प्रकृति की,
स्तब्धकारी ख़ामोशी की,
गहन व्याख्या करते-करते,
पुरखा-पुरखिन भी निढाल हो गये,
सागर, नदियाँ, झरने, पर्वत-पहाड़,
पोखर-ताल, जीवधारी, हरियाली, झाड़-झँखाड़,
क्या मानव के मातहत निहाल हो गये?
नहीं!... कदापि नहीं!!
औद्योगिक क्राँति, पूँजी का ध्रुवीकरण,
बेचारा सहमा सकुचाया मासूम पर्यावरण।
अड़ा है अपने कर्तव्य पर,
एक सरकारी पर्यावरण अधिकारी,
पर्यावरण क्लियरेंस लेना चाहता है,
निजी प्रोजेक्ट अधिकारी,
साम-दाम-दंड-भेद सब असफल हुए,
चरित्र ख़रीदने के प्रयास निष्फल हुए,
अंततः याचक ने कारण पूछा,
सरकारी पर्यावरण अधिकारी,
प्रस्तावित प्रोजेक्ट-साइट पर जाकर बोला-
देखो! वर्षों पुराना इको-सिस्टम,
पेड़-पौधों पर छायी हसीं रुमानियत,
कोयल की कुहू-कुहू,
कौए की काँव-काँव,
मयूर का मनोहारी नृत्य,
ऑक्सीजन का घनत्व,
हिरणों की चंचलता,
चींटियों की निरंतरता,
चिड़ियों के प्यारे घोंसले,
बघारना लोमड़ी के चोचले,
तनों में साँप के कोटर,
मेढक की टर्र-टर्र,
अँधेरी सुनसान रात में,
दीप्ति उत्पन्न करते,
जुगनू का निवास,
पेड़ की लचकदार टहनियों पर,
तोतों का विलास,
प्रकृति का रसमय संगीत,
फूल-तितली की पावन प्रीत,
भँवरों का मधुर गुँजन
टिटहरी का करुण क्रंदन
बंदरों की उछल-कूद,
मीठे-रसीले अमरुद...,
इन्हें मिटाकर,
क्या पैदा करोगे...!
ज़हरीला धुआँ, प्रदूषित जल,
ध्वनि प्रदूषण, मृद्दा प्रदूषण,
कुंद विवेक, वैचारिक प्रदूषण,
सीमेंट-सरिया का जंगल,
ख़ुद के लिये मंगल,
रोगों का स्रोत,
लाचारों की मौत,
पूँजी का अम्बार,
उत्पादों का बाज़ार,
मालिक मालामाल,
उपभोक्ता कंगाल...,
निजी प्रोजेक्ट अधिकारी,
चिढ़कर टोकते हुए बोला-
विकास के लिये,
ये क़ुर्बानियाँ स्वाभाविक हैं,
पर्यावरण अधिकारी ने अपना निर्णय सुनाया,
फ़ाइल पर "नो क्लियरेंस" का टैग लगाया,
मालिक ने मंत्री को फोन लगाया,
पूछा- प्रकृति-प्रेमी सरस्वती-पुत्र को,
ऐसा पद क्यों थमाया ?
अब तक कोई सहयोगी,
लक्ष्मी-पुत्र आपके हाथ नहीं आया?
यह कैसी "ईज़ ऑफ़ डूइंग बिज़नेस" नीति है ?
हमारे साथ घोर अनीति है।
@रवीन्द्र सिंह यादव