कब मिले ,कब मित्रता ने अटूट अपनत्व धारण कर लिया, पता। न चला पर हमने मित्रता की डगर पकड ली ।
स्कूल भी हमारा साथ रहा तो दोनों एक ही क्लास में तो मित्रता का रिश्ता और प्रगाढ हो गया ।जया के बारे में पूछने पर एक साथ जबाब आता जहां ललिता होगी वहां ही जया होगी ।
लंच में वह घर का बना ताजा मक्खन लाती और फिर सारा मक्खन मेरे लंच बाक्स में होता और मेरे लंचबाक्स की सब्जी और अचार का स्वाद लेती ।
हाई स्कूल में परीक्षा परिणाम भी बिलकुल एक सा, साथ साथ चलते चलते इन्टरमीडिएट का भी रिजल्ट एक सा था, पर दोनों की प्रथम श्रेणी एक एक नम्बर से ली थीं ज्यादा नम्बर का अन्तर होता तो ज्यादा दुःख न होता प्रैक्टिकल सब्जेक्ट वालों की प्रथम श्रेणी आई थी आगे प्रतियोगिता की तैयारी के हिसाब से हमने विस्तृत विषय लिए थे ।
इन्टरमीडिट के बाद रेल्वे में कार्यरत उसके पिताजी का स्थानान्तरण बरेली हो गया पर हम मित्रता में इतने आत्मसात हो चुके थे कि एक दूसरे को मन से पास में ही महसूस किया तो दूरी हमें खली नहीं ,दूसरे शहर में जाने पर भी ललिता मेरे जन्मदिन पर हमारे घर जरूर आती और अनकही बातों का सिलसिला आधी रात तक चलता उसकी उपस्थिति जन्मदिन को खास बना देती ।
जून और दिसम्बर के आखरी रविवार को मेरा इन्तजार ललिता का पूरा परिवार करता, ललिता की मम्मी के हाथ की कढी का स्वाद आज भी मैं भूल नहीं पाई हूं, आन्टी मेरे लिए कढी चावल बनाती और आन्टी के हाथों बने आलू के पराठे अचार और दही के साथ बहुत ही स्वादिष्ट होते ।आज आन्टी जी नहीं है पर उनका अपनापन याद आता है ।
हम दोनों आज भी एक दूसरे के जन्मदिन पर फोन पर ढेरों बात करते हैं ।घर में सबको पता है कि महीनों हो जाए फोन पर बात करे पर मेरे जन्मदिन पर ललिता का फोन आएगा ही आएगा ,घर में मेरे साथ सबको इन्तजार होता है ,उसके फोन का देर होने पर पूछ ही लिया जाता है ,अभी फोन नहीं आया ,ललिता का ,मेरे जन्मदिन का सबसे बड़ा तोहफ़ा ललिता से ढेरों बातें करना ।
विश्वास और अपनेपन की मिठास में पगी हमारी दोस्ती वर्षों बाद भी नई नवेली सी लगती है ।

जया शर्मा