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जिस समय देव दुर्लभ परम पवित्र भारत-भूमि में विदेशी शासको की धार्मिक कट्टरता अपनी पराकाष्टा पर थी, कुराज्य का बोल-बाला था, भारतीय संस्कृति का गौरवमय भविष्य अन्धकार के सिकंजो में तड़प रहा था, उस समय महार
आचार्य श्रीरामानन्द जी एक उच्चकोटि के आध्यात्मिकमहापुरुष थे। आचार्य रामानन्दजी का जन्म कान्यकुब्जब्राह्मणकुल मे माघ-कृष्ण सप्तमी, शुक्रवार, संवत् १३२४ को प्रयाग में त्रिवेणी तट पर हुआ था। पिता का नाम
संत नामदेव का समय संवत् १३२७ वि० से संवत् १४०७ वि० है, इस पवित्र अवधि में उन्होंने दक्षिण और उत्तर भारत में संतमय की जिस प्रगाढ़ भगवद्भक्ति से परिपुष्टि की उसकी मौलिकता और अपूर्वता में तनिक भी संदेह नह
राजा भोज, परमार वंश के नवे राजा थे परमार वंशीय राजाओं ने मालवा की राजधानी धारा नगरी (वर्तमान धार) पर आठवी शताब्दी से लेकर चौदहवी शताब्दी के पूर्वार्ध तक शासन किया। भोज परमार, जिनसे बड़ा राजपूत क्षत्रिय
विक्रमादित्य का जन्म भगवान् शिव के वरदान से हुआ था। शिव ने उनका नामकरण जन्म से पहले ही कर दिया था, ऐसी मान्यता है। संभवतया इसी कारण विक्रम ने आजीवन अन्याय का पक्ष नहीं लिया। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम