18 दिसम्बर 2021
5 फ़ॉलोअर्स
A story teller D
शानदार
आपका शुक्रिया,,,,,,रेरिंग्स भी दे दुजिएगा क्रपया
<div align="left"><p dir="ltr"> "<b>ओरत</b>"</p> <p d
<div align="left"><p dir="ltr"><i><b>This poetry is based on the pain of a women's day to day
<div align="center"><p dir="ltr"><b>दुध मे घोलकर </b><br> <b>संस्कार पिला दिये</b></p> <p dir="ltr">
हाँ डरती हू अन्धेरे से अकेले बहार निकलने से रात को लेट हो जाने से हा डरती हू ओरत होने से ऐसा नहि हे कमजोर हू मे बस समाज के हर पहेलू से वाकिफ हू मे जानती हू गीदड़ अन्धेरे मे निकलते हे ओरत हू मे इस लि
घूंघट जो मजबूरी था कभी क्यो आज परम्परा बन गया घूंघट जो हथियार था कभी क्यो आज प्रथा बन गया जो सूरज की तपन मे सर को ढका था क्यो छांव मे भी सर का बोझ बन गया शर्म जब आंखो की हे तो क्यो घूंघट लाज का
कभी तो खुद से इश्क कर ले थोड़ा खुद को भी आजाद कर ले ओरो के लिये तो हर पल हे कभी खुद के लिये भी श्रृंगार कर ले तुने तो अपनी हर कोर दे दी कभी खुद के जज्बातो का भी हिसाब कर ले ओरत हे तो क्यो झुक गई कभी