"आओ, कुछ देर बैठें" आओ कुछ देर बैठें सुस्तायें पलकें झपकायें कुछ तुम सुनाओ कुछ हम बतायें मशीनों और वाहनों के इस शोर में, कहीं हम बतियाना न भूल जायें चलो कहीं चलें दूर पहाड़ों के पीछे या घने
"ऐ जिंदगी" हार माननी कभी सीखी न थी हमने पर आज जाना हार में भी एक मज़ा है महफ़िल में पहचाने जाना एक कला है पर कभी खो जाने में अपना मजा है भावनाओं को शब्द देना कविता है पर ख़ामोशी सब कहे तो कितना मज़
आभा
आभा- नाम तो दे दिया मुझे माता पिता ने- पर यह न सोचा कि मेरे न