प्रिय श्री नरेंद्र मोदी जी,
मेरा नाम जीतेंद्र है. मेरी उम्र सात साल है. मैं बिहार से हूं. कृप्या मुझसे यह ना पूछें कि मैं बिहार के किस इलाके से हूं, क्योंकि मैं यह नहीं जानता.
पिछले दो साल से मैं हैदराबाद में हूं. मुझे मेरा माता-पिता ने 1,000 रुपये में 'बेच' दिया था. शायद यह सबसे बड़ा बेटा होने का गुनाह है. मेरे छोटा भाई और दो बहनें घर पर हैं. दरअसल मैं ऐसा मानता हूं कि यहां आने के बाद से मुझे परिवार की कोई खबर नहीं है. मुझे उनकी याद आती है.
मैं यहां चूड़ी के कारखाने में काम करता हूं. यह जगह पुराने हैदराबाद में चारमीनार के पास है. यहां कई लड़के एक छोटे से कमरे में रहते हैं. किसी ने बताया कि इस कमरे में 20 से 25 लड़के रहते हैं. मैं कभी स्कूल नहीं गया और गिनती भी नहीं जानता.
मैं सुबह छह बजे उठता हूं और चूड़ियों के काम में लग जाता हूं. मैं कारखाने में ही सोता हूं. मैं सुबह छह बजे से काम शुरू करता हूं जो रात के एक बजे तक चलता है. मुझे किसी ने बताया कि यह 19 घंटे होते हैं. क्योंकि मैं गिन नहीं सकता.
जब खाना मिलता है तो मैं खा लेता हूं और काम शुरू कर देता हूं. थकान महसूस होने पर मैं झपकी ले लेता हूं. जब मालिक को मेरे सोने का पता चलता है तो वह आकर मुझे मारते हैं.
शुरुआत में मैंने सोचा कि उसे मेरे काम ना करने का कैसे पता चलता है, फिर मुझे पता चला कि वहां कैमरा (सीसीटीवी) लगा है जिससे उन्हें सब पता चल जाता है कि मैं काम रहा हूं या सो रहा हूं. अब मैं कोशिश करता हूं कि मैं ना सोऊं क्योंकि वह बहुत जोर से मारते हैं. उससे चोट लगती हैं और मैं रोता हूं.
सर, मुझे मां की याद आती है. मुझे उनकी साड़ी के पल्लू में अपना सर छुपाना याद आता है. मुझे उनके संग खेलने की याद आती है. मुझे अपने भाई और बहनों के साथ खेलने की भी याद आती है. मेरे दोस्त मुझे चिढ़ाते हैं कि मैं कभी हंसता नहीं. यह हंसी होती क्या है? मुझे नहीं पता.
दीपक मेरा सबसे अच्छा दोस्त है. उसने मुझे बताया कि वह मेरा चचेरा भाई है. क्योंकि मैं जब भी रोता हूं वही मुझे चुप कराता है. पिछले साल मई में पुलिस ने हम दोनों को वहां से बचाया था, लेकिन घर भेजने की जगह, एक अंकल ने हमें वापस चूड़ी कारखाने ही भेज दिया. मैं अब भी अपनी मां से नहीं मिल पाया हूं.
पिछले हफ्ते, पुलिस ने दोबारा हमें वहां से निकाला. मैं इससे परेशान था, क्योंकि उन्होंने जब कारखाने पर छापा मारा था, तब तक मेरा काम पूरा नहीं हुआ था. मैंने काम जारी रखा क्योंकि मुझे डर था कि अगर मैंने अपना काम खत्म किए बिना पुलिस के साथ चला गया तो मेरे मालिक मुझे मारेंगे.
दीपक, मैं और कई दूसरे लड़के अब हैदराबाद के साइबाबाद में बाल सुधार गृह में हैं. हर दिन, कई लोग लड़कों को देखने आते हैं.
एक दिन एक औरत ने एक लड़के की तरफ इशारा करते हुए कहा कि वह मेरा बेटा है. लेकिन उस लड़के ने कहा कि वह उसकी मां नहीं है. मुझे नहीं पता क्या हो रहा है.
क्या मेरी भी मां आएंगी? मुझे उम्मीद है कि वह आए. मुझे उनकी याद आती है. मैं स्कूल जाना चाहता हूं. मैं जानता हूं कि मैं हर महीने एक हजार रुपये कमाता हूं लेकिन मैं उन पैसों को गिनना भी चाहता हूं.
सर, मुझे बताया गया कि आप हर किसी से कहते हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं. क्या आप मेरी मां को मुझे घर वापस ले जाने हैदराबाद भेजेंगे? मैं भी अच्छे दिन देखना चाहता हूं.
प्रणाम,