"ओरत"
किलो सोने की मालकिन हे वो पर
उस सोने का दाम लगा ले ये हक नही हे ओरत को
गुणी,संस्कारी,समझदार,शालीन ये पहचान हे उसकी पर रसोई से बहार उसे कोई पहचान ले ये हक नही हे ओरत को
बराबरी का ढिन्ढोरा पीटा हे ,चुनाओ मे बराबरी की सीट हे उसकी पर विजय होने पर कुर्सी का सम्मान नही हे ओरत को
पढी लिखी महनत की आज सरकारी नौकरी लगी हे पर पद की प्रथिस्ठा मे आराम नही हे ओरत को
घर सम्भाले बच्चे पाले पूरी जीन्दगी न्योछावर हे उसकी पर उसके मन की एक मर्जी की भी आज्ञा नही हे ओरत को
हा अभी भी बराबर चलने का हक नही हे ओरत को
हाँ अभी भी पराये शब्द से मुक्ति नही हे ओरत को
✍मनिषा राठोड़ ✍