प्रेमचंद और स्त्री
प्रेमचंद स्त्रियों को आधुनिक षिक्षा देने के विरोध थे और स्त्रियों की षिक्षा के सम्बंध में उनका दृस्टिकोण संकीर्णतावादी है,लेकिन यह भी स्पश्ट हैकि उनका विरोध पाष्चात्प नारी के आदर्ष को अपनाने के लिए प्रेरित करने वाली षिक्षा के प्रति है,मुझे खेेद है,हमारी बहनें पष्चिम का आदर्ष ले रही है जहां नारी ने अपना पद खो दिया है और सवाभिमान से गिरकर विलास की वस्तु बन गई है (षक्ति) कहानी में प्रेमचंद ने दिखाया है कि पाष्चात्यप नारी का अनुकरण करने वाली भारतीय नारी में त्याग ,सेवा ,आदि गुणों का लोप हो जाता है और वह व्यक्तिगत स्वार्थ को प्रधानता देती हैप्रेमचंद ने इस तथ्य को उजागर किया है कि सामाजिक अन्याय के प्रतिक्रिया स्वरूप ही भारत की षिक्षित नारी ,भारतीय नारी के जीवन आदर्ष को अस्वीकृत कर रही है प्रेमचंद एक ओर ,स्त्रियों की मौजुदा स्थिति से असंतुश्ट थे वहीं वह नारी मुक्ति के पष्चिमी आदर्ष के प्रति भी षंकालु थे ।सतीत्व ,मातृत्व ,सेवा ,करूणा जैसे आदर्ष के समक्ष ,पष्चिम के आधुनिक पंूजीवादी समाजों द्वारा प्रचारित मूल्यों को भारतीय संदर्भ में पूरी तरह से लागू करने में संकोच करते हैं।
संभवतः वह पूंजीवादी समाज के दुसप्रभावों के प्रति सषंकित थे वास्तव में प्रेमचंद का युग ही उन अन्तविरोधीयों का युग था ।