“रामभरोस भारतीय “ न्यायालय ( अंतिम क़िश्त )
अब तक ( कोर्ट ने रामभरोसे को कहा की आप जो भी निर्णय लेते हैं 30 दिनों के अंदर हमें बता दीजिये ।)
रामभरोसे ने सुप्रीम कोर्ट की बातों का पालन करने का मन बना लिया था । इस बीच रामभरोसे को मालूम हुआ कि दुर्ग न्यायालय को भी अपने नये भवन के लिए 5 एकड़ ज़मीन की जरूरत है क्यूंकि वर्तमान में पुराना भवन छोटा पड़ने लगा है । इस जानकारी के मिलते ही रामभरोसे के माथे पर ख़ुशी की लहरे दिखने लगीं । उसने तुरंत ही अपने दोस्त के साथ मिलकर एक आवेदन बनाकर दुर्ग न्यायालय के मुखिया के नाम आवेदन दिया और उसकी एक कापी सुप्रीम कोर्ट को भी भेज दी । आवेदन का मसौदा यह था मान्यवर मैं अपनी 5 एकड़ ज़मीन दुर्ग न्यायालय को दान स्वरूप देना चाहता हूं । मेरी उपरोक्त ज़मीन पुलगांव चौक पर स्थित है । दान के साथ मेरी दो शर्तें भी है। चूंकि मैं 85 वर्ष का हो चुका हूं मेरा न कोई आल औलाद है न ही मेरा कोई आय का साधन है। अत: मैं हर महीने एक निश्चित राशि जो भी आप उचित समझें अपने जीवन यापन के लिये मरते तक चाहता हूं । मेरी दूसरी शर्त है कि न्यायालय भवन का नाम मेरे ही नाम से रहे और उसमें ऐसी कंडिका हो कि मेरे नाम को अनंत काल तक किसी भी हालत में बदला न जा सके। दुर्ग कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के द्वारा उपरोक्त आफ़र 15 दिनों के अंदर ही स्वीकार कर लिया गया । दुर्ग कोर्ट में रामभरोसे को डी.जे. द्वारा बुलाकार सारे पेपर्स तैयार करवाये गये । उन कागज़ात को कानूनी जामा पहनाया गया और सारी बातों का उल्लेख करके उन कागज़ात को रजिस्टर्ड करवाया गया । इसके साथ ही रामभरोसे की 5 एकड़ ज़मीन शर्तों के साथ दुर्ग न्यायालय के नाम हो गई ।
ज़मीन दान के ऐवज़ में रामभरोसे को 10000 रुपिये मासिक ता-उम्र दुर्ग न्यायालय द्वारा दिया जाना तय हुआ और यह पैसा महंगाई के हिसाब से यथोचित बढाया भी जाएगा जैसे की सरकारी कर्मचारियों का डी. ए. बढता है।
जैसे ही नगर निगम दुर्ग के अधिकारियों को पता चला कि रामभरोसे की उपरोक्त ज़मीन जिस पर निगम का बगीचा बन गया है को रामभरोसे ने दुर्ग न्यायालय को दान में दे दिया है तो वे सक्ते में आ गये और बिना ना नुकुर किये व देरी किये बिना बगीचे को बंद करवा दिया गया । निगम ने अपना कब्ज़ा छोड़कर दुर्ग न्यायालय में आवेदन दे दिया के उपरोक्त ज़मीन से हमने अपना कब्ज़ा छोड़ दिया है कृपिया आप उस ज़मीन को अपने पसेसन में ले लीजिये । इस तरह ज़मीन का अधिकार दुर्ग कोर्ट को कानूनी तौर से मिल गया तो तेज़ी से निर्माण कार्य भी प्रारंभ हो गया ।
दो साल में न्यायालय भवन का निर्माण पूर्ण हो गया । आज उस भवन का उद्घाटन है । इसके उपलक्ष में एक बड़ा जलसा होने जा रहा है । भवन का उद्घाटन करने राष्ट्रपति महोदय व सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश आ रहे हैं । बेहद शानदार भव्य भवन बना है । भवन 3 मंज़िला है और भवन के सबसे उपरी मंज़िल के बाउंडरी वाल पे बड़े बड़े अक्षरों में लिखा गया है “ रामभरोसे भारतीय न्यायालय दुर्ग "। बड़े ही दुख की बात है कि आज “ रामभरोसे” ज़िंदा नहीं हैं वरना उन्हें न्यायालय-भवन व उस भवन पर अपना नाम लिखा देख बड़ी ख़ुशी होती ।
राष्ट्रपति जी पहुंच चुके हैं व उनका उद्बोधन चल रहा है । उन्होंने उद्बोधन में कहा कि नये इस परिसर में अब न्यायालयीन कार्य बड़े ही तरतीब से जल्द निपटाये जायेंगे ऐसा मुझे विश्वास है। मुझे ये भी भरोसा है कि “ रामभरोसे भारतीय न्यायालय दुर्ग " की कलम को अब ख़ुद भगवान चलायेंगे । अत: त्वरित व उचित न्याय देने में अब दुर्ग का नाम सारे देश में सबसे उपर होगा । मैं चाहता हूं कि जो माडल “ रामभरोसे भारतीय न्यायालय दुर्ग " ने अपनाया है वही माडल देश के अन्य न्यायालय भी अपनायें । बस हमें हर शहर में कम से कम एक व्यक्ति रामभरोसे भारतीय जैसा मिल जाये तो सारी न्यायिक व्यवस्था दुरुस्त हो जायेगी । रामभरोसे भारतीय ने दुर्ग़ न्यायालय के लिए ज़मीन दान में देकर एक अनुकरणीय काम किया है । वे ज़रूर इस न्यायालय की व्यवस्था से प्रभावित रहें होंगे, तभी तो उन्होंने ज़मीन दान में दिया है । आइयें 2 मिनट का मौन रखकर हम उन्हें श्रद्धान्जलि अर्पित करें व भगवान से उनके लिए आत्मा की शान्ति का वरदान मांगें । श्रद्धान्जलि सभा के बाद कार्यक्रम की समाप्ति की घोषणा हो गई । आज के इस कार्यक्रम में शहर के नामी गिरामी वक़ीलों के अलावा , नेता गण , पत्रकार गण , नगरनिगम दुर्ग के पूर्व प्रशासक हरीश चंद व हाउसिंग बोर्ग़ दुर्ग के पूर्व मुखिया सुच्चा सिंग भी उपस्थित थे ।
( समाप्त)