आज सुबह जब उठकर हाथ-मुँह धोकर के बाद चाय पीने जा रही थी तो उसी समय हमारे एक परिचित पति-पत्नी शादी का कार्ड लेकर आये। कहने लगे कि लड़के की शादी का रिसेप्शन है, जरूर आना। मेरे पूछने पर कि शादी में नहीं बुलाया तो थोड़े निराश होकर कहने लगे कि अब क्या बताएँ- लड़का बी-टेक करने के बाद बंगलौर जाकर एक कंपनी में नौकरी करने लगा और वहीँ उसकी कंपनी में काम करने वाली एक लड़की से प्यार-व्यार हो गया तो उसने वहीँ हमें बुलाकर कोर्ट में शादी कर ली। हमने तो बहुत कहा कि तू हमारा एकलौता बेटा है, धूम-धाम से भोपाल में तेरी शादी करेंगे, जल्दी मत कर लोग क्या कहेंगे, लेकिन वह नहीं माना तो मजबूरी में हमें उसकी बात माननी पड़ी। वह तो रिसेप्शन के लिए भी तैयार नहीं था, लेकिन जब हमने उससे कहा कि हमने भी लोगों की शादी-ब्याह में जाकर खाया-पिया है तो उसका उतारा भी करना है तो वह तब राजी हुआ। अब एक ही तो लड़का है इसलिए सोचा कम से कम रिसेप्शन तो दे ही दें, इसलिए जरूर आना। हमने हामी भरी तो वे दोनों यह कहते हुए निकल गए कि अभी उन्हें बहुत लोगों के घर जाना है।
उनके जाने के बाद मैं सोचने लगी कि आखिर बच्चे पढ़-लिख कर बड़े शहर जाकर इतने बड़े क्यों बन जाते हैं कि उन्हें माँ-बाप का कोई ख्याल ही नहीं आता? मुझे याद है जब उनका बेटा बंगलौर गया तो वे किस तरह उसके पैकेज के बारे में बड़े गर्व से बता रहे थे कि इतना कमाता है, ठाड़-बाट से रहता है, एकलौता बेटा है तो हम अपनी पसंद की लड़की से धूम-धाम से शादी करेंगे। लेकिन हुआ क्या माँ-बाप सपने ही देखते रह गए और लड़के ने अपनी पसंद की लड़की से शादी कर ली। चलो शादी तो फिर भी ठीक, लेकिन रिसेप्शन तक के लिए मना करना, यह तो ठीक नहीं है न? आखिर माँ-बाप हैं, उनके भी तो कुछ अरमान होते हैं कि नहीं?
अब देखो क्या होगा रिसेप्शन होगा और वे दोनों वापस बंगलौर शिफ्ट हो जाएंगे और इधर बूढ़े माँ-बाप पड़े रहेंगे उस घर में जहाँ उन्होंने अपने बेटे को छोटे से बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया और जाने कितने और कैसे-कैसे सुनहरे सपने देखे होंगे! आजकल के बच्चों के किस्से-कहानी देख-सुनकर मन आशंकित हो उठता है कि अगर हमारे साथ भी ऐसा कुछ हुआ तो फिर
अपनी तो जैसे-तैसे
थोड़ी ऐसे या वैसे कट जाएगी
आपका क्या होगा जनाब-ए-अली