निकोला टेस्ला नामक वैज्ञानिक ने अपने जीवनकाल की रिसर्च से अर्जित सफलता को इस बात से आँका जा सकता है कि उनकी इन्वेंशन पर तीन सौ से ज्यादा पेटेंट फाइल हुई है टेस्ला वहीं जिन्होंने लौह चुम्बकत्व का आकर्षणशक्ति यानि चुम्बकीय शक्ति का मात्रक खुद के नाम से यानि "टेस्ला " ही रख दिया | निकोला टेस्ला यह सोचते थे कि चाहे कुछ हो जाये चुम्बकों के उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव के मिलन को कोई नहीं रोक सकता क्युकी उनके बीच जो आकर्षण शक्ति होती है वह बहुत ज्यादा होती है तो निकोला ने सोचा कि जब भी आकर्षण शक्ति को मापा जायेगा तो उनका नाम यानि टेस्ला नामक मात्रक से अंकित किया जाएगा | उनकी यह खोज काफी असरकार हुई आगे चुम्बकीय शक्ति के विभिन्न मानो के आधार पर बहुत सारी मशीन, उपकरण, वाहन आदि बनाये गए जिनमे बाइक से लेकर साउंड वूफर तक और लेपटोप से लेकर मोबाइल तक अति आवश्यक चीजे आती है |
चुम्बकीय शक्ति की वजह से ग्राहम बेल ने टेलीफोन का अविष्कार किया, अब टेलीफोन है तो बातचीत है, बातचीत है तो लम्बी लम्बी बाते है, बाते है तो वादे है, वादे है तो जान देने-लेने की बात तो बहुत आम है, जिनमे से कुछ प्रमुख जैसे "तुम्हे पलकों में रखूँगा" "साँसों में बसाऊंगा" "बस तुम आखिरी हो " तुम्हरे बिना जी नहीं सकता" "कोई हमे अलग नहीं कर सकता" आदि बेहद सवेदनशील, मार्मिक, भावपूर्ण, रमणीक, मनभावन, हृदयद्रावित, स्वप्नयुक्त, और श्रृंगार, करुणा रस की अधिकता में डूबी नयन भीग बाते होती है इन सब बातो से एक अजीब सा एहसासयुक्त "लगाव" की प्राप्ति होती है जिसे अंग्रेजी माध्यम के छात्र ATTRACTION कहते है अतः इसी "लगाव" के कारण, टेस्ला की चुम्बकीय आकर्षणशक्ति, युवाप्रेम की आकर्षणशक्ति से पराजित हो जाती है |
प्रेम एक ऐसी अनुभूति और एहसास का नाम है जिसमे कुछ दिखाई नहीं देता, अब आप कहोगे कि वो तो अंधे को भी दिखाई नहीं देता इसलिए घुमा फिराकर कहने से अच्छा है कि सीधे सीधे वाक्यो में बात कहे | खैर प्रेम के इस जटिल कुटिल और मजबूत सिद्धांत को शुद्ध और कड़ी बोली में समझते है मेरे कहे गए कथन आंशिक लोगो में लागू नहीं होती लेकिन फिर भी "आज के समय में सच्चा आशिक वहीं है जो फ़ोकट है मतलब जिसके पास कोई काम धाम नहीं है" मुझे दुःख इस बात का है कि मेरे पास बहुत काम है हालांकि यह कथन शादीशुदा व्यक्तियों पर लागू नहीं होता लेकिन कई शादीशुदा व्यक्तियों की शादी का कारण भी यही है | प्रेम क्या है इसकी व्याख्या मीरा से लेकर अलका याग्निक तक, सूरदास से लेकर अल्ताफ राजा तक, पृथ्वीराज चौहान से लेकर दिग्विजय सिंह तक, तमाम प्रेम के कवि , कलाकार और महानुभावो ने समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन विषय इतना बड़ा है कि इनकी कोशिशे छोटी लगने लगी |
फेसबुक, ट्विटर जैसे अतिविश्वसनीय और विश्वस्तरीय साधनो से उत्पन्न प्यार, बेहद गंभीर, मजबूत, गहरा, सच्चा, अच्छा, असरदार, अतिमनभावन, शायराना, कवितालेखयुक्त, क्रीडांगन व आलिंगन अदाओं से परिपूर्ण खजुराओ स्मरणक आदि तत्वों से सजा होता है जो देर रात तक किया गया वाद-संवाद, कसमें-वादे, मोबाइल रिचार्ज, चाउमीन, पॉपकॉर्न, आइसक्रीम, गिफ्ट, मूवी और बाइक (लाल व काले रंग को प्राथमिकता) की लहरदार सवारी आदि, लड़कियों की अस्मिता खरीदने योग्य, मनोरंजनयुक्त विलासितापूर्ण साधनों पर निर्भर है। जिसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि प्रेमलिप्त नायक-नायिका ने कितनी भावपूर्ण (face expression), चमकयुक्त (brightness) व दमकयुक्त (contrast) से समायोजित, रंगीन या रंगहीन फोटो जो हलकी सी उत्तेजक मुद्रा की ओर तेजी से अग्रसर हो, को व्यक्तिगत स्तर पर आदान-प्रदान किया हो या सार्वजानिक स्तर पर अपलोड किया हो । और साथ ही साथ एक खास हृदयस्पर्श व संवेदनशील स्टेटस भी हो , तब जाकर इस सच्चे प्रेम की सफलता का आँकलन इस बात से किया जाता है कि कितने लोगो ने "लाइक" किया कितनो ने नहीं किया | लेकिन कुछ लोग जिनमे मैं भी शामिल हुँ वो अपने आप को इस नवीन, प्रखर, अतिविश्वसनीय, चमत्कारी, असरदार और बेहद ज्ञानवर्धक माध्यम से नहीं जोड़ पा रहे है शायद हम लोग पुरानी सोच के व्यक्तित्व साथ लिए घुमते है है जो अपनी पृष्ठभूमि से अभी तक जकड़े हुए है हम इन्हे अपने संस्कार कहते है और हमारे विरोधी देहाती या पिछड़ा और अनपढ़ आदि शब्दों से परिभाषित करते है |
खैर जो भी हो , बस प्रेम हो
बैर नहीं, बस संदेह रहित हो |\
रविराज सिंह
भोपाल