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हिन्दी की दशा और दिशा

10 जनवरी 2023

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(हिन्दी की दशा और दिशा)
हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है । भारत में हिन्दी भाषा बोलने वाले और उसे समझने वालों की संख्या अन्य भाषाओं की तुलना में अधिक है ।हिन्दी भाषा में प्रान्तीय बोलियों के शब्द मिश्रित कर हम हिन्दी की लोकप्रियता और सहजता के नाम पर हम इसके स्वरूप को निरंतर क्षीण करते जा रहे हैं ।
कहीं अपनी कुंठाजनित हीन भावना और कहीं छिछले   ज्ञान के प्रदर्शन के व्यामोह ने हिन्दी को जो रूप प्रदान किया वह रूप के स्थान पर विद्रूप ही है ।
भारतीय भाषाओं में हिन्दी को संस्कृत भाषा का उत्तराधिकार प्राप्त है और समस्त प्रांतीय भाषाओं को आपस में बांधने का सामर्थ्य है ,प्रांतीय भाषाओं के लिए हिन्दी भाषा दुर्ग सदर्श है ।अपनी प्रांतीय भाषाओं की समर्द्धी के लिए प्रथम हिन्दी भाषा को समर्द्ध बनाना होगा ।
   हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि जिस आदर सत्कार के साथ हम विदेशी भाषाओं के शब्दों का प्रयोग कर अपनी भाषा में चमक लाने की कोशिश करते हैं, क्या उसी तरह विदेशी भी अपनी भाषा में हिन्दी शब्दों का प्रयोग करते हैं? तो हम ही क्यों अपनी भाषा में विदेशी शब्दों का प्रयोग उसके मूल स्वरूप को धूमिल कर रहे हैं? 
विश्व के सभी देशों की पहचान उसकी राष्ट्र भाषा से होती है ,अतः विश्व के आगे अपनी व अपने देश की पहचान राष्ट्र भाषा के माध्यम से ही होनी चाहिए ।दो भिन्न देशों के लोगों में वार्तालाप के लिए संपर्क भाषा अंग्रेजी का प्रयोग मान्य है, पर अपने देश के लोगों के बीच उचित नहीं ।
अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं का ञान प्रतिभा मानी जा सकती है पर गौरव नहीं ।
आपसी संबंध और संपर्क को प्रगाढ बनाने के लिए भाषा ही सर्वोत्तम माध्यम है ।हिन्दी के प्रति जैसी मानसिकता हमारे देश में है शायद ऐसा नमूना अन्यत्र हमें खोजने से भी न मिले ।
प्रत्येक नगर में लोगों को सभ्य बनाने के लिए अंग्रेजी स्पीकिंग कोर्स खुल गए हैं, हिन्दी स्पीकिंग कोर्स की महत्ता हमें क्यों नहीं समझ आती ।
सर्वत्र अंग्रेजी ञान रखने वाले को प्राथमिकता दी जाती हैं, आज प्राथमिक विद्यालयों में भी धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने वालों को प्राथमिकता दी जाती है इन संस्थानों, विद्यालयों के संचालक नहीं जानना चाहते कि उनके प्रतिष्ठान में कार्यरत शिक्षकों का हिन्दी का  ज्ञान कितना प्रबल है ।
हिन्दी ज्ञान का प्रश्न हमारी अस्मिता का प्रश्न है ।यह हमारी पहचान है इसे हमें अपनी जीवनशैली का अंग बनाना होगा, तभी हिन्दी और हमारा हित सुरक्षित है ।

जया शर्मा
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