के साथ अशोक बुजुर्ग से पूछता है l
हाँ सच मे.....अब तुम लोग घर जाओ शाम होने को है नहीं तो अंधेरा हो जायगा......और फिर सभी बच्चे अपने अपने घर लौट गए.....l