गर्मी आती है तो सुबह-सुबह घूमना-फिरना लगभग हर दिन का एक जरुरी काम हो जाता है। हमारा हर दिन घूमना मतलब से सीधे श्यामला हिल्स पर स्थित जलेश्वर मंदिर तक यानि मतलब 'मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक' वाली है। क्योंकि वहां जाकर हमें अपने लगाए पेड़-पौधों को पानी देना पड़ता है। आजकल वैसे भी गर्मी बहुत बढ़ गयी है, इसलिए पेड़-पौधों को पानी की भी अधिक आवश्यकता पड़ती है। सुबह एक-डेढ़ घंटा पानी देते-देते कब बीत जाता है, पता ही नहीं चलता। यहाँ भले ही बड़े पेड़ों को पानी न मिले लेकिन लेकिन छोटे-छोटे फूल और नाजुक पत्तियों वाले पौधों को अगर एक दिन पानी न मिले तो वे दूसरे दिन बुरी तरह झुलसे मिलते हैं, जिन्हें देख दिल बड़ा दुःखता है। ये अलग बात है कि यहाँ हर दिन मंदिर आने-जाने वाले लोगों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वे तो बस अपनी पूजा करते हैं और अपने घर निकल पड़ते हैं। लेकिन हमें बहुत फर्क पड़ता है, जब हम किसी भी पेड़ या पौधे को कहीं भी मुरझाते या सूखते हुए पाते हैं।
जलेश्वर मंदिर से लगभग 300 मीटर पहले पूरे रास्ते के बायीं ओर कई बोगन बेलिया के लदे फूलदार पौधों और बादाम के लगभग 50-60 पेड़ को देखकर सुबह-सुबह मन ख़ुश हो जाता था। लेकिन आज जब सुबह वहां से गुजरी तो मन को बड़ी निराशा हुई क्योंकि किसी ने रात को उनके नीचे पड़ी पत्तियों पर आग लगा ली थी, जिससे वे बुरी तरह झुलसे हुए मिले। बादाम के पेड़ो की पत्तियों जलकर पीली पड़ गई थी और बोगन बेलिया के फूल तो पौधों सहित जलकर ख़ाक हो चुके थे। रात को जाने किसको क्या सूझी कि वह आग लगाकर चला गया। मंदिर पहुंचकर जैसे-तैसे पेड़-पौधों को पानी दिया लेकिन मन उन जले हुए पेड़-पौधों पर ही अटक कर रह जाता। वहां पानी की कोई व्यवस्था तो थी नहीं इसलिए घर आकर सबसे पहले नगर निगम को फ़ोन लगाया और फिर जब उन्होंने टैंकर से पानी देने की हामी भरी तो मन को सुकून पहुंचा। अब कल देखना बाकी होगा कि क्या वाकई नगर निगम ने पेड़-पौधों को पानी दिया कि नहीं? क्योंकि आग लगाने वालों की तरह ही वे भी काम लापरवाह नहीं होते, उनके पास भी लाख बहाने होते है, उन्हें वीईपी लोगों की पहले सेवा करनी होती है और बाद में यदि उन्हें याद रहा तो फिर खैर खबर लेते हैं वह भी खूब हो-हल्ला करने पर।
आपके शहर के बहुत से लोग भी क्या हमारे शहर की तरह इसकदर लापरवाह होते हैं और क्या नगर निगम आम जनता की बात एक बार में सुन लेते हैं, जरूर बताएगा।