प्रकृति से सभी आगे बढ़ना चाहते हैं ,सभी चाहते हैं कि उनको सभी प्यार करें ,उनकी प्रशंसा करें. बच्चा जब पेट में होता है ,तभी से उसमें यह भावना जन्म ले लेती है. वह जब गर्भ में मां को लात मारता है ,तो मां बड़ी खुश होती है। बच्चे का ध्यान आकर्षण करने का,प्रशंसा पाने का यह सरल तरीका होता है. प्रसिद्धि ,प्रशंसा पाने की महात्वाकांक्षा का जन्म पैदा होने के पहिले ही हो जाता है.
बच्चा जब बढ़ने लगता है तो घरवाले उसकी मुस्कान , हाव भाव की प्रशंसा ही नहीं करते ,ताली बजाकर उसे बार बार वही कार्य करने के लिए प्रोत्साहित भी करते हैं. यहीं से उसमें और ज्यादा प्रशंसा पाने, प्रसिद्धि पाने की महत्वाकांक्षा बढ़ने लगती है.
हमारा समाज यदि किसी मेंं कला है और आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा है तो वह उसको बढ़ावा देकर प्रसिद्ध कर देता है. प्रारंभिक प्रोत्साहन और महत्वाकांक्षा मिलकर व्यक्ति को घर, शहर,देश और विदेश तक प्रसिद्ध कर सकता है.
समाज की देश की आशायें उससे बढ़ने लगती हैं ,यदि वह उन पर खरा उतरता है तो अपनी प्रसिद्धि की चरम पर पहुंच सकता है. यदि उसमें घमंड ,अभिमान नहीं आता और वह जनता की भलाई का कार्य करता है ,तो उसके जीते तक ही नहीं ,मृत्यु परांत भी उसका आदर करते हैं ,उसे याद करते हैं. यदि उसकी महत्वाकांक्षा उसे तानाशाही बना देती है तो वह प्रसिद्धि की जगह बदनाम भी हो जाता है.
हिटलर बनना है या गांधी यह सब सही गलत महत्वाकांक्षा का असर है. प्रसिद्ध तो दोनों हैं पर अलग अलग अर्थों में. महान नेता हों ,महान योद्घा हों ,खिलाड़ी हों या वैज्ञानिक सभी प्रसिद्धि पाते हैं ,लेकिन उनकी महत्वाकांक्षा उनका भविष्य तय करते हैं.