आजकल गर्मी ने घर-बाहर सभी जगह लोगों का हाल-बेहाल कर रखा है। वसंत के बाद गर्मी शुरू होते ही मंद-मंद चलने वाली हवाएं साँय-साँय कर लू का रूप धारण कर तन को झुलसाने बैठ जाती है। गर्मी में मनुष्य तो छोडो, धरती में जो हरियाली का गलीचा बिछा होता है वह भी जगह-जगह फट जाता है। इस मौसम में अच्छे-खासे फुर्तीले मनुष्य भी आलसी और थका-हारा महसूस करने लगते हैं। ऐसे मौसम में सीबीएसई ने दसवीं और बारहवीं के बच्चों की परीक्षा शुरू की है। मेरा बेटा भी दसवीं में हैं और उसे १५ किलोमीटर दूर मिसरोद में सेंटर मिला है। जिस दिन वह इतनी दूर परीक्षा देने जाता है, उस दिन बड़ी चिंता लगी रहती है। वैसे मेरे लिए राहत की बात यह है कि वह अपने दोस्त की कार से आना-जाना कर रहा है। सोचती हूँ अगर उसके दोस्त की कार न होती तो ऐसे में जब उसके पापा जब बाइक से इतनी दूर गर्मी में आते-जाते तो तब उनका क्या हाल होता? खैर कुछ दिन और कुछ घंटों की बात है। घर पहुँचकर तो उन्हें गर्मी से राहत मिल ही जाती है। हमारा घर वैसे भी किसी एयर कंडीशन से कम नहीं है, जहाँ हमें न तो एयर कंडीशन और न कूलर की जरुरत पड़ती है। बस पंखा ही काफी होता है।
अब आप सोचेंगे ऐसे कैसे हो सकता है। इसलिए बताती चलूँ कि हमारा घर चार मंजिला इमारत के भूतल पर स्थित है। जहाँ दिन भर छत से लोग पानी-पानी खेलते रहते हैं, जिससे नीचे हमारे लगाए पेड़-पौधों को प्यासा नहीं रहना पड़ता है। एक और खास बात कि प्रायः भूतल पर स्थित सरकारी मकानों की स्थिति ऊपरी मंजिलों में रहने वालों के जब-तब घर भर का कूड़ा-करकट फेंकते रहने की आदत के चलते किसी कूड़ेदान से कम नहीं रहती है, फिर भी एक अच्छी बात यह रहती है कि यहाँ थोड़ी-बहुत मेहनत मशक्कत कर पेड़-पौधे लगाने के लिए काफी जगह निकल आती है, जिससे बागवानी का शौक और पर्यावरण को प्रदूषण से बचाने का काम एक साथ हो जाता है। बचपन में जब भी बरसात का मौसम आता तो हम बच्चे खेल-खेल में इधर-उधर उग आये छोटे-छोटे पौधे लाकर अपने घर के आस-पास रोपकर खुश हो लेते थे। तब हमें पता नहीं था कि पेड़-पौधे पर्यावरण के लिए कितना महत्व रखते हैं, किन्तु आज जब महानगरों के विकास के नाम पर पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई से पर्यावरण संकट गहराया है तो यह बात अच्छे से समझ आयी है कि पेड़-पौधें होंगे तो हम सुरक्षित और स्वस्थ रह सकेंगे। बचपन से प्रकृति के साथ मेरा जो लगाव रहा है वह आज भी वैसा ही है। मैं आज न केवल अपने घर के आस-पास, बल्कि दूसरी जगह भी पेड़-पौधे लगाने और दूसरे लोगों को ऐसा करने के लिए प्रेरित करने में पीछे नहीं रहती हूँ। यह मेरा प्रकृति से जुड़ाव और पर्यावरण को बचाने का परिणाम है कि आज हमारा घर-आंगन ग्रीनलैंड बना रहता है। इसी ग्रीनलैण्ड का सुखद परिणाम है कि हमें गर्मी में न तो किसी एयर कंडीशन और नहीं कूलर की जरुरत पड़ती है।
मैं सोचती हूँ यदि हरेक मनुष्य अपने-अपने स्तर से थोड़ा-बहुत जितना बने प्रकृति की सेवा के वास्ते अपने आस-पास छोटे-बड़े पेड़-पौधे लगाएं तो निश्चित ही उन्हें न अधिक गर्मी सताएगी और न आजकल जो देखा-देखी में घरों में एयर कंडीशन लगाने का कीड़ा लगा है, वह काटेगा। इस सन्दर्भ में उन्हें एक बात अच्छे से समझ लेनी चाहिए कि भले ही एयर कंडीशन गर्मी से राहत दिलाती है, लेकिन यह स्वास्थ्य के लिहाज़ से कामकाजी लोगों के लिए लाभकारी नहीं है। इस बारे में आप क्या सोचते हैं?