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अतुलनीय जिनके प्रताप का

17 अगस्त 2022

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अतुलनीय जिनके प्रताप का,

साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर।

घूम घूम कर देख चुका है,

जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर।


देख चुके है जिनका वैभव,

ये नभ के अनंत तारागण।

अगणित बार सुन चुका है नभ,

जिनका विजय-घोष रण-गर्जन।


शोभित है सर्वोच्च मुकुट से,

जिनके दिव्य देश का मस्तक।

गूँज रही हैं सकल दिशायें,

जिनके जय गीतों से अब तक।


जिनकी महिमा का है अविरल,

साक्षी सत्य-रूप हिमगिरिवर।

उतरा करते थे विमान-दल,

जिसके विसतृत वक्षस्थल पर।


सागर निज छाती पर जिनके,

अगणित अर्णव-पोत उठाकर।

पहुँचाया करता था प्रमुदित,

भूमंडल के सकल तटों पर।


नदियाँ जिनकी यश-धारा-सी,

बहती है अब भी निशि-वासर।

ढूँढो उनके चरण चिह्न भी,

पाओगे तुम इनके तट पर।


सच्चा प्रेम वही है जिसकी

तृप्ति आत्म-बलि पर हो निर्भर।

त्याग बिना निष्प्राण प्रेम है,

करो प्रेम पर प्राण निछावर।


देश-प्रेम वह पुण्य क्षेत्र है,

अमल असीम त्याग से विलसित।

आत्मा के विकास से जिसमें,

मनुष्यता होती है विकसित।

राम नरेश त्रिपाठी की अन्य किताबें

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रचनाएँ
मानसी
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कवि कहता है कि इन्हें देखकर मेरे हृदय में यह उत्साह हमेशा भरा रहता है कि मैं इस विशाल विस्तृत और महान सागर रूपी घर के कोने-कोने में जाऊँ और इसकी लहरों में बैठकर जी भर कर इसमें घूमूँ। निकल रहा है जलनिधि-तल पर दिनकर-बिंब अधूरा। कमला के कंचन-मंदिर का मानो कांत कँगूरा। लाने को निज पुण्य-भूमि पर लक्ष्मी की असवारी भाव यह है कि समुद्रतट से सूर्योदय के समय सोने के समान चमकता समुद्र देखने का अपना आनंद है। ऐसा लगता है मानो समुद्र ने एक सोने की सड़क लक्ष्मी देवी के लिए बना डाली हो। निर्भय, दृढ़, गंभीर भाव से गरज रहा सागर है। भाव यह है कि समुद्र की आवाज़ ऐसी लग रही है मानो वह बिना डर के, मजबूती तथा गंभीरता के भाव लिए गरजना कर रहा हो। भाषा-शैली त्रिपाठी जी की भाषा भावानुकूल, प्रवाहपूर्ण, सरल खड़ी बोली है। संस्कृत के तत्सम शब्दों एवंसामासिक पदों की भाषा में अधिकता है| शैली सरल, स्पष्ट एवं प्रवाहमयी है। मुख्य रूप से इन्होंने वर्णनात्मक और उपदेशात्मक शैली का प्रयोग किया है
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प्रार्थना

17 अगस्त 2022
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हे प्रभो! आनन्द दाता ज्ञान हमको दीजिए। शीघ्र सारे दुर्गुणों को दूर हमसे कीजिए। लीजिए हमको शरण में हम सदाचारी बनें। ब्रह्मचारी धर्मरक्षक वीर व्रत-धारी बनें॥ प्रार्थना की उपर्युक्त चार पंक्तियाँ ह

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अन्वेषण

17 अगस्त 2022
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मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥ तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था। मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥ मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर त

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तेरी छवि

17 अगस्त 2022
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हे मेरे प्रभु! व्याप्त हो रही है तेरी छवि त्रिभुवन में। तेरी ही छवि का विकास है कवि की वाणी में मन में॥ माता के नःस्वार्थ नेह में प्रेममयी की माया में। बालक के कोमल अधरों पर मधुर हास्य की छाया मे

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उपचार

17 अगस्त 2022
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हृदय को हम सदा तेरे लिए तैयार करते हैं। तुझे आनंद-सा सुख-सा सदा हम प्यार करते हैं॥ तुझे हँसता हुआ देखें किसी दुखिया के मुखड़े पर। इसी से सत्पुरुष प्रत्येक का उपकार करते हैं॥ बताते हैं पता तारे

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पश्चाताप

17 अगस्त 2022
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सरके कपोल के उजाले में दिवस, रात केशों के अँधेरे में निकल भागी पास से। संध्या बालपन की युवापन की आधी रात मैंने काट डाली क्षणभंगुर विलास से॥ श्वेत केश झलके प्रभात की किरन-से तो आँखें खुलीं काल के

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चमत्कार

17 अगस्त 2022
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कोई कहता था सोच तब की मनोव्यथा तू जग सपना था समझेगा जब मन में। आँखें हैं खुली तो खोल कान भी अजान यह सभा बन जायगी कहानी एक छन में॥ ऐसा हुआ एक दिन आँखें बंद पाके मेरे प्राणनाथ आ गए अचानक भवन में।

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ज्ञान का दंड

17 अगस्त 2022
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सावन के श्यामघन शोभित गगन में धरा में हरे कानन विमुग्ध करते हैं मन। बकुल कदंब की सुगंध से सना समीर पूरब से आकर प्रमत्त करता है तन॥ पर दूसरे ही छन आकर कहीं से, घूम जाते हैं नयन में अकिंचन किसान गन

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पुष्प-विकास

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एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें देख फूल उठे हाथ पाँव उपवन के। खोल खोल द्वार फूल घर से निकल आए, देख के लुटाए निज कोष सुबरन के॥ वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उड़ी पाई न, लजा के रही बाहर भवन के।

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रहस्य

17 अगस्त 2022
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वह कौन सी है छवि खोजता जिसे है रवि, प्रतिदिन भेज दल अमित किरन का। वह कौन-सा है गान जिससे लगाए कान गिरि चुपचाप खड़े ज्ञान भूल तन का॥ कौन-सा सँदेशा पौन कहता प्रसून से है खिल उठता है मुख जिससे सुमन

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श्याम की शोभा

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श्याम के है अंग में तरंगित अनंत द्युति, नित नित नूतन अकथनीय बात है। नीलमनि कहना तो चित्त की कठोरता है, भूले रजनी को तो कहे कि जलजात है॥ दृग से अधर तक दृष्टि न पहुँच पाती, दृग में उधर आती नई करामा

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स्मृति

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सोइ श्याम जल आज उज्ज्वल करत मन, सोई कूल सोइ जमुना की मंदगति है। सोइ बन-भूमि सोइ सुंदर करील-कुंज, वैसियै पवन आनि उर मैं लगति है॥ श्याम को सदन बृंदाबन को विलोकि आज, आँखिन में जोति कछु औरइ जगति है।

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आँखों का आकर्षण

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अपने दिन रात हुए उनके क्षण ही भर में छवि देखि यहाँ। सुलगी अनुराग की आग वहाँ जल से भरपूर तड़ाग जहाँ॥ किससे कहिए अपनी सुधि को मन है न यहाँ तन है न वहाँ। अब आँख नहीं लगती पल भी जब आँख लगी तब नींद

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चितवन का जादू

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आँख लगती है तब आँख लगती ही नहीं प्यास रहती है लगी सजल नयन में। मन लगता ही नहीं वन में भवन में न, सुंदर सुमन से सजाए उपवन में॥ रुचि रह जाती नहीं खान में न पान में, न गान में न मान में न ध्यान में

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कहानी

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आँख मूँदिए तो निज घर की मिलेगी राह आँख खोलते ही जग स्वप्न है विरह का। मन खोइए तो कुछ पाइए अनोखा धन हानि में है लाभ यह अजब तरह का॥ आँख लगते ही फिर आँख लगती ही नहीं सुख है विचित्र इस घर के कलह का।

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आकांक्षा

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होते हम हृदय किसी के विरहाकुल जो, होते हम आँसू किसी प्रेमी के नयन के। पूरे पतझड़ में बसंत की बयार होते, होते हम जो कहीं मनोरथ सुजन के॥ दुख-दलियों में हम आशा कि किरन होते, होते पछतावा अविवेकियों क

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नृत्य

17 अगस्त 2022
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नाचती है भूमि नाचते हैं रवि राकापति नाचते हैं तारागण धूमकेतु धाराधर। नाचता है मन, नाचते हैं अणु परमाणु नाचता है काल बन ब्रह्मा, विष्णु और हर॥ नाचता समीर अविराम गति से है सदा नाचती है ऋतुएँ अनेक र

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आशा

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जीवन है आशा और मरण निराशा यह आशा की जगत में विचित्र परिभाषा है। आशा-वश भक्ति भाव ध्यान जप योग व्रत आशा-वश जग की समस्त अभिलाषा है॥ आशा-वश घोर अपमान सहके भी नर बोलता विहँस के सुधा सी मृदु भाषा है।

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धनहीन का कुटुम्ब

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कौन कौन प्राणी धनहीन के कुटुम्ब में हैं? पिता है अभाग्य और माता अधोगति है। दुख शोक भाई, जो हैं जन्म से श्रवण हीन आँख में न दृष्टि है न पाँव ही में गति है॥ भूख प्यास बहनें, सहोदर को छोड़ जिन्हें द

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नारी

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अलि अलकावलि, गुलाब गाल, कंज दृग, किंशुक सी नाक, कोकिला सी किलकारी है। पल्लव अधर, कुंद रदन, कपोत ग्रीवा, श्रीफल उरोज, रोम-राजी लता प्यारी है॥ वापी नाभि, कदली जघन, रंग चंपक-सा मृदुता सिरीस सी सुरभि

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चंद

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रति के कपोल सा मनोज के मुकुर सा, उदित देख चंद को हिए में उमड़ा अनंद। मैंने कहा, सोने का सरोज है सुधा के सरवर में प्रफुल्लित अतुल है कला अमंद॥ जानबुल-वश का सपूत एक बोल उठा, लीजिए समझ और कीजिए प्रल

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विरहिणी

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बह री बयार प्राणनाथ को परस कर, लग के हिए से कर विरह-दवागि बंद। जाओ बरसाओ घन मेरी आँसुओं के बूँद आँगने में प्रीतम के मेरी हो तपन मंद॥ मेरे प्राणप्यारे परदेश को पधारे, सुख सारे हुए न्यारे पड़े प्रा

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मनुष्य-पशु

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बक सा छली है कोई, गाय सा सरल कोई, चूहे सा चतुर कोई, मूढ़ कोई खर सा। काक सा कुटिल मधु-मक्खी सा कृपण कोई, मोर सा गुमानी कोई लोभी मधुकर सा॥ श्वान सा खुशामदी कबूतर सा प्रेमी कोई, स्यार सा है भीरु कोई

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मारवाड़ी

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(१) बुद्धि पगड़ी सी बड़ी टीबो सा अनंत धन, कोमलता भूमि सी स्वभाव बीच भरिए। देशी कारबार में चिपकिए भरूँट ऐसा, ऊँट ऐसी हिम्मत सहन-शक्ति धरिए॥ दम्पति में प्रीति-रीति रखिए कबूतर सी, मोर की सी छवि निज

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महापुरुष

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(१) बदन प्रफुल्ल दया धर्म में प्रवत्त मन मधुर विनीत वाणी मख से सुनाते हैं। प्रेमी देश जाति के अनिंदक अमानी सदा, हेर हेर बिछुड़े जनों को अपनाते हैं॥ पर-सुख देख जो न होते हैं मलिन चित्त, दीन बलहीन

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हैट के गुण

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दृग को दिमाग को ललाट को श्रवण को भी धूप से बचाती अति सुख पहुँचाती है। बीट से बचाती मारपीट से बचाती यह अपढ़ देहातियों में भय उपजाती है॥ पर इसमें है उपयोगिता विचित्र एक योरप-निवासियों की बुद्धि में

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प्रियतम

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सोकर तूने रात गँवाई। आकर रात लौट गए प्रियतम तू थी नींद भरी अलसाई। रहकर निपट निकट जीवन भर प्रियतम को पहचान न पाई। यौवन के दिन व्यर्थ बिताए प्रियतम की न कभी सुध आई। कभी न प्रियतम से हँस बोली कभी

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राम कहाँ मिलेंगे

17 अगस्त 2022
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ना मंदिर में ना मस्जिद में ना गिरजे के आसपास में। ना पर्वत पर ना नदियों में ना घर बैठे ना प्रवास में। ना कुंजों में ना उपवन के शांति-भवन या सुख-निवास में। ना गाने में ना बाने में ना आशा में नही

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कामना

17 अगस्त 2022
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जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में। जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में। सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो। शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो। सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के

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परलोक

17 अगस्त 2022
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जहाँ नहीं विद्वेष राग छल अहंकार है। जहाँ नहीं वासना न माया का विकार है। जहाँ नहीं विकराल काल का कुछ भी भय है। जहाँ नहीं रहता जीवन का कुछ संशय है। सुख-शांति-युक्त जिस देश में बसे हुए हैं प्रिय स

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हार ही में जीत है

17 अगस्त 2022
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तुम पुरुष हो, डर रहे हो व्यर्थ ही संसार से। जीत लेते हो नहीं क्यों त्याग से उपकार से? सिर कटाकर जी उठा उस दीप की देखो दशा। दब रहा था जो अँधेरे के निरंतर भार से॥ पिस गई तब प्रेमिका के हाथ चढ़ च

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प्रेम

17 अगस्त 2022
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(१) यथा ज्ञान में शांति, दया में कोमलता है। मैत्री में विश्वास, सत्य में निर्मलता है॥ फूलों में सौंदर्य, चंद्र में उज्ज्वलता है। संगति में आनंद, विरह में व्याकुलता है॥ जैसे सुख संतोष में तप में

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उदारता

17 अगस्त 2022
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आतप, वर्षा, शीत सहा, तत्पर की काया। माली ने उद्योग किया उद्यान सजाया। सींच सोहने सुमन-समूहों को विकसाया। सेवन किया सुगंध, सुधा-रसमय फल खाया। पर मूल्य कहाँ उसने लिया, कोकिल, बुलबुल, काक से। वे

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प्रेम-ज्योति

17 अगस्त 2022
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रत्नों से सागर तारों से भरा हुआ नभ सारा है। प्रेम, अहा! अति मधुर प्रम का मंदिर हृदय हमारा है। सागर और स्वर्ग से बढ़कर मूल्यवान है हृदय-विकास। मणि-तारों से सौगुन होगा प्रेम-ज्योति से तम का नाश॥

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मुसकान

17 अगस्त 2022
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हे मोहन! सीखा है तुमने किससे यह मुसकान? फूलों ने क्या दिया तुम्हें यह विश्वविमोहन ज्ञान? ऊषा ने क्या सिखलाया है यह मंजुल मुसकान? जिसका अट्टहास दिनकर है उज्ज्वल सत्य समान?

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प्राकृतिक सौंदर्य

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नावें और जहाज नदी नद सागर-तल पर तरते हैं। पर नभ पर इनसे भी सुंदर जलधर-निकर विचरते हैं॥ इंद्र-धनुष जो स्वर्ग-सेतु-सा वृक्षों के शिखरों पर है। जो धरती से नभ तक रचता अद्भुत मार्ग मनोहर है॥ मनमाने

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नीति के दोहे

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(१) विद्या, साहस, धैर्य, बल, पटुता और चरित्र। बुद्धिमान के ये छवौ, हैं स्वाभाविक मित्र॥ (२) नारिकेल सम हैं सुजन, अंतर दया निधान। बाहर मृदु भीतर कठिन, शठ हैं बेर समान॥ (३) आकृति, लोचन, बचन, मुख,

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वह देश कौन सा है

17 अगस्त 2022
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मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सी

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मातृ-भूमि की जय

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ऐ मातृभूमि! तेरी जय हो सदा विजय हो। प्रत्येक भक्त तेरा सुख-शांति-कांतिमय हो॥ अज्ञान की निशा में, दुख से भरी दिशा में। संसार के हृदय में तेरी प्रभा उदय हो॥ तेरा प्रकोप सारे जग का महाप्रलय हो।

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विधवा का दर्पण

17 अगस्त 2022
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(१) एक आले में दर्पण एक, किसी प्रणयी के सुख का सगा। किसी के प्रियतम का स्मृति-चिह्न, किन्हीं सुंदर हाथों का रखा॥ धूल की चादर से मुँह ढाँक, पड़ा था भार लिए मनका। मूक भाषा में हाहाकार, मचा था उसके क

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पाँच सूचनाएँ

17 अगस्त 2022
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(१) संदेहों में ग्रस्त प्रेम-सा अस्त हुआ दिनकर था। विरहोन्माद समान चंद्र का उदय बड़ा सुखकर था॥ एक वृहत संगीत-महोत्सव अभी समाप्त हुआ था। मन को मोद और रसना को कलरव प्राप्त हुआ था॥ (२) साबुन और

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सज्जन

17 अगस्त 2022
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(१) चिरकृतज्ञ, सदा उपकार में, निरत पुण्यचरित्र अनेक हैं। परहितोद्यत स्वार्थ बिना कहीं, विरल मानव है इस लोक में॥ (२) सहज तत्परता शुभ-कर्म में विनयिता छलहीन वदान्यता। पर-अनिंदकता गुण-ग्राहिता,

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मित्र-महत्व

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(१) कर समान सदैव शरीर का, पलक तुल्य विलोचन बंधु का। प्रिय सदा करता अविवाद जो, सुहृद है वह सत्तम लोक में॥ (२) हृदय को अपने प्रियमित्र के, हृदय-सा नित जो जन जानता। वह सुभूषण मानव-जाति का, सुहृद

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आश्चर्य

17 अगस्त 2022
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बार बार उचक उचक लहरों में सिंधु देखता किसे है बड़ी गहरी लगन से। जाता है सवेरे प्रति दिवस कहाँ समीर, राज-कर लेकर सुरभि का सुमन से? कौन है? कहाँ है? वह जिसकी उतारते हैं रवि शशि तारागण आरती गगन से?

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स्वतंत्रता का दीपक

17 अगस्त 2022
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अत्याचार-पीड़ितों की आशा-लता आँसुओं से सींचते हैं वीर दुख याद कर रोते हैं। पथी के पदों की चल सम देह गेह का विचार झाड़ चित्त से प्रवृत्त तब होते हैं॥ बोते रणखेत में हैं शीश वे सहर्ष जिसे देश है रख

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आँसू

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आँखों के रतन विरही के मूलधन सुख-शांति के सहायक सखा हैं प्रेममय के। करुणा के कोमल कुमार हैं ये पीड़ितों की नीरव पुकार हैं वकील हैं विनय के॥ दीनों के सहारे शिशुओं के प्राणप्यारे ऐसे साथी नहीं कोई ज

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एकांतसंगी

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आशा सुख शांति की दिखाई पड़ती है नहीं जम रहे शोक हम दुख से सहम रहे। भूख गई प्यास गई नींद फिर आई नहीं जीवन के साथी कौन जाने कहाँ थम रहे॥ कौन विपदा में सुधि लेता है किसी की हाय! माना अपना था जिन्हें

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मिठास

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धन की मिठास दान मान की मिठास यश ज्ञान की मिठास आत्मसुख का विकास है। धर्म की मिठास दया शिक्षा की मिठास कर्म प्रणय कलह की मिठास परिहास है॥ बुद्धि की मिठास सुकुमार कल्पना है और नीरुज शरीर की मिठास स

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तेजस्वी बालक की एकांत-चिंता

17 अगस्त 2022
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राम ऐसे न्यायी भाई लक्ष्मण भरत ऐसे कृष्ण के समान होंगे नीति-बल-धारी हम। धर्मपुत्र ऐसे सत्यवादी, वीर विक्रम-से चंद्रगुप्त ऐसे होंगे राज्य-अधिकारी हम॥ मारुती, परशुराम, देवव्रत, शंकर-से होंगे दयानंद

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निशीथ-चिंता

17 अगस्त 2022
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(१) कम करता ही जा रहा है आयु-पथ काल रात-दिन रूपी दो पदों से चल करके। मीन के समान हम सामने प्रवाह के चले ही चले जा रहे हैं नित्य बल करके॥ एक भी तो मन की उमंग नहीं परी हुई लिए कहाँ जा रही है आशा छ

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नया नखशिख

17 अगस्त 2022
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जिसके उरोज मिश्र देश के पिरामिड हों ध्रुव की निशा-सी केश-राशि सिर पर हो। ऊँट ऐसी गति हो, नितंब हों पहाड़ ऐसे चीन की दीवार मेखला सी जिस पर हो॥ साहब के दिल में दिमाग में दिखाव में भी हिंद की भलाई क

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काश्मीर

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(१) स्वर्ग से बड़ी है काश्मीर की बड़ाई जहाँ वास करती है बहू वेश धरके रमा। सरिता, पहाड़, झील झरनों बनों में जहाँ, इंद्रपुर से भी है हजार गुनी सुषमा॥ घास छीलती हैं जहाँ अप्सरा अनेक खड़ी धान कूटती

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पुस्तक

17 अगस्त 2022
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कोई मुझको भूमंडल का एक छत्र राजा कर दे। उत्तम भोजन, वस्त्र, बाग, वाहन, सेवक, सुंदर घर दे॥ पर मैं पुस्तक बिना न इनको किसी भाँति स्वीकार करूँ। पुस्तक पढ़ते हुए कुटी में निराहार ही क्यों न मरूँ॥ पुस्

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स्वदेश-गीत

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सबको स्वतंत्र कर दे यह संगठन हमारा। छूटे स्वदेश ही की सेवा में तन हमारा॥ जब तक रहे फड़कती नस एक भी बदन में। हो रक्त बूँद भर भी जब तक हमारे तन में॥ छीने न कोई हमसे प्यारा वतन हमारा। छूटे स्वदेश

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अस्तोदय की वीणा

17 अगस्त 2022
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बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बि

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हम लेंगे तेरा नाम

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हे कृष्ण! अनेक बहाने, हम लेंगे तेरा नाम॥ आँखों के पावन जल से। मुसुकाहट के कल कल से। सुख से आहों से दुख से। कर्मों से मन से मुख से। स्मृति से नीरव भाषा से। आशा से अभिलाषा से। जाने में या अनजाने

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अस्तोदय की वीणा

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बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बि

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हम लेंगे तेरा नाम

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हे कृष्ण! अनेक बहाने, हम लेंगे तेरा नाम॥ आँखों के पावन जल से। मुसुकाहट के कल कल से। सुख से आहों से दुख से। कर्मों से मन से मुख से। स्मृति से नीरव भाषा से। आशा से अभिलाषा से। जाने में या अनजाने

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साधु और नीच

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यदि सज्जन दीन दुखी बन जाँय नहीं घटता पर गौरव है। मणि कीचड़ में गिर जाय परंतु निरादर हो कब संभव है॥ खल मान नहीं लहता, उसके यदि पास महाधन वैभव है। उड़ती नभ में रज वायु चढ़ी, पर मान मिला उसको कब ह

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जागरण

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(१) जाग रण! जाग, निज राग भर त्याग में विश्व के जागरण का तु ही चिह्न है। सृष्टि परिणाम है घोर संघर्ष का शांति तो मृत्यु का एक उपनाम है॥ (२) श्वास प्रश्वास इस देह के संग ही जन्म ले नित्य के यात्र

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हिंदू विश्वविद्यालय

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जीवन का स्रोत है प्रभा से ओत-प्रोत यह, परम पवित्र भारती की राजधानी है। देश की स्वतंत्रता का बीज है उदीयमान, हिंदू सभ्यता की एक परम निशानी है॥ ऋषि-मुनियों की महिमा का महाकेंद्र यह जिसमें स्वतंत्रत

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जब मैं अति विकल खड़ा था

17 अगस्त 2022
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जब मैं अति विकल खड़ा था इस जीवन के घन वन में। अगम अपार चतुर्दिक तम था, न थीं दिशाएँ केवल भ्रम था, साथी एक निरंतर श्रम था, या था पथ निर्जन में। इस जीवन के घन वन में॥ आकर कौन हँस गया तम में, अमि

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स्मृति

17 अगस्त 2022
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सुंदर सदन सुखदायक वही है, जहाँ तरु के तले तू प्रिए! करती निवास है, नंदन वही है, अमरावती वही है, वही खेलता बसंत, जहाँ तेरा मद हास है। तेरी याद ही में मेरे प्राण जी रहे हैं, मेरे जीवन का ध्येय तेरे

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शारद तरंगिणी

17 अगस्त 2022
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(१) अशनि-पात, भयानक गर्जना, विषम वात, झड़ी दिन रात की। मिट गई, दिन पावस के गए शरद है अब शांत सुहावना। (२) अनिल-सेवन को दिन एक मैं नगर से तटिनी-तट को चला। सरस रागमयी खग-वृंद की सुखद शीतल सुंदर

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स्वप्नों में तैर रहा हूँ

17 अगस्त 2022
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स्वप्नों में तैर रहा हूँ, सुख क्या है इस जीवन में। यदि एक किसी प्रियतम का अनुराग नहीं है मन में। यदि विरह नहीं अंतर में है क्या आनंद मिलन में। उठती ही यदि न तरंगे, रस क्या है उस यौवन में।

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किमाश्चर्यमतः परम

17 अगस्त 2022
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कोई ऐसा पाप नहीं है, जो करने से बचा हुआ हो, फिर भी हम करते रहते हैं। कोई ऐसा झूठ नहीं है, जो कहने से शेष रहा हो, फिर भी हम कहते रहते हैं॥ कोई ऐसी गाँठ नहीं है, जो अब तक बाँधी न गई हो। फिर भी ह

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संसार-दर्पण

17 अगस्त 2022
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आदमी ने एक बनवाया महल था शानदार। काँच अंदर की तरफ उसमें जड़े थे बेशुमार॥ एक कुत्ता जा फँसा उसमें अचानक एक बार। देखते ही सैकड़ों कुत्ते हुआ वह बेकरार॥ वह समझता था उसे वे घूरते हैं घेरकर। क्योंकि ख

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दोष-दर्शन

17 अगस्त 2022
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(१) किसी के दोष जब कहने लगो, तब न तुम खुद दोष अपने भूल जाना। किसी का घर अगर है काँच का तो, उसे क्यों चाहिए ढेले चलाना? (२) अगर धंधा नहीं इसके सिवा कुछ कि औरों के गुनाहों को गिनाओ। सुधारों की ज

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देख ली हमने मसूरी

17 अगस्त 2022
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देख ली हमने मसूरी, मिट गई है साध मन की, स्वर्ग आ पहुँचे बिना तप, देख ली यह शक्ति धन की। प्राकृतिक सौंदर्य इसका, देखकर जी चाहता है, बस, यहीं बस जायँ पंक्षी बन, न याद आए वतन की। चोटियों तक पर्वतों

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चले चलो

17 अगस्त 2022
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(१) आए और चले गए, कितने शिशिर वसंत। राही! तेरी राह का, कहीं न आया अंत॥ कहीं न आया अंत, तुझे तो चलना ही है। जीवन की यह आग, जलाकर जलना ही है॥ दम है साथी एक, यही नित आए जाए। तू मत हिम्मत हार, समय क

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अस्तोदय की वीणा

17 अगस्त 2022
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बाजे अस्तोदय की वीणा--क्षण-क्षण गगनांगण में रे। हुआ प्रभात छिप गए तारे, संध्या हुई भानु भी हारे, यह उत्थान पतन है व्यापक प्रति कण-कण में रे॥ ह्रास-विकास विलोक इंदु में, बिंदु सिन्धु में सिन्धु बि

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तिल्ली सिंह

17 अगस्त 2022
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पहने धोती कुरता झिल्ली गमछे से लटकाये किल्ली कस कर अपनी घोड़ी लिल्ली तिल्ली सिंह जा पहुँचे दिल्ली पहले मिले शेख जी चिल्ली उनकी बहुत उड़ाई खिल्ली चिल्ली ने पाली थी बिल्ली तिल्ली ने थी पाली पिल

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अन्वेषण

17 अगस्त 2022
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मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में। तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥ तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था। मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥ मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर त

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आगे बढ़े चलेंगे

17 अगस्त 2022
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यदि रक्त बूँद भर भी होगा कहीं बदन में नस एक भी फड़कती होगी समस्त तन में। यदि एक भी रहेगी बाक़ी तरंग मन में। हर एक साँस पर हम आगे बढ़े चलेंगे। वह लक्ष्य सामने है पीछे नहीं टलेंगे॥ मंज़िल बहुत बड

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पुष्प विकास

17 अगस्त 2022
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एक दिन मोहन प्रभात ही पधारे, उन्हें देख फूल उठे हाथ-पांव उपवन के । खोल-खोल द्वार फूल घर से निकल आए, देख के लुटाए निज कोष सुबरन के ।। वैसी छवि और कहीं खोजने सुगंध उडी, पाई न, लजा के रही बाहर भवन

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वह देश कौन सा है

17 अगस्त 2022
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मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सी

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कामना

17 अगस्त 2022
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जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में। जहाँ न बाधक बनें सबल निबलों के सुख में। सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो। शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो। सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के

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वह देश कौन सा है

17 अगस्त 2022
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मन-मोहिनी प्रकृति की गोद में जो बसा है। सुख-स्वर्ग-सा जहाँ है वह देश कौन-सा है? जिसका चरण निरंतर रतनेश धो रहा है। जिसका मुकुट हिमालय वह देश कौन-सा है? नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं। सी

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निशीथ-चिंता

17 अगस्त 2022
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(१) कम करता ही जा रहा है आयु-पथ काल रात-दिन रूपी दो पदों से चल करके। मीन के समान हम सामने प्रवाह के चले ही चले जा रहे हैं नित्य बल करके॥ एक भी तो मन की उमंग नहीं परी हुई लिए कहाँ जा रही है आशा छ

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अतुलनीय जिनके प्रताप का

17 अगस्त 2022
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अतुलनीय जिनके प्रताप का, साक्षी है प्रत्यक्ष दिवाकर। घूम घूम कर देख चुका है, जिनकी निर्मल किर्ति निशाकर। देख चुके है जिनका वैभव, ये नभ के अनंत तारागण। अगणित बार सुन चुका है नभ, जिनका विजय-घोष

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