. दिव्य शक्तियों से परिपूर्ण नवरात्रि
हिन्दूसंस्कृति के दिव्य दिवस नवरात्रि में माता की आराधना में समर्पित भक्तों के साथ, प्रकृति भी अपने पुराने स्वरूप को छोड़कर नव हो जाती है ।
भारतीय संस्कृति में देवी दुर्गा को सर्वोच्च सर्वशक्ति संपन्न देवी के स्वरूप में स्थान दिया गया है।
शक्ति को मां के रूप में देखना और पुकारना हमारी भारतीय संस्कृति की विशिष्टता है ।
नवरात्रि में मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की आराधना करते हुए ,भक्त मां और संतानके अटूट संबंध को प्रगाढ़ता प्रदान करते हैं ।
मां दुर्गा के नवरात्रों में भक्त प्रार्थना,ध्यान ,उपवास और मौन धारण कर मां की भक्ति से ,अपने मानसिक और शारीरिक शुद्धीकरण की याचना करते हुए , मां की कृपा का वरदान मांगते हैं ।
नवरात्रि में देवी शक्ति के नव स्वरूपों का पूजन किया जाता है ।
पहले तीन दिन हम मां दुर्गा का ध्यान करते हैं ,जिससे हमको पराक्रम स्वावलंबनऔर आत्मविश्वास की शक्ति प्राप्त होती है ।
अगले तीन दिन हम लक्ष्मी स्वरूपा शुभांगी की प्रतिमूर्ति का ध्यान करते हैं ।
अन्य तीन दिन हम मां ज्ञान की प्रतिमूर्ति सरस्वती की आराधना करते हैं ।
मां दुर्गा ने असुर शक्ति का विनाश कर शांति की स्थापना के लिए स्वयं को प्रकट किया ।
मधु ,कैटभ, शुंभ ,निशुंभ और महिषासुर का अंत कर, शक्ति और शांति का संचार किया।
नकारात्मक शक्तियों के प्रति इन असुरों का विनाश कर मां दुर्गा ने तीनों लोकों में सुख,शान्ति और शक्ति को स्थापित किया ।
मधु राग का, कैटभ द्वेष का प्रतीक है ,महिषासुर का अर्थ है आलस्य और प्रमाद ,और शुंभ निष्क्रियता का प्रतीक है ,शुभं अर्थात आत्मविश्वास का ना होना ।
निशुंभ का अर्थ किसी पर भी विश्वास ना करना, यह सभी प्रवृत्तियां हमारे चरित्र में सम्मिलित होकर हमको हमारे समाज से भिन्न कर छिन्न-भिन्न कर देती हैं।
इन दुष्कर प्रवृत्तियों के प्रति बैराग्य की भावना जागृत करना ही शक्ति उपासना है ।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै ,नमस्तस्यै नमो नमः ।।
मां दुर्गा ने जिन राक्षसों का नाश किया वह राक्षस दूसरे अर्थों में हमारे भीतर समाविष्ट हैं , मां दुर्गा हमारे भीतर की दुष्ट प्रवृत्तियों का नाश करती हैं, शक्ति रूप में, श्रद्धा रूप में ,दया रूप में ,बुद्धि रूप और क्षमा आदि रूपों में मां को अपने भीतर बैठा कर हम अपनी दुष्ट प्रवृत्तियों से युद्ध कर उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं ।
राग ,द्वेष और आलस्य रूपी शत्रु हमारे व्यवहार में प्रकट होकर शत्रुवत् आचरण कर हमको हम से ही परे कर देते हैं ।
नवरात्रि उत्सव है आत्मा और प्राण का जो स्वतः ही इन असुरों का नाश कर देता है , नवरात्रि में मां दुर्गा की उपासना से हमारे तन और मन में सतोगुण का वास हो जाता है ,और हम शांत और सक्रिय हो जाते हैं ।
शुद्ध चेतना हमारे अंतः और बाह्य दोनों जगह व्याप्त है और उस दिव्य चेतना का ध्यान और आराधन ही नवरात्र है ।
मां दुर्गा के नौ स्वरूपों का आराधन और ध्यान हमारे भीतर अंतः करण में उर्जा भरते हुए ओजस्विता के साथ स्वाबलंबन और स्वाभिमान की और अग्रसर करते हैं ।
जया शर्मा प्रियवंदा