कुँए में गिरे शेर को बंदर भी आँखें दिखाता है। कीचड़ फँसे हाथी को कौआ भी चोंच मारता है।। मुसीबत में फँसा शेर भी लोमड़ी बन जाता है। मजबूरी के आगे किसी का जोर नहीं चलता है।। विवशता नई-नई सूझ-बू
धरती पर टिके रहने वाला उससे नीचे नहीं गिरता है। नदी पार करने वाला ही उसकी गहराई समझता है ।। सही वक्त पर बददुआ भी दुआ का काम कर जाता है । वक्त आने पर छोटा पत्थर बड़ी गाड़ी पलटा देता है।। शेर पर
भूख प्यास मजबूरी का आलम देखा,जब से होश संभाला केवल ग़म देखा। नहीं मिला ठहराव भटकते क़दमों को,जिसके भी मन में झाँका बेदम देखा। वादों और विवादों की तक़रीर सुनी,जख्मीं होंठों पर सूखा मरहम देखा। बिना किये बरसात बदरिया चली गई, कई मर्तबा ऐसा भी मौसम देखा। सर पे छप्पर नहीं मह्ज नीला अम्बर था,उन आंखों में स्वा