शब्द.इन की पेड पुस्तक लेखन प्रतियोगिता (फरवरी- मार्च २०२२) विजेता बनने पर कई परिचित मुझसे एक ही सवाल पूछते हैं कि पुरस्कार में कितनी राशि मिली है। उनके लिए प्रतियोगिता का मतलब पुरस्कार में अच्छी-खासी राशि जीतना भर होता है। मेरे कहने पर कि यह तो शब्द.इन के स्टैण्डर्ड पैकेज के तहत पुस्तक प्रकाशन के लिए प्रतियोगिता थी, जिसके बाद वे पुस्तक का प्रकाशन करेंगे। इस पर वे मुँह बिचकाकर कहते कि मतलब कोई पैसा नहीं मिलेगा? मैं उन्हें समझाती हूँ कि पुरस्कार तो पुरस्कार है, क्या पुस्तक का प्रकाशन कम बात है, तो कुछ तो समझ जाते हैं लेकिन कुछ बस पैसे पर आकर अटक कर रह जाते हैं। कहने लगते हैं कि जब पैसा नहीं मिलना तो फिर काहे को इतनी कलम घिसाई की माथा-पची करना? अब ऐसे लोगों के आगे हाथ जोड़कर अपने काम में लग जाना ही मैं उचित समझती हूँ। मैंने देखा है कि कई लोग केवल पैसे की भाषा समझते हैं। भले ही वे दिन-रात समय को बर्बाद करने के अलावा कोई काम नहीं करते हों, लेकिन वे मानते हैं कि बिना पैसे के लिए कुछ भी काम करना समय की बर्बादी है। उनकी दृष्टि में जिसमें पैसे मिले वह काम है, बाकी सब व्यर्थ का काम है।
मुझे याद है जब इंटरनेट पर ब्लॉग बनाकर लिखने का प्रचलन बढ़ा तो हमने भी उत्सुकता बस शौकिया तौर वर्ष २००९ में अपना एक ब्लॉग बनाया। जहाँ यूँ ही हम कवितायेँ बनाकर पोस्ट कर दिया करते थे। धीरे-धीरे जब हमने देखा कि हमारे लिखे को लोग भी पढ़ते हैं तो हमने भी लोगों के ब्लॉग पढ़े, जिन्हें पढ़कर मन में उत्सुकता जगी कि हमें भी निरंतर लिखना चाहिए। ब्लॉग पर कवितायेँ लिखने के बाद जब हमने देखा कि कई समाचार पत्र ब्लॉगर्स की पोस्ट को अपने समाचार पत्र में स्थान देते हैं तो हमने भी कई लेख, सामयिक लेख लिखे जो कि कई समाचार पत्रों में छपते तो लिखने को प्रोत्साहन मिलता गया। देश के कई प्रतिष्ठित समाचार पत्र तब ब्लॉग से पोस्ट उठाकर छाप दिया करते थे, तब भी कई लोग जब हमारे लेख को देखते थे तो बस यही कहते थे कि क्या छपने पर पैसा मिलता है? मैं उन्हें बताती कि पैसे के लिए नहीं हम तो शौकिया लिखते हैं।
समाचार पत्रों में तो बहुत छपा लेकिन पुस्तक के रूप में अपने लिखे को देखना मन को एक अलग ही सुकून पहुँचाता है, इस सुकून का अनुभव उन लोगों को कभी नहीं हो सकता है, जो केवल पैसे की भाषा समझते हैं। इस बारे में आपका क्या विचार है?