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ओ चंदा 🌜

29 जुलाई 2022

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अपनी ही उजास में सिमटा ।

रोशनी की चादर में लिपटा ।

मां की लोरी तू कभी बन जाता ।

पागल प्रेमी को प्रेमिका बन तू दिख जाता।

आधा तो कभी पूर्णमासी का चांद तू बन जाता।

असंख्य तारों के बीच तू     मनमोहक हो जाता।

अमावस की उस    एक   काली    रात      को

तू आसमां को    पूरा    ‌ खाली   कर      जाता

तुझ बिन     वो दिन   सब  जग  ‌‌    सून       सून

मन        मेरा          खाली खाली  रह जाता 

दूजे दिन तू फिर से आधा कभी पूरा 

पूर्णमासी का चांद बनने की तैयारी में जुट जाता।

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कुछ पंक्तियां दुबारा प्रकाशित हो गई हैं।

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