में एक सहायक प्रोफेसर इतिहास हुईं और हिंदी में ही लिखता हुईं
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मेरी कविताएं और तुम
अपनी आँखों के रस को मुझे अपने ऑंठो से पी लेने दोकुछ ही दिन है मेरे तेरे साथ उनको तो जी भर जी लेने दो राकेश मोहन ''कटकाणी''