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राम नरेश त्रिपाठी के बारे में

हिन्दी साहित्य के विख्यात कवि रामनरेश त्रिपाठी का जन्म 4 मार्च सन् 1889 ई० में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के कोइरीपुर ग्राम में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। इनके पिता रामदत्त त्रिपाठी एक आस्तिक ब्राह्मण थे। सेना में सूबेदार पद पर रह चुके रामदत्त त्रिपाठी के परिवार से ही पुत्र रामनरेश त्रिपाठी को निर्भीकता, दृढ़ता और आत्मविश्वास के गुण प्राप्त थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के एक प्राइमरी स्कूल में हुई। इन्होंने नवीं कक्षा तक स्कूल में पढाई की तथा बाद में स्वतन्त्र अध्ययन और देशाटन से असाधारण ज्ञान प्राप्त किया और साहित्य साधना को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। इन्हें केवल हिन्दी ही नहीं वरन् अंग्रेजी, संस्कृत, बंगला और गुजराती भाषाओं का भी अच्छा ज्ञान था। इनकी मुख्य काव्य कृतियाँ हैं- 'मिलन, 'पथिक, 'स्वप्न तथा 'मानसी। रामनरेश त्रिपाठी ने लोक-गीतों के चयन के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी और सौराष्ट्र से गुवाहाटी तक सारे देश का भ्रमण किया। 'स्वप्न' पर इन्हें हिंदुस्तान अकादमी का पुरस्कार मिला। भाषा-शैली त्रिपाठी जी की भाषा भावानुकूल, प्रवाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों एवंसामासिक पदों की भाषा में अधिकता है| शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रवाहमयी है। मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है। त्रिपाठी जी एक बहुमुखी प्रतिभा वाले साहित्यकार माने जाते हैं। द्विवेदी युग के सभी प्रमुख प्रवृत्तियाँ उनकी कविताओं में मिलती हैं। फतेहपुर में पं॰ त्रिपाठी की साहित्य साधना की शुरुआत होने के बाद उन्होंने उन दिनों तमाम छोटे-बडे बालोपयोगी काव्य संग्रह, सामाजिक उपन्यास और हिन्दी में महाभारत लिखे। उन्होंने हिन्दी तथा संस्कृत के सम्पूर्ण साहित्य का गहन अध्ययन किया। त्रिपाठी जी पर तुलसीदास व उनकी अमर रचना रामचरित मानस का गहरा प्रभाव था, वह मानस को घर घर त

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राम नरेश त्रिपाठी की पुस्तकें

मानसी

मानसी

कवि कहता है कि इन्हें देखकर मेरे हृदय में यह उत्साह हमेशा भरा रहता है कि मैं इस विशाल विस्तृत और महान सागर रूपी घर के कोने-कोने में जाऊँ और इसकी लहरों में बैठकर जी भर कर इसमें घूमूँ। निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा। कमला के कंचन-मंदिर का म

3 पाठक
79 रचनाएँ

निःशुल्क

मानसी

मानसी

कवि कहता है कि इन्हें देखकर मेरे हृदय में यह उत्साह हमेशा भरा रहता है कि मैं इस विशाल विस्तृत और महान सागर रूपी घर के कोने-कोने में जाऊँ और इसकी लहरों में बैठकर जी भर कर इसमें घूमूँ। निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा। कमला के कंचन-मंदिर का म

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राम नरेश त्रिपाठी के लेख

अतुलनीय जिनके प्रताप का

17 अगस्त 2022
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अतुलनीय जिनके प्रताप का, साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर। घूम घूम कर देख चुका है, जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर। देख चुके है जिनका वैभव, ये नभ के अनंत तारागण। अगणित बार सुन चुका है नभ, जिनका विजय-घोष

निशीथ-चिंता

17 अगस्त 2022
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(१) कम करता ही जा रहा है आयु-पथ काल रात-दिन रूपी दो पदों से चल करके। मीन के समान हम सामने प्रवाह के चले ही चले जा रहे हैं नित्य बल करके॥ एक भी तो मन की उमंग नहीं परी हुई लिए कहाँ जा रही है आशा छ

वह देश कौन सा है

17 अगस्त 2022
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मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सी

कामना

17 अगस्त 2022
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जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में। जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में। सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो। शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो। सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के

वह देश कौन सा है

17 अगस्त 2022
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मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सी

पुष्प विकास

17 अगस्त 2022
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एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें देख फूल उठे हाथ-पांव उपवन के । खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए, देख के लुटाए निज कोष सुबरन के ।। वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी, पाई न, लजा के रही बाहर भवन

आगे बढ़े चलेंगे

17 अगस्त 2022
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यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में। यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में। हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे। वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे॥ मंज़िल बहुत बड

अन्वेषण

17 अगस्त 2022
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मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥ तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था। मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥ मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर त

तिल्ली सिंह

17 अगस्त 2022
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पहने धोती कुरता झिल्ली गमछे से लटकाये किल्ली कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली पहले मिले शेख जी चिल्ली उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली चिल्ली ने पाली थी बिल्ली तिल्ली ने थी पाली पिल

अस्तोदय की वीणा

17 अगस्त 2022
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बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बि

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