shabd-logo

शराबबंदी की राजनीति

6 अप्रैल 2022

63 बार देखा गया 63

इन दिनों देश के एक प्रदेश में शराब पर राजनीति का घमासान मचा है। इसके एक छोर पर एक पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जिनका मानना है कि शराब गरीबों के घर उजाड़ रहे हैं, इसलिए वर्तमान सरकार को शराब पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिए तो दूसरे छोर पर उनकी पार्टी के ही वर्तमान सरकार है, जिनका कहना कि वह प्रदेश में इस नशे के कारोबार से होने वाली बर्बादी को रोकने के लिए जन-जागरूकता अभियान चलाकर अंकुश लगाएगी। ज्ञात हो कि यह मुद्दा एक ही पार्टी के दो राजनीतिज्ञों के बीच पहली बार नहीं उछला है, इससे पहले भी पूर्ववर्ती सरकार में उप मुख्यमंत्री रह चुके एक राजनेता ने यह आवाज बुलंद की थी, लेकिन कुछ समय बाद बड़े-बड़े घंटालों के बीच जिस तरह छोटी-छोटी घंटियों की आवाज दब कर रह जाती है, उनकी आवाज भी दब कर रह गई। अब फिर राजनीति के किसी पुरोधा ने गरीबों का हमदर्द बनकर 'पत्थर उठाकर शराबबंदी का अभियान' चलाया है। जहाँ किसका पलड़ा भारी होगा? यह भोली-भाली गरीब जनता को देख-समझंना बाकी रहेगा। शराब पर राजनीति की बातें चलती रहती हैं, लेकिन कोई भी सरकार शराब से होने वाली आमदनी से कई अधिक स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च होने के बावजूद भी अन्य कोई वैकल्पिक स्रोत न देखते हुए इस पर प्रतिबन्ध लगाने के बजाय जन-जागृति अभियान चलाने की बात कहकर पल्ला झाड़ने में ही अपनी भलाई समझते हैं, जिससे बात आई-गई हो जाती है।  

सदियों से शराब के विषय में उसके भले-बुरे दोनों पक्षों को अमीर-गरीब सभी लोग देखने-सुनने और लाभ-हानि को भली-भांति समझने के बाद भी इसका सेवन करते आ रहे हैं। हमारे देश में राजा-महाराजों के ज़माने से ही शराब कारोबारियों ने देश की जनता के स्थिति का आंकलन कर उसकी नब्ज को अच्छे से पकड़कर उनके छोटे-बड़े के स्तर के हिसाब से सस्ती-महंगी शराब की व्यवस्था रख छोड़ी, जो आज भी बदस्तूर जारी है। शराब को देश की कई सरकारें अपनी आमदनी का सबसे बड़ा जरिया बताते हैं, लेकिन यह समझ से परे है कि वे यह क्यों भूल जाते हैं कि शराब की लत तो सबसे अधिक गरीब को लगती है, जिसका खामियाजा उसका पूरा परिवार भुगतता है। जिसके कारण उनके घर-परिवार में मारपीट, लड़ाई-झगड़े का तांडव मचा रहता है। ऐसे में उनके बच्चे भी पढाई-लिखाई छोड़ उनके जैसा आचरण करने लगते हैं, जिससे पूरे परिवार को बर्बाद होने में समय नहीं लगता। 

आज यह सबसे बड़ी बिडंबना यह है कि जहाँ पहले शराब को आदमी लोगों का शौक माना जाता था, वहीँ अब क्या औरत, क्या नवयुवक, क्या नवयुवतियाँ सबका शौक बनता जा रहा है। इसमें क्या अमीर क्या गरीब कोई भेद नहीं। सब अपनी-अपनी हैसियत से बढ़कर कच्ची-पक्की जैसे भी मिल रही है 'एन्जॉय' का नाम देकर गटके जा रहे हैं, गटके जा रहे हैं?

आप भी निश्चित ही अपने आस-पास ऐसे कई किस्से-कहानियां सुनते और आँखों से देखते होंगे, इस विषय में आप क्या कहेंगे? 

15
रचनाएँ
दैनंदिनी (कुछ इधर-उधर की) अप्रैल 2022
5.0
आप इस पुस्तक के माध्यम से मेरे आस-पास की कुछ इधर-उधर की नई-पुरानी घटित घटनाओं से दो-चार होंगे।
1

कुछ ऐसा हो नववर्ष हमारा

2 अप्रैल 2022
5
3
1

आज हमारा नववर्ष है इसलिए सबसे पहले सबको हार्दिक शुभकामनाएं। नए वर्ष के लिए कुछ लिखने की उधेड़बुन में बहुत से ख्याल मन में आये लेकिन कुछ अच्छा नहीं लगा तो फिर सोचा क्यों न कुछ जरुरी सबक लिखती चलूँ-   

2

एक दृष्टि 'गरीबी में डॉक्टरी'

4 अप्रैल 2022
6
1
1

दो माह की मेहनत के बाद आखिर पेड पुस्तक लेखन प्रतियोगिता की विजेता बनकर मेरी १० कहानियों का संग्रह पेपर बैक में प्रकाशित होने जा रहा है, तो मन में ख़ुशी है, एक उत्सुकता है। यह प्रतियोगिता यद्यपि सरल तो

3

पैसे से सुकून नहीं खरीदा जा सकता है

5 अप्रैल 2022
2
1
0

शब्द.इन की पेड पुस्तक लेखन प्रतियोगिता (फरवरी- मार्च २०२२) विजेता बनने पर कई परिचित मुझसे एक ही सवाल पूछते हैं कि पुरस्कार में कितनी राशि मिली है। उनके लिए प्रतियोगिता का मतलब पुरस्कार में अच्छी-खासी

4

शराबबंदी की राजनीति

6 अप्रैल 2022
2
0
0

इन दिनों देश के एक प्रदेश में शराब पर राजनीति का घमासान मचा है। इसके एक छोर पर एक पूर्व मुख्यमंत्री हैं, जिनका मानना है कि शराब गरीबों के घर उजाड़ रहे हैं, इसलिए वर्तमान सरकार को शराब पर पूर्ण प्रतिबंध

5

लापरवाह लोग प्रकृति को भी दुःख देते हैं

8 अप्रैल 2022
3
2
0

गर्मी आती है तो सुबह-सुबह घूमना-फिरना लगभग हर दिन का एक जरुरी काम हो जाता है। हमारा हर दिन घूमना मतलब से सीधे श्यामला हिल्स पर स्थित जलेश्वर मंदिर तक यानि मतलब 'मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक' वाली है। क

6

श्रीराम के आदर्श शाश्वत हैं और जीवन मूल्य आज भी प्रासंगिक हैं

10 अप्रैल 2022
2
1
0

जब मंद-मंद शीतल सुगंधित वायु प्रवाहित हो रही थी, साधुजन प्रसन्नचित्त उत्साहित हो रहे थे, वन प्रफुल्लित हो उठे, पर्वतों में मणि की खदानें उत्पन्न हो गई और नदियों में अमृत तुल्य जल बहने लगा तब- नवमी ति

7

महावीर- आम्बेडकर दिवस विशेष

14 अप्रैल 2022
3
0
0

आज दो पुण्य आत्माओं की जयंती हैं। इसलिए आज की दैनंदिनी उनके नाम है।   डाॅ. आम्बेडकर- एक ऐसे महापुरुष जो दलितों के मसीहा थे जिन्हें सारा संसार डाॅ. आम्बेडकर के नाम से जानता है। जिन्होंने अपने आदर्शो

8

भक्ति और शक्ति के बेजोड़ संगम हैं हनुमान

16 अप्रैल 2022
1
0
0

चैत्रेमासि सिते मक्षे हरिदिन्यां मघाभिधे। नक्षत्रे स समुत्पन्नो हनुमान रिपुसूदनः।। महाचैत्री पूर्णिमायां समुत्पन्नोऽञ्जनीसुतः। वदन्ति कल्पभेदेन बुधा इत्यादि केचन।।  अर्थात्-चैत्र शुक्ल एकादशी के द

9

जितनी ज्यादा अपेक्षा उतना दुःख होता है

20 अप्रैल 2022
2
1
1

आज शाम जैसे ही ऑफिस से घर पहुँची तो आँगन में देखा कि पड़ोस में रहने वाली अम्मा अपने नाती पर बुरी तरह बिगड़ रही थी। मेरे पूछने पर जमीन पर बिखरे मटके के टुकड़ों की ओर इशारा करते हुए बोली कि 'अभी-अभी एक मटक

10

उफ़ ये आजकल के बच्चे भी न

25 अप्रैल 2022
3
1
1

आज सुबह जब उठकर हाथ-मुँह धोकर के बाद चाय पीने जा रही थी तो उसी समय हमारे एक परिचित पति-पत्नी शादी का कार्ड लेकर आये। कहने लगे कि लड़के की शादी का रिसेप्शन है, जरूर आना। मेरे पूछने पर कि शादी में

11

टेढ़ी खीर है हिन्दी ब्लॉगिंग से कमाई करना

26 अप्रैल 2022
3
1
0

मैं वर्ष २००९ से ब्लॉगिंग करती आ रही हूँ। प्रारंभ में हिंदी लिखने में बड़ी कठिनाई आती थी। लेकिन धीरे-धीरे इसके जानकारों से ब्लॉग पर चर्चा और ईमेल द्वारा पूछ-पूछकर सीखते चले गए। हमने अपना ब्लॉग घर

12

शादी और रिश्तेदारी की बातें

27 अप्रैल 2022
0
0
0

आजकल हर एक-दो दिन बाद किसी न किसी के शादी का न्यौता है। अब शादियों की बात निकली है तो बताती चलूँ कि अभी दो दिन पहले मेरी एक सहेली के बेटे की बारात में खूब मौज-मस्ती, नाच-गाना करके फिर अपनी दुनिया में

13

गर्मियों के दिन और बच्चों की परीक्षा

28 अप्रैल 2022
1
0
0

आजकल गर्मी ने घर-बाहर सभी जगह लोगों का हाल-बेहाल कर रखा है। वसंत के बाद गर्मी शुरू होते ही मंद-मंद चलने वाली हवाएं साँय-साँय कर लू का रूप धारण कर तन को झुलसाने बैठ जाती है। गर्मी में मनुष्य तो छोडो, ध

14

हम और हमारा स्वच्छ सर्वेक्षण

29 अप्रैल 2022
1
1
1

हर दिन सुबह-सुबह नगर निगम की कचरे ढ़ोने वाली गाड़ी लोगों के घरों से कचरा उठाने आती है और स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हुए यह गाना जरूर सुनाती है कि- झीलों का शहर भोपाल अपना जन्नत की तरह है घर अपना, 

15

हाय ! बुढ़ापा आया पास उसके कोई नहीं फटकते

30 अप्रैल 2022
1
1
1

आज कुछ मन खट्टा हुआ तो दैनंदिनी के लिए इतना ही कि - बचपन में वह कभी रोता-हँसता कभी उछल-कूद करता कभी खेल-खिलौने छोड़ किसी चीज की हठ कर बैठता उछल-उछल कर सबको विचित्र करतब दिखलाता हँस.-हँस, हसाँ-हसा

---

किताब पढ़िए