नदी तुम माँ क्यों हो...?
सभ्यता की वाहक क्यों हो...?
आज ज़ार-ज़ार रोती क्यों हो...?
बात पुराने ज़माने की है
जब
गूगल
जीपीएस
स्मार्ट फोन
कृत्रिम उपग्रह
पृथ्वी के नक़्शे
दिशासूचक यंत्र
आदि नहीं थे
एक आदमी
अपने झुण्ड से
जंगल की भूलभुलैया-सी
पगडंडियों पर चलते-चलते
पैर की नस दबने / चढ़ने / तड़कने से
भटककर छिटककर बिछड़ गया
घिसटते-घिसटते
अग्रसर हुआ
ऊँचे टीले से
साथियों को
आवाज़ लगायी
कोई सदा न लौट के आयी
बस प्रतिध्वनि ही
निराश लौट आयी
सुदूर क्षितिज तक
व्याकुल थकी नज़र दौड़ायी
घने वृक्षों के बीच
नीलिमा नज़र आयी
जीने की आस जागी
आँखों में रौशनी जगमगायी
हिम्मत करके उतरा
ऊँघती कटीली घाटियों में
चला सुनसान वन में
उस नीलिमा की ओर
दर्द सहते-सहते हौले-हौले
पैर को जकड़ा
नर्म वन लताओं से
रास्ता तय किया
एक टीला और मिला
अब एक नदी नमूदार हुई
चलते-चलते तन से
निचुड़ा पानी
प्यासे को लगा
ख़त्म हो जायेगी कहानी
बढ़ती प्यास ने
दर्द विस्मित किया
प्यासे और नदी के बीच
दूरी न्यूनतर होती गयी
नदी से कुछ ही दूरी पर
मूर्छा आने लगी
पाकर नदी का किनारा
राहत की साँसें भी भारी हुईं
तपती रेत में
बोझिल क़दमों से
प्यासा चला
उभरे पाँवों में
छालों ने छला
अब नदी का पानी
कुछ ही क़दम दूर था
पाँवों में प्यासे को
ठंडक महसूस हुई
लगा ज्यों माँ ने
लू लगने पर
तलवों में बकरी का दूध
और प्याज़ का रस मला हो
नस तड़की और
गिर पड़ा औंधे मुँह
चरम पर थी प्यास और पीर
बस दो हाथ की दूरी पर था
कल-कल करता बहता
नदिया का निर्मल नीर
जलपक्षी जलक्रीड़ा में थे मग्न
बह रही थी तपिश में
राहतभरी शीतल पवन
घिसटकर पानी तक
पहुँचने की हिम्मत न रही
एक लहर आयी
मुँह को छुआ
लगा जैसे माँ ने
पिलाया हो पानी
लगाकर ओक
जीवन तरंगित हुआ
बिखरा जीवन आलोक
बैठकर जीभर पानी पिया
जिजीबिषा जीत गयी
पाकर क़ुदरत का वरदहस्त
प्यास बुझाकर प्यासे ने
नदी को माँ कहकर
श्रद्धा से सम्बोधित किया
साधुवाद दिया
यह ममता बढ़ती रही
कालान्तर में
आस्था हो गयी
इंसान ने नदी को
माँ जैसा मान-सम्मान
देने का विचार दिया
परम्पराओं-वर्जनाओं का
रोपड़-अनुमोदन किया
नदियों के किनारे
सभ्यताओं ने
पैर पसारने का
अनुकूल निर्णय लिया
जीवनदायिनी नदिया का
आज हमने क्या हाल किया है?
समाज का सारा कल्मष
नदियों में उढ़ेल दिया!
क्या फ़ाएदा
इस ज्ञान-विज्ञान
आधुनिक तकनीक
सभ्य समाज की
तथाकथित समझदारी का!
जिसने इंसान को
प्रकृति की गोद से
जबरन अलहदा किया!!
© रवीन्द्र सिंह यादव