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ओरत

17 दिसम्बर 2021

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             "ओरत"

किलो सोने की मालकिन हे वो पर
उस सोने का दाम लगा ले ये हक नही हे ओरत को

गुणी,संस्कारी,समझदार,शालीन ये पहचान हे उसकी पर रसोई से बहार उसे कोई पहचान ले ये हक नही हे ओरत को

बराबरी का ढिन्ढोरा पीटा हे ,चुनाओ मे बराबरी की सीट हे उसकी पर विजय होने पर कुर्सी का सम्मान नही हे ओरत को

पढी लिखी महनत की आज सरकारी नौकरी लगी हे पर पद की प्रथिस्ठा मे आराम नही हे ओरत को

घर सम्भाले बच्चे पाले पूरी जीन्दगी न्योछावर हे उसकी पर उसके मन की एक मर्जी की भी आज्ञा नही हे ओरत को

हा अभी भी बराबर चलने का हक नही हे ओरत को
हाँ अभी भी पराये शब्द से मुक्ति नही हे ओरत को

✍मनिषा राठोड़ ✍


Ritu shaktawat

Ritu shaktawat

अति सुंदर 👌👌

18 दिसम्बर 2021

Manisha

Manisha

18 दिसम्बर 2021

Thank you

Papiya

Papiya

मैंने अभी आपकी किताब खरीद कर इसके दो पृष्ठ पढ़े बहुत ही शानदार है जो कोई भी इस किताब को पढ़ेगा अवश्य ही उसे अच्छी लगेगी।

18 दिसम्बर 2021

Manisha

Manisha

18 दिसम्बर 2021

Thank you so much

Papiya

Papiya

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👏🏼👏🏼👏🏼

18 दिसम्बर 2021

Manisha

Manisha

18 दिसम्बर 2021

Thank you

काव्या सोनी

काव्या सोनी

Behtreen rachna 👏👏👏👏

17 दिसम्बर 2021

Manisha

Manisha

17 दिसम्बर 2021

बहुत शुक्रिया

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रचनाएँ
ओरत
5.0
All about the woman's struggle, lifestyle,sacrifices and care
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ओरत

17 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"> "<b>ओरत</b>"</p> <p d

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बस एक दिन के लिये तुम भी औरत बनके तो देखो।

18 दिसम्बर 2021
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<div align="left"><p dir="ltr"><i><b>This poetry is based on the pain of a women's day to day

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क्योकी बेटी हू मे !

26 दिसम्बर 2021
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<div align="center"><p dir="ltr"><b>दुध मे घोलकर </b><br> <b>संस्कार पिला दिये</b></p> <p dir="ltr">

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हाँ मे डरती हू।

20 जनवरी 2022
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हाँ डरती हू अन्धेरे से अकेले बहार निकलने से रात को लेट हो जाने से हा डरती हू ओरत होने से ऐसा नहि हे कमजोर हू मे बस समाज के हर पहेलू से वाकिफ हू मे जानती हू गीदड़ अन्धेरे मे निकलते हे ओरत हू मे इस लि

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घूंघट

3 फरवरी 2022
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घूंघट जो मजबूरी था कभी क्यो आज परम्परा बन गया घूंघट जो हथियार था कभी क्यो आज प्रथा बन गया जो सूरज की तपन मे सर को ढका था क्यो छांव मे भी सर का बोझ बन गया शर्म जब आंखो की हे तो क्यो घूंघट लाज का

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"कभी तो खुद से इश्क कर ले"

8 मार्च 2022
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कभी तो खुद से इश्क कर ले थोड़ा खुद को भी आजाद कर ले ओरो के लिये तो हर पल हे कभी खुद के लिये भी श्रृंगार कर ले तुने तो अपनी हर कोर दे दी कभी खुद के जज्बातो का भी हिसाब कर ले ओरत हे तो क्यो झुक गई कभी

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