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परिचय

15 नवम्बर 2024

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झारखण्ड की राजधानी का एक शानदार मोहल्ले की आलीशान हवेली कुमुद सदन, ये हवेली है रेडीमेड गारमेंट के बहुत बड़े बिज़नेसमैन विकास अग्रवाल जी की | विकास अग्रवालजी के घर रिश्तेदारों से भरा था फिर भी सन्नाटा पसरा था क्योंकि एक दिन पहले ही विकास अग्रवाल जी का निधन हो गया | 

 अगर जो कोई दुनिया से चला जाता है तो उसके बारे में अच्छा ही कहना चाहिए इस परंपरा को कायम रखते हुए मैं उनके एक गुण पर ही चर्चा करुँगी, विकास अग्रवाल जी बिजनेसमैन होने के नाते बहुत किफायती थे, अपने घर के माली सूरज को ही उन्होंने अपने घर गार्ड भी बना रखा था | एक स्टाफ की तनख्वाह में वो दो काम करवा लेते थे | उनका मानना था कि माली सूरज दिन में बागवानी करे और जब बागवानी से फुरसत मिले तो वर्दी पहनकर गेट के बाहर बैठ गार्ड की ड्यूटी करे |  

वर्दी की पतलून, बनियान और कंधे पर एक गमछा रख माली सूरज पौधों में पानी दे रहा था अचानक ही सन्नाटा टुटा, मेन गेट पर ठक-ठक की आवाज़ हुई | सूरज ने में गेट में बनी छोटी खिड़की को खोलकर बहार की ओर झाँका, मामूली से कपडे में कपड़े में एक शख्स खड़ा था और उसके पीछे दो लड़कियां थीं | उनमें से एक ने बहुत अच्छे कपडे पहन रखे थे और दूसरे ने बहुत ही मामूली कपड़े पहने थे | 

उस शख्स ने सूरज से कहा - मैं रवि रसोइया, मेम साहब को खबर करो कि रवि रसोइया आया है | 

सूरज भाग कर अंदर गया, अंदर पर बहुत से लोग थे और सीढ़ी के कोने में फीकी गुलाबी साड़ी में 25-26 वर्षीय विकास अग्रवाल की बीवी माला थी | 

 सूरज ने ( माला ) से कहा कहा - मेम साहब बाहर रवि रसोइया आया है | 

माला झट से उठकर रसोई की ओर जाते हुए सूरज से बोली | 

माला (सूरज से) - मैं रसोई का पीछे का दरवाजा खोलती हूँ, उन्हें पीछे के दरवाजे से अंदर से अंदर आने को कहा | 

माला पीछे का दरवाजा खोल कर खड़ी होती है रवि वहां पहुँचता है | 

रवि रसोइया ( माला से ) - मेम साहब मुझे खबर मिली, बड़ा दुःख हुआ सुनकर | 

माला (रसोइये से धीमे स्वर में ) - होनी  को कौन टाल सकता है रवि भैया , अच्छा हुआ तुम  रसोई  मुश्किल हो रहा था, ये        

                                             दोनों कौन ? 

रवि रसोइया ( माला से ) - हमारी छोटी बहन है राधा और ये है प्रतिभा | ये काम में हमारी सहायता करेंगी | 

माला की नज़र बार प्रतिभा की ओर जा रही थी उसने बहुत सूंदर जुते, नारंगी की रंग बूटीदार सूंदर कुर्ती पहने हुए थी, घुंघराले बालों को उसने आगे कर रखा था और और बड़ी-बड़ी आँखों से इधर-उधर देख रही थी | 

माला ने तीन मचिया रवि को पकड़ाते हुए कहा - मैं अभी खाना पकने का सामान लाती हूँ | 

माला के जाते ही प्रतिभा ने रवि से पूछा - ये मरने वाले की कौन हैं ? 

रवि रसोइया (फुसफुसाते हुए) - मरने वाले की बीवी हैं, ज़रा धीरे बोलो | 

माला (आश्चर्य से ) - बाहर जो फोटो लगी थी वो तो बड़े बूढ़े उनकी बीवी इतनी यंग | 

राधा झट से प्रतिभा का हाथ खींच उसे चुप कराती है क्योंकि माला वहां खाना पकाने का सामान लेकर आ गयी थी |   

माला जब तक कुछ बोलती उसके पहले एक औरत आकर उसके गले लग जाती है और रोते हुए बोलने लगती है, हाय  भैया ! ये इतनी जल्दी कैसे चले गए फिर और जोर चिल्ला कर रोने लगी, हाय ! इतनी कम उम्र में तुम्हें विधवा बना गए |  

माला ने उस औरत को धीमे स्वर में कहा - होनी को कौन टाल सकता है | 

उस औरत को संभालते हुए माला कहती है - संभालिए अपने-आप होनी को हमें स्वीकार करना ही होगा  | 

प्रतिभा का ध्यान बार-बार माला की ओर जा रहा था, प्रतिभा को माला का व्यवहार अजीब लग रहा था, इस परिस्थिति में औरों को उसे सांत्वना देना चाहिए था पर वो बहुत सामान्य दिख रही थी और तो और रिश्तेदारों को सांत्वना दे रही थी | 

माला गुथने को आटा और खाना पकाने की बाकि सामग्री सूरज की तरफ बढ़ाती है, हरी सब्जियां काटने को राधा को देती है और प्याज काटने तो प्रतिभा को देती है | 

प्रतिभा झट से बोल पड़ती है - चोप्पिंग बोर्ड है क्या ?

माला प्रतिभा की तरफ देख कर मुस्कुराती है और चोपिंग बोर्ड लेकर देती है | 

प्रतिभा प्याज काटना शुरू करती है तो माला चुपचाप कड़ी उसे देख रही थी, प्रतिभा बहुत धीमे-धीमे प्याज का छिलका उतार रही थी और धीमे काट रही थी | 

एक मचिया लाकर माला भी वहां बैठ जाती है और रवि से पूछती है | 

माला (रवि रसोइया से ) - छोटी बहन राधा से काम करवाते हो, तनख्वाह देते हो या नहीं ? 

रवि रसोइया ( माला से ) - पुरे 40% लेते है मुझ से, काना मुझसे भी ज्यादा स्वादिष्ट खाना बनाती है | 

माला (रवि रसोइया से ) - बहन की शादी की नहीं सोच रहे ?

रवि रसोइया ( माला से ) - आपलोगों के आशीर्वाद से शादी तय हो गई राधा की | 

प्रतिभा राधा की तरफ देख इशारा करती है और राधा शर्म से लाल हो जाती है | 

माला (रवि रसोइया से ) - और प्रतिभा को तो तनख्वाह देते होगे | 

रवि रसोइया ( माला से ) - प्रतिभा को उसके काम के हिसाब से पैसे दूंगा | 

अचानक माला की नज़र दीवार पर लगी घडी पर पड़ती है  वो हड़बड़ाते हुए कहती है, सारे काम छड़कर पहले दादी का नाश्ता बना दो, कद्दू की सब्जी, दाल और रोटी | 

राधा जल्दी-जल्दी दादी का नाश्ता बनाती है और प्रतिभा माला के दादी के कमरे में नाश्ता देने जाती है | 

बड़ी हसमुख से थी दादी, दादी ने प्यार से प्रतिभा से बात की, नाम पूछा और नाश्ता करने लगी | 

प्रतिभा  लौट रही थी तो माला उसे टोक कर कहती है, यहीं रुको दादी को किसी चीज़ ज़रूरत पड़े तो देना | 

कमरे से बाहर जाते हुए माला ने प्रतिभे से अचानक ही कहा | 

माला ( प्रतिभा से  ) - तुम वैसी नहीं हो जैसा तुम्हें होना चाहिए | 

प्रतिभा ( माला से ) - मुझे भी आपके विषय में ऐसा ही महसूस हुआ | 

माला ( घबराकर प्रतिभा से  ) - मैं कुछ समझी नहीं | 

थोड़ी देर दोनों ही चुप रहे  | 

माला ( प्रतिभा से  ) - दरअसल मैं ये कहना चाहती थी कि तुम रसोइये परिवार की नहीं लगती | 

प्रतिभा ( माला से ) - आपको देख कर नहीं लगता के एक रोज़ पहले आपके ही पति का देहांत हुआ है | 

माला के चेहरे की हवाइयां उड़ जाती हैं, मानों प्रतिभा ने माला की चोरी पकड़ ली हो |
 

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रचनाएँ
झूठा सच
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दरअसल झूठ के होते हैं ढेरों रूप क्योंकि आज के दौर में इस बेहरुपीये झूठ की साख मजबूत हो गई है पर बिचारा सच अकेला सा ही खड़ा है हो भी क्यों ना सच को तो बस यूँ ही बोल दिया जाता है पर जब झूठ जब झूठ बोला जाता है तो जरूर होता है कोई ना कोई खास सा मकसद या कोई नियत खास सी जब किसी के झूठ में हामी भरी जाती है तो ज़रूर होता है कोई ना कोई खास ईरादा जब अपने कानों से झूठ को सुनने के बावजूद अनसुना किया जाता है तो या तो होती है कोई मजबूरी या होती है कोई नीति सच के साथ जो खड़ा होता उसे आत्मविश्वास है अटल सा कि उसे किस बात का भय वो तो सच के साथ है और सच है उसके साथ पर विडंबना यह है कि उसके अंदर बैठा सच अकेला सा ही खड़ा है ना तो कोई उसे सुनना चाहता है और ना ही उसे कोई जानना चाहता है पर ये क्या सच अकेला तो है फिर भी मुस्कुरा रहा है और सच मुस्कुराए भी क्यों ना वो जानता है कि जो सच के साथ खड़ा है या फिर सच जिसके साथ खड़ा है सही तो हमेशा वो ही होगा |

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