थोड़ा अधूरा है।
सूरज निकला एक नई सुबह के लिए, चाँद रहा रात में ठंडक के लिए।
नीले आसमान में तारे चमके खुद की सुंदरता दिखाने के लिए।
नदियाँ बहती है इंसान संग धरती की प्यास बुझाने के लिए।
विडम्बना है समाज के लिए यह राज नेता बने कीसके लिए।
आत्मनिर्भर बनना आत्मसमान के लिए गोली खाई फाँसी खाई भारत की शान के लिए।
ईस्टइंडिया से सबक नही सिखा अब भी पड़े हैं पूंजीपतियों के पीछे।
के देश मे विदेशी निवेश करें भारती उनकी गुलामी करे।
यह तो आत्मनिर्भर और आत्म सम्मन का अपमान है।
हमारी जगह, हमारा हुनर, हमारी ताकत दूसरे के अधीन हो।