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वह जितना तेज भाग रही थी, दिल की धड़कन उससे तेज थी। धुक ..., धुक ..., धक ..., धक ...। उसी दिल में क्रोध की ज्वाला भी धधक रही थी। जैसे फूस की झोपड़ी वैशाख की दोपहरी में अग्नि को समर्पित हो गई हो। ध