दिल्ली की सर्द रातें अपने साथ न जाने कितने किस्से और कहानियां छुपाए रहती हैं। अरमान अपने पुराने बैग के साथ उस नए फ्लैट में पहुंचा, जो कुछ दिन पहले ही उसे बेहद सस्ते किराए पर मिला था।
“किराया कम है, लेकिन ये जगह थोड़ी अजीब तो लग रही है,” उसने खुद से बुदबुदाते हुए फ्लैट का दरवाजा खोला।
कमरे में अंधेरा था। ट्यूबलाइट चालू करते ही उसे लगा कि दीवारों पर सीलन है और खिड़कियों के बाहर सिर्फ सन्नाटा पसरा है।
"चलो, रहने के लिए ठीक ही है। इतनी जल्दी और कहां मिलता इतना बड़ा फ्लैट," उसने अपने आप से कहा और सामान जमाने लगा।
अगली सुबह, अरमान का पहला काम था एक नया फोन खरीदना। उसके पुराने फोन की स्क्रीन टूट चुकी थी, और बिना फोन के वह बिल्कुल अधूरा महसूस कर रहा था।
"आजकल फोन नहीं तो कुछ भी नहीं। काम भी कैसे होगा?" उसने मन ही मन सोचा।
जामा मार्केट
पुरानी दिल्ली के जामा मार्केट में हर तरह का पुराना सामान मिलता था। अरमान को भी यहीं उम्मीद थी कि कोई सस्ता मोबाइल फोन मिल जाएगा। बाजार की तंग गलियों से गुजरते हुए वह एक छोटी-सी दुकान पर रुका।
दुकान का नाम बोर्ड पर नहीं लिखा था। अंदर एक बूढ़ा आदमी बैठा था, जो किसी पुराने रेडियो को खोलने की कोशिश कर रहा था।
“भाई साहब, एक सस्ता मोबाइल चाहिए। नया खरीदने के पैसे नहीं हैं,” अरमान ने हिचकिचाते हुए कहा।
दुकानदार ने बिना सिर उठाए जवाब दिया, “सस्ता चाहिए तो पुराना लेना पड़ेगा। लेकिन संभाल कर रखना होगा।”
“क्यों? पुराना फोन टूटने का डर रहता है क्या?” अरमान ने मजाक में पूछा।
इस बार दुकानदार ने उसकी ओर देखा। उसकी आंखें असामान्य रूप से चमक रही थीं।
“हर चीज़ सिर्फ टूटती नहीं। कुछ चीज़ें इंसान को तोड़ भी देती हैं।”
अरमान को उसकी बात समझ नहीं आई, लेकिन उसने सोचा कि ये बस फालतू बातें हैं। दुकानदार ने काउंटर के नीचे से एक पुराना फोन निकाला।
“ये लो। 1000 रुपये। काम चल जाएगा।”
फोन देखकर अरमान को थोड़ा अजीब लगा। स्क्रीन बिल्कुल साफ थी, लेकिन बैक कवर पर एक गहरी खरोंच थी। ऐसा लगा, जैसे किसी ने नाखून से कोई अजीब सी आकृति बनाई हो।
“क्या ये ठीक से चलेगा? या इसमें भी भूत-प्रेत वाली बात है?” अरमान ने हंसते हुए पूछा।
दुकानदार ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “ये फोन अपने आप में एक कहानी है। लेकिन हां, चलाना तुम्हें आता हो तो ठीक से चलेगा।”
अरमान को उसकी बातें बेवकूफी लगीं। उसने पैसे दिए और फोन लेकर निकल पड़ा।
“यार, लोग क्या-क्या कहानियां बना लेते हैं। फोन ही तो है,” उसने खुद से कहा।
शाम को फ्लैट में:
अरमान ने घर आकर फोन ऑन किया। जैसे ही स्क्रीन चालू हुई, एक अजीब-सा लाल रंग का वेलकम मैसेज उभरा: "शुरुआत।"
“ये कौन-सा ब्रांड है? वेलकम स्क्रीन भी डरावनी बना रखी है।” उसने फोन का डेटा सेटअप करते हुए खुद से कहा।
फोन को इस्तेमाल करते हुए उसने ध्यान दिया कि यह सामान्य दिखने के बावजूद थोड़ा धीमा था। “चलो, कम से कम काम तो चल जाएगा।”
रात को करीब 1 बजे फोन अचानक से वाइब्रेट हुआ।
“किसका मैसेज होगा?” वह सोचते हुए फोन उठाने गया। लेकिन स्क्रीन पर कोई कॉल या नोटिफिकेशन नहीं था।
तभी स्क्रीन पर वही लाल शब्द दोबारा चमकने लगे: "शुरुआत।"
अरमान ठिठक गया।
“ये क्या बकवास है? शायद कोई तकनीकी खराबी होगी।” उसने खुद को समझाया।
लेकिन तभी खिड़की से ठंडी हवा का झोंका आया, और कमरे का दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
“यहां का मौसम भी मजाक कर रहा है। या मैं खुद ज्यादा सोचने लगा हूं?” उसने खुद को तसल्ली दी और वापस सोने की कोशिश की।