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राह बने ख़ुद मंज़िल...

31 अगस्त 2015

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featured image शिशु के जन्म से ही जिस तरह उसके अनेकानेक नाम दिमाग़ में तैरने लगते हैं उसी तरह हम अक्सर ये भी तय करने लगते हैं कि अपने बच्चे को हम क्या बनाएंगे I हर माता-पिता अपने बच्चे के सुखद भविष्य की कामना करते हैं I बच्चों के लिए स्वयं कष्ट सहते हैं और उनकी सभी आवश्यक ज़रूरतें पूरी करने की भरपूर कोशिश करते हैं ताकि एक दिन उन्हें अच्छी नौकरी मिल सके, उनका भविष्य स्वर्णिम बन सके I पास-पड़ोस के बच्चों की सफलता देखकर वे भी अपनी संतान को डॉक्टर, इंजीनियर, वक़ील, आईएएस आदि बनाने के स्वप्न संजोते हैं I अपने मनमुताबिक करीअर का ख्व़ाब लिए, कई बार माता-पिता अपनी संतान पर दबाव भी बनाते हैं कि वो उनकी इच्छानुसार ही पढ़ाई करें I बहुत कम माता-पिता या संरक्षक ऐसे होते हैं जो बचपन से ही अपने बच्चे की रूचि पर ध्यान देते हैं, उसका मन टटोलते हैं और उसकी अभिरुचि के अनुसार उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देते हैं, प्रोत्साहित करते हैं I आज के दौर में ये ब्रह्म-वाक्य मान लिया गया है कि यदि अपनी संतान को डॉक्टर, इंजीनियर, वक़ील, आईएएस आदि बनाना है तो किसी तरह मंहगी से मंहगी कोचिंग का जुगाड़ करके कानपुर, कोटा, दिल्ली, पटना, इलाहाबाद जैसे शहरों में भेजना ही होगा I कोचिंग संस्थानों के शत-प्रतिशत रिज़ल्ट के दावे, उनकी भव्यता, उनका आकर्षण, मित्र-परिजनों की राय, सब मिलकर यही सिद्ध करते हैं कि विद्यार्थी का अपना दिमाग़ चाहे जैसा हो, उसकी सहज अभिरुचि चाहे जिन विषयों में हो, वे उसे गढ़कर हीरा बनाने का तिलिस्म जानते हैं I चौराहों, नुक्कड़ों पर लगी बड़ी-बड़ी होर्डिंग्स पर सफल विद्यार्थियों की रैंक और तस्वीरें तो मिलती हैं लेकिन उन्हीं रास्तों पर चलकर, उतना ही श्रम और धन व्यय करने वाले असफल रहे विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों की व्यथा शायद ही किसी ने सुनी हो I इसमें कोई संदेह नहीं कि नामी कोचिंग-सेण्टर यदि अच्छा पैसा लेते हैं तो अपनी ज़िम्मेदारी निभाने में भी कोई कसर बाक़ी नहीं रखते हैं I विद्यार्थी भी सफलता पाने के लिए अपनी क्षमता के अनुसार जी-जान लगा देते हैं I सवाल ये है कि फिर क्या वजह है कि अनेकानेक छात्र इस दौड़ में असफल रह जाते हैं ? जवाब, नि:संदेह एक ही है कि हम स्वयं अपनी संतान की सामान्य रूचि-अरुचि को उसके बचपन से पढ़ नहीं पाते या उस पर ध्यान नहीं दे पाते I हम अपने बच्चे की ‘बेसिक क्वालिटी’ नज़रंदाज़ कर देते हैं I नतीजा यह होता है कि हम अपने सपने उस पर थोपने की कोशिश करते हैं I सामान्यत: डॉक्टर, इंजीनियर, आईएएस, पीसीएस जैसे गिने-चुने करीअर हमारे दिमाग़ में होते हैं जबकि आज देश-दुनिया में करीअर की संभावनाओं के क्षेत्रों की संख्या, कल्पना से भी आगे क़दम रख चुकी है I कोई हमसे आकर कहे कि अपनी बेटी को बीटेक बेवजह कराओगे, इससे अच्छा तो उसे दाल-रोटी और अच्छे व्यंजन बनाने की ट्रेनिंग दिलाओ, सच मानिए उस व्यक्ति से हम दोबारा कभी बात भी न करें I लेकिन इससे आगे वो हमसे पूछे कि देश-दुनिया में स्वादिष्ट व्यंजन बनाने के लिए मशहूर किसी एक शख्शियत का नाम बता दो, तो बेशक हमें जनाब संजीव कपूर का नाम याद आ जाएगा I कितने ही ऐसे लोग हुए हैं जिन्होंने बने-बनाए रास्तों से हटकर, अपनी पसंद के मुताबिक राह चुनी और वो मंजिलें हासिल कीं जिन पर दुनिया ने गर्व किया I असली क़ामयाबी की ख़ातिर सही राह चुनने के लिए, बच्चे के भीतर छिपे हुनर और उसकी पसंद जानना-समझना बेहद ज़रूरी है I उसे जानकर ही आप उसके मन की राह पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकते हैं I अगर आपके बच्चे की रूचि डांस या म्यूजिक में है तो उसे उसी दिशा में आगे बढ़ाने की कोशिश करें क्योंकि वे उसके बुनियादी गुण हैं I यदि आपको यह लगता है कि बच्चे की पसंद के क्षेत्र में ट्रेनिंग की ज़रुरत है तो अपनी क्षमता के अनुसार प्रबंध कर सकते हैं I पूरे देश में लाखों छात्र कोचिंग के सहारे आगे बढ़ते हैं लेकिन आपने उन छात्रों के बारे में भी सुना होगा जो अभावों में रहते हुए, बिना किसी प्रोफेशनल कोचिंग के, सिर्फ अपनी लगन, कड़ी मेहनत और प्रतिभा के बल पर अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं और ऐसी प्रतिभाएं कितने ही लोगों के लिए एक मिसाल बन जाती हैं I
वर्तिका

वर्तिका

सच में, रूचि के अनुसार, करियर के क्षेत्र चुनने पर व्यक्ति सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ता हुआ चला जाता हैं|

1 सितम्बर 2015

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स्वातन्त्र्यं परमं सुखम्

14 अगस्त 2015
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स्वाधीनता में महान सुख है और पराधीनता में किंचित–मात्र भी सुख नहीं I पराधीनता दुखों की खान है I स्वाभिमानी व्यक्ति एक दिन भी परतंत्र रहना पसंद नहीं करता I उसका स्वाभिमान परतंत्रता के बंधन को तोड़ देना चाहता है I पराधीन व्यक्ति को चाहे कितना ही सुख, भोग और ऐश्वर्य प्राप्त हो, वह उसके लिए विष-तुल्य ही

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राह बने ख़ुद मंज़िल...

31 अगस्त 2015
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शिशु के जन्म से ही जिस तरह उसके अनेकानेक नाम दिमाग़ में तैरने लगते हैं उसी तरह हम अक्सर ये भी तय करने लगते हैं कि अपने बच्चे को हम क्या बनाएंगे I हर माता-पिता अपने बच्चे के सुखद भविष्य की कामना करते हैं I बच्चों के लिए स्वयं कष्ट सहते हैं और उनकी सभी आवश्यक ज़रूरतें पूरी करने की भरपूर कोशिश करते हैं त

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भारत की राजभाषा नीति‍ और शि‍क्षा नीति‍

16 नवम्बर 2015
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भारत की शि‍क्षा नीति‍ और राजभाषा नीतिराहुल खटे, उप प्रबंधक (राजभाषा),स्‍टेट बैंक ऑफ मैसूर, हुब्‍बल्‍लीमोबाइल 09483081656E-Mail: rahulkhate@gmail.comजैसा कि‍ सभी जानते हैं भारत 15 अगस्‍त 1947 को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद हुआ। सभी यही समझते हैं कि‍ हम उस दि‍न स्‍वतंत्र हुए। लेकि‍न यह एक बहुत बड

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भारतीय सेना का ये कैसा सम्मान

18 अक्टूबर 2016
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वो #सरहद पर लड़ता है ताकि हम चैन से सो सके और हम उसे बैठने तक की जगह नहीं देते क्योकि पढ़े लिखे शिक्षित लोग है हम भारतीय सेना

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