(प्राकृतिक आपदाओं का कारण और हम)
भारत आज विकसित देशों से हाथ मिला रहा है ,और विकसित देश भी भारत के विकास में सहायता कर रहे हैं। पर भारत की आधी से ज्यादा जनसंख्या ,समस्याओं से जूझ रही है ।
हम अंग्रेजों के अत्याचारी शासन से अवश्य स्वतंत्र हो गए, पर हमारी समस्याओं ने भारतीयों को अब तक अपने अधीन किया हुआ है ।
समस्या घटने के स्थान पर, नित नए विस्तृत आकार में हमारे सम्मुख खड़ी हो रही है।
बाढ़ ,भूकंप, सूखा आदि से जनता आखिर कब तक बेघर होती रहेगी ,कब तक गरीब इन समस्याओं के आगे घुटने टेकते हुए ,भुखमरी के शिकार होते रहेंगे ।
हरसाल समुद्री तूफान कब तक तबाही मचाएगा ,?आखिर कब थमेगा प्रकृति का तांडव ?
प्राकृतिक आपदा से बेघर हुए भूखे नंगे लोगों का नेताओं द्वारा हवाई सर्वेक्षण और खाने के पैकटों के वितरण मात्र से अस्थाई राहत ही मिलती है ।
इन सब समस्याओं को प्राकृतिक आपदा कहकर ,स्वयं को हम इससे मुक्त करना चाहते हैं ।
समस्या पीड़ित परिवार हर बार अपनी अनिश्चित गृहस्थी को तिनका तिनका एकत्र कर जोड़ता है ,और अचानक सब कुछ धूमिल हो जाता है ।
प्राकृतिक आपदाएं इनको सदियों पीछे धकेलती जाती हैं। इन परिवारों के लिए समस्याओं से राहत ही आजादी और विकास है ।
प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर, उनको पहले ही सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना होगा। प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें स्वयं द्वारा किए जा रहे प्रकृति पर अत्याचार और स्वयं के विस्तार को रोकना होगा। भारत प्राकृतिक आपदाओं का सही पूर्वानुमान लगा सकने में विज्ञान से काफी पीछे है ।यदि देश इस क्षेत्र में तरक्की कर ले तो जान व माल की क्षति न्यूनतम की जा सकती है ।दूसरी बात यह है कि प्रकृति से छेड़छाड़ उसके संतुलन को अस्थिर कर रही है ।वनों का कटान आपदाओं का एक मुख्य कारण है ,कटान के लिए बढ़ती जनसंख्या भी जिम्मेदार है ,आवास की समस्या का निदान वनो को काट काटकर बनाई जा रही कालोनियां भी हैं ,
अतः जनसंख्या बढ़ाने के स्थान पर वृक्षों की संख्या बढ़ानी होगी ,तभी हम प्रकृति का संतुलन बना सकेंगे ।वनों के कटान के साथ-साथ ,हमारे द्वारा पहाड़ों का भी कटान किया जा रहा है ।पहाड़ों के कटान के लिए प्रयोग होने वाले विस्फोट आसपास का वातावरण हिला देते हैं ,और पृथ्वी के भीतर तक हलचल मचा देते हैं ।
इसका परिणाम हमारे सामने भूकंप के रूप में आता है ।वनों के कटान के साथ हमें पहाड़ों के कटान को भी सीमित करना होगा, हमारे द्वारा निरंतर जल दोहन और जल की बर्बादी आने वाली पीढ़ी के लिए विकट समस्या के रूप में खड़ी होगी ,हमें अपने प्राकृतिक संसाधनों का उचित सम्मान के साथ उचित उपयोग करना होगा तभी हम प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रह सकते हैं।