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(राम भरोसे भारतीय न्यायालय कहानी 2री किश्त)

1 फरवरी 2022

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“रामभरोस भारतीय “ न्यायालय (  दूसरी किश्त)

       उधर निगम कमिश्नर के आफ़िस के आगे रामभरोसे रोज़  सुबह 10 से शाम 5 तक बैठने लगा तो कमिश्नर परेशान हो गया और बगीचे की फ़ाइल मंगा कर अद्ध्ययन करने लगा साथ ही निगम के राजस्व अधिकारी को आफ़िस बुला कर इस प्रकरण को समझने का प्रयास करने लगे । कुछ घंटों की

माथा पच्ची के बाद उन्हें समझ आ गया कि वास्तव में बगीचा जिस ज़मीन पर बनाया गया है वह निगम की ज़मीन नहीं है बल्कि रामभरोसे की ही ज़मीन है  । निगम की ज़मीन उस ज़मीन से 5 सौ फ़ीट की दूरी पर स्थित है और उस ज़मीन के बीचों बीच नाला बहता है जिसके कारण निगम की यह ज़मीन दो हिस्से में बंट गई है । आधी ज़मीन नाले के उत्तर दिशा में व आधी ज़मीन नाले के दक्षिण दिशा में । इसके कारण वह ज़मीन समग्र रूप से उपयोग के लायक नहीं थी । उसमें बगीचा बनाना तो किसी सूरत में भी उपयोगी  नहीं होता ।  कमिश्नर को पता तो चल गया कि जिस ज़मीन पर बगीचा बनाया गया है वह ज़मीन रामभरोसे की ही है । उन्हें यह भी बताया गया कि बगीचे के निर्माण में निगम का लगभग 10 लाख रुपिये लग गया है। निगम का इतना पैसा बगीचे के निर्माण में लग चुका है ऐसी जानकारी मिलते ही कमिश्नर ने अपने राज्स्व अधिकारी व अन्य आफ़िसरों को निर्देश दिया कि ऐसा कुछ करो कि रामभरोसे निगम की पांच एकड़ ज़मीन लेले और अपनी ज़मीन निगम को देदे। यही तरीका निगम के हित में होगा । वरना आडिट में जवाब देना मुश्किल हो जायेगा । रामभरोसे पर ज़ोर डालो वह वैसा ही करे जैसा हम चाहते हैं । न माने तो इतना दबाव बनाओ की टूट जाये । इसके बावजूद वह न माने तो मामले को कछुवे की चाल में चलने दो ताकी थक हार कर वह सरेडंर कर दे और हमारी बात मान ले।

           बस क्या था । कागजों पर कूट रचना का पुराना खेल फिर खेला जाने लगा । पार्क की ज़मीन को निगम का दिखाया जाने लगा और नाले के पास कि निगम की ज़मीन को रामभरोसे की दिखाया जाने लगा । चार महीने तक रामभरोसे , नगर निगम के आफ़िसों का चक्कर लगाते रहा पर उसे कहीं से न कोई रिलीफ़ मिली न ही कोई सार्थक जवाब ही मिला । कम पढा लिखा होने के कारण रामभरोसे को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर करूं तो क्या करूं ? वह अपने दोस्त सुदामा के साथ दुर्ग के विधायक और दुर्ग के सांसद से मिलकर भी अपनी व्यथा सुना चुका था । उन दोनों ने रामभरोसा को भरोसा दिलाया और रामभरोसा को आश्वासन दिया कि हम तुम्हें ज़रूर न्याय दिलायेंगे । लेकिन उनका आश्वासन कोरा आश्वासन ही निकला । दोनों ने एक खत भी निगम को नहीं लिखा । चूंकि नगम का कमिश्नर एक तेज़-तर्र्रार आइ-ए- एस आफ़िसर था अत: मिडिया वालों ने भी इस मुद्दे को उठाने में कोई रुचि नहीं दिखाई । “ रामराज्य “ समाचार पत्र के संपादक ने यह कह कर अपना पल्ला झाड़ लिया कि इतनी छोटी सी बात को उछाल कर हम प्रशासन से दुश्मनी मोल लेना नहीं चाहते । इस बीच एक दिन रामभरोसे की पत्नी लक्ष्मी देवी हार्टअटेक के कारण  स्वर्ग सिधार गई । अब रामभरोसे संसार में बिल्कुल अकेला रह गया । न कोई बेटा बेटी , न ही भाई- बहन न ही कोई और रिश्तेदार । उसे उम्मीद थी कि शहर के कुछ भले लोग इस लड़ाई में उसका साथ ज़रूर देंगे । उसने कुछ सामाजिक संगठनों से भी मदद की गुहार लगाई पर सब ने कुछ न कुछ बहाना बनाकर रामभरोसे को टरका दिया । अंत में जब मदद की सारी आस टूट गई तो रामभरोसे ने मोतीपारा वाला अपना घर सेठ अमीर चद के पास गिरवी रखकर न्यायालय में निगम के विरूद्ध एक वाद दायर किया । उसने इस केस के लिये नारद दुर्गवी को अपना वक़ील बनाया । जिसने केस जीतने क भरोसा दिलाकर रामभरोसे से एक मोटी रकम ऐंठ लिया । वक़ील नारद दुर्गवी उधर निगम से भी मिल गया और वहां से भी कुछ रकम प्राप्त करके रामभरोसे को धोखा देता रहा और उसके केस को कमज़ोर करता रहा । इस तरह लोअर कोर्ट से रामभरोसे अपना केस हार गया । लोअर कोर्ट से हार जाने के बाद रामभरोसे ने हाईकोर्ट में एक नये वक़ील सत्यप्रकाश के माद्ध्यम से अपील करवाया । हायर कोर्ट में भी लंबा वक़्त गुज़र गया और उसे सिर्फ़ तारीख़ पर तारीख़ मिलती रही । इस बीच नगर निगम ने रामभरोसे को ख़बर भिजवाया के केस वापस लेलो और वहीं स्थित निगम की 5 एक्ड़ ज़मीन हम आपके नाम रजिस्टर करवा देंगे । रामभरोसे ने सोचा भागते भूत की लंगोटी ही सही । उसने निगम का यह आफ़र स्वीकार कर लिया और जेठ के महीने में उस उबड़ खाबड़ ज़मीन को समतल करना प्रारंभ किया । कुछ दिनों के आराम के बाद बीज डालने का समय आने वाला था । इस बीच 10 दिनों के लिए रामभरोसे को कुछ काम के लिए मुंगेली जाना पड़ा । 10 दिनों बाद जब वह दुर्ग वापसा आया और निगम से स्वीकार की हुई अपनी ज़मीन पर बीज बोने के लिए गया तो । उसने देखा कि उस ज़मीन पर एक बोर्ड लगा है जिस पर लिखा है यह ज़मीन  “हाउसिंग बोर्ड दुर्ग की ज़मीन है” । 
( क्रमश:)
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रामभरोसे एक छोटा किसान है। दिर्ग शहर के बाहर के हिस्से में 5 एकड़ जमीन है।जिसे दुर्ग नगर निगम कानूनी रूप से अधिगृहित किये बिना अपने कब्जे में लेकर एक बगीचा बनाना प्रारंभ कर देता है। राम भरोसे इसके विरोध मेँ कै जगह गुहार लगाता है। पर कहीं उसकी सुनवाई नहीं होती।अंत में उसे अदालत का शरण लेना पडता था।
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“रामभरोस भारतीय “ न्यायालय ( अंतिम क़िश्त )अब तक ( कोर्ट ने रामभरोसे को कहा की आप जो भी निर्णय लेते हैं 30 दिनों के अंदर हमें बता दीजिये ।)

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