थोड़ा अधूरा है।सूरज निकला एक नई सुबह के लिए, चाँद रहा रात में ठंडक के लिए।नीले आसमान में तारे चमके खुद की सुंदरता दिखाने के लिए।नदियाँ बहती है इंसान संग धरती की प्यास बुझाने के लिए।विडम्बना है समाज के लिए यह राज नेता बने कीसके लिए।आत्मनिर्भर बनना आत्मसमान के लिए गोली खाई फाँसी खाई भारत की शान के लिए।
पानी को पानी रहने दोनदी अकेले बहकर अनेको घाट बनाती थी। हर घाट निराला होता था।पनघट मे पानी भारी बाल्टी रस्सी से खीच कर औरत सुस्ताती थी।भर मटका कलस फुरसत मे सखी सहेलियों से बतियाती थी, बेटी बहू।चरवाहा बैठ पेड़ की छांव मे मन से गीत गुंगुनाता, गीले होठो से। जानवर तालाबो मे डुबकी लगाते तैरते इतराते ले
भूख प्यास मजबूरी का आलम देखा,जब से होश संभाला केवल ग़म देखा। नहीं मिला ठहराव भटकते क़दमों को,जिसके भी मन में झाँका बेदम देखा। वादों और विवादों की तक़रीर सुनी,जख्मीं होंठों पर सूखा मरहम देखा। बिना किये बरसात बदरिया चली गई, कई मर्तबा ऐसा भी मौसम देखा। सर पे छप्पर नहीं मह्ज नीला अम्बर था,उन आंखों में स्वा