मन स्वभाव से चंचल होता है,आज यहाँ ,तो कल कहीं और होता है. बचपन में मां ,फिर घर वाले और फिर खिलौने तक उसके प्यारे होते हैं. मन उनसे अलग होने को तैयार नहीं होता, किन्तु एक उम्र के बाद , इन सब को भूलकर एक नये मीत को अपने मन का मीत बना लेता है.जिन्दगी भर साथ निभाने के वायदे ,कस्में खायी जाती हैं.सबको अपना मीत प्यारा लगता है और मन को भाता है, इसीलिए मनमीत कहलाता है. मनमीतों की असली परीक्षा तब शुरू होती है जब समाज को ,घर वालों को इस बात की जानकारी होती है और वे उनके मिलन के विरुद्ध होते हैं.
मनमीतों की सबसे अच्छी स्थिति तब होती है जब दोनों तरफ वाले उन्हें बिना झिझक जिन्दगी भर साथ रहने, विवाह करने की अनुमति दे देते हैं.जो बहुत कम होता है. अधिकांशतः कोई न कोई उनके सम्बंधों पर उंगली उठा ही देता है. उस समय से मनमीतों की परीक्षा प्रारंभ होती है. बहुत से समाज ,घर वालों के सामने घुटने टेक देते हैं.जो विवाह कर एकदूसरे के हो जाते हैं ,उनको भी संयुक्त परिवार में अनेक परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है और कभी कभी परिवार बिखर जाते हैं.
मेरा सभी मनमीतों से यही निवेदन है कि यदिओखली में सिर दिया है तो मूसलों से नहीं डरना ,अपने अपने मनमीत का साथ मझधार में नहीं छोड़ना.