ये
मी टू
ले आया
रज़ामंदी
दोगलापन
बीमार ज़ेहन
मंज़र-ए-आम पे !
वो
मर्द
मासूम
कैसे होगा
छीनता हक़
कुचलता रूह
दफ़्नकर ज़मीर !
क्यों
इश्क़
रोमांस
बदनाम
मी टू सैलाब
लाया है लगाम
ज़बरदस्ती को "न"
न
मानो
सामान
औरत को
रूह से रूह
करो महसूस
है ज़ाती दिलचस्पी।
है
चढ़ी
सभ्यता
दो सीढ़ियाँ
दिल हैं ख़ाली
तिजोरियाँ भरीं
भौतिकता है हावी।
हो
तुम
बौड़म
मानते हो
होठों पर न
स्त्री के दिल में हाँ
बे-बुनियाद सोच।
© रवीन्द्र सिंह यादव