shabd-logo

पत्थरबाजों पर कार्यवाही के नाम पर लीपापोती।

11 नवम्बर 2018

158 बार देखा गया 158

पत्थरबाजों पर कार्यवाही के नाम पर लीपापोती।

कश्मीर के कथित भटके हुए नौजवानों की जमात मे महिलाएँ भी शामिल हो चुकी है। महिला पत्थरबाजों से निपटने के लिए सेना के दस्ते मे महिला-ब्रिगेड को शामिल किया गया है तथा सेना के वरिष्ठ अधिकारियों नुसार ये महिला सैनिक इन महिला पत्थरबाजों को रोकने मे पूरी तरह सक्षम है और जमीनी स्तर पर सफल भी हो रही है।


सेना का यह क्या बचकाना मजाक लगा रखा है....?

आतंकवादियों मे भी महिला-बच्चे-बूढे देखने का क्या औचित्य....?


पहले तो १९६९ मे नया कानून बनाकर कम जनसंख्यावाला पहाडी भाग, पाकिस्तान से सटा अंतरराष्ट्रीय सीमावाला भाग आदि बताकर बडी ही चालाकी से विशेष राज्य का दर्जा दिलवाया, फिर प्रती व्यक्ती कम आय का छूठ फैलाकर देश के खजाने पर ९०:१० के अनुपात मे लूट मचाई जिसके तहत किसी विशेष दर्जे के राज्य मे होनेवाले खर्च का ९०% केंद्र सरकार का अनुदान होता है एंव उस विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त राज्य को केवल १०% ही केंद्र सरकार को लौटाना होता है वह भी बिना ब्याज के। केंद्र मे सरकार चाहे जो भी रही हो किंतु कश्समीर को लेकर सभी का रवैया एक जैसा ही रहा है।

” सभी सरकारों का सदैव रक्षात्मक रवैया ही रहा”


धारा ३७० भारत के संविधान के मुँह पर वो कालिख है जिसके अंतर्गत कश्मीर के प्रत्येक निवासी को दोहरी नागरिकता प्राप्त है। उनकी पहली नागरिकता कश्मीर की एंव नागरिकता भारत की होती है। यदि कोई कश्मिरी युवती कश्मीर को छोडकर देश के अन्य राज्य के युवक से विवाह करें तो उसकी कश्मीर की नागरिकता समाप्त हो जाती है, वहीं दुसरी तरफ यदी वो युवती किसी पाकिस्तान के नागरिक से विवाह करें तो पाकिस्तान के व्यक्ती को भारत की नागरिकता मिल जाती है। इसी धारा ३७० के कारण कश्मीर भारत का अभिन्न अंग होने के कारण भी वहाँ का अपना अलग राष्ट्र-ध्वज है और इतना ही नहीं, कश्मीर मे भारत के ध्वज को जलाना या अपमान करना कानूनन कोई अपराध नहीं।


धारा ३७० के अलावा अनुच्छेद ३५अ भी पत्थरबाज व उनके आकाओं को पोषणता प्रदान कर रही है, जिसके तहत कश्मीर का नागरिक वही है जिनको सन् १९५४ मे कश्मीर की नागरिकता प्राप्त थी अथवा जो सन् १९५४ से पहले १० साल या उस से अधिक समय से कश्मीर मे रह रहे हो या फिर उनकी कोई निजी संपत्ती हो, जिनमे से अधिकतर गैर-मुस्लिमों को निपटाया जा चुका है और सन् १९९२ मे कश्मीरी पंडितों को भी खदेडा जा चुका है तथा रही सही कसर पत्थरबाज पूरी कर ही रहे हैं, जिनके सामने सशस्त्र भारतिय सेना भी नहीं टिक पा रही।


भारतिय सेना कभी भेस बदलकर पत्थरबाजों के बीच मे उनका साथी बनकर घुसती हैं एंव २-४ लोगों को पकडकर अपनी पीठ थपथपाती है, फिर बाद मे सरकार के दबाव मे आकर उनको छोड देती है। अब महिला ब्रिगेड का नया तमाशा करके फिर से छूठी तारिफ बँटोरकर पुन: से स्वयं एंव देश को धोखा मे रख रही है। हमें ये समझना चाहिए की सरकार द्वारा सेना एंव देश को निराशा ही हाथ लगनी है। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों को बिना किसी सरकारी दबाव के व सेना से निकाले जाने के भय एंव मृत्यु-दंड के भय से मुक्त होकर साहसपूर्वक कडे निर्णय स्वयं ही करने होंगे, तभी कश्मीर समस्या के निवारण मे हम पहला कदम ले पाएँगे, अन्यथा ऐसे ही बनावटी विजय पर खूश होकर एक दिन कश्मीर भी हाथ से गँवाना पडेगा।


!! वंदे मातरम् !!



विकास बौठियाल

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए