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रवीश कुमार को खुला पत्र

11 जून 2016

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प्रिय रविश जी 

आप में एक बड़े भाई की छवि देखता हूँ इसलिए बेबाकी से लिख रहा हूँ | शायद उतना बेबाक आपको लगे नहीं|

आज से कुछ वर्ष पहले तक मुझे टीवी पर खबरें सुनने में कोई रूचि नहीं थी | लगता था जैसे कोई सरकारी बस में चूरन बेचने वाला हो | मैं भी टीवी एंकर को बस में बैठे गर्मी से परेशान पैसेंजर की शक वाली निगाह से देखा करता था | ऊँची आवाज़ कठोर व भयावह भारी भरकम शब्दों में चिल्ला चिल्ला कर एक हे बात को बार बार दोहराने वाले मझे कभी जचे नहीं | लगता था ऐसे बताया जाये तोह खबर तोह बिलकुल नहीं हो सकती ज़रूर कोई विज्ञापन होगा या कहीं शेहेर में सर्कस लगा होगा जिसका अनाउंसमेंट किया जा रहा है टीवी के ज़रिये | 

फिर एक दिन सुना किसी ‘अन्ना हजारे’ के बारे में | के कोई बुज़ुर्ग अनशन पर बैठे हैं देश बदलने क लिए | बहुत हंगामा हुआ कुछ अच्छा सा लगा | यह सोच कर शर्म भी आई के ७० साल के आदमी में अब भी चाह है देश बदलने की और हम अब भी फेसबुक में अटके हुए हैं | फिर मैंने भी बेकार की चार लाइन लिखी और मन को समझा लिया |

उसी दौरान वही चीखने चिल्लाने वाली मीडिया मझे सही प्रतीत होने लगी | लगा सच में सब बदल जायेगा | फिर भी मैं टीवी एंकर को कभी कहीं के प्रवक्ता या पी.आर.ओ. ही समझता था | वे मझे सेल्समेन ही प्रतीत होते थे | बस अबकी बार उनका प्रोडक्ट सही लगने लगा था | फिर भी कम से कम मेरा रुझान तो मीडिया और राजनीती की तरफ हुआ | जैसे देश क लाखों और नौजवानों का हुआ होगा |

कभी कभी लगता है की अगर यह आन्दोलन न हुआ होता तोह क्या कभी बी जे पी वोह बन पति जो आज है ? क्या नरेन्द्र मोदी तथाकथित जन नायक बन पाते ? उन्हें तोह अन्ना हजारे और अरविन्द केजरीवाल का शुक्रगुज़ार होना चाहिए | क्यूंकि हर राम को एक रावण की आवश्यक्ता होती ही है | जिससे इन दोनों को कांग्रेस को बना दिया | पर खुद राम ना बन सके | और रिक्त स्थान को भरने के लिए सही समय पर और सही जगह पर नरेन्द्र मोदी मौजूद थे |

खैर २०१४ के आम चुनावो से पहले गाँव गाँव की कवरेज और उसके बाद प्राइम टाइम पे आपके शो को देख कर मुझमें एक विश्वास जगा के चलो बेबाकी से अपनी सही बात रखने का जज़्बा किसी में तोह है | 

बस यूँ समझ लीजिये की मेरे डूबता हुए विश्वास को आपका सहारा मिल गया |

आपका अंदाज़ हमेशा बेबाक हे नज़र आया | चुनावी कवरेज के दौरान पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसी गाँव की एक लड़की से उसके स्कूल और परिवेश को लेकर पूछे आपके सवालो और मथुरा के गाँव में किसानो से आपकी बातचीत को देखने के बाद मैं आपका फेन ही हो गया |

फेसबुक पे आपको पढ़ा तोह और अच्छा लगा | लगता था कोई और भी है जो मुझ पागल की तरह सोचता है | मैं अकेला नहीं हूँ | फिर आज आपका खुला पत्र पढ़ा जो आपने राम जेठमलानी को लिखा था |

बस उससे पढ़ कर इतना ही कहूँगा जिससे कहने के लिए इतनी भूमिका बनाई – धन्यवाद् रविश जी मुझे यह समझाने के लिए की टीवी एंकर भी पत्रकार होते हैं | और शायद बहुत बेहतर होते हैं | कुछ के पथभ्रष्ट हो जाने से सबको नहीं कोसा जाना चाहिए |

आपका 

पार्थ शर्मा 

१३ जून २०१५

 

जनता हूँ लिखना नहीं आता मुझको | लेकिन कुछ कहना चाहता था बहुत समय से जो आज निकला है |

मुझसे कोई गलती हुई या कोई गलत बात कही तोह छोटा भाई समझ कर माफ़ करें |

 Late Night Thinker - Quora

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