कहानी- रेवती की खुद्दारी
रेवती प्रतिदिन छह घरों में काम करके अपने सात लोगों के परिवार का पालन पोषण करती थी। परिवार में बूढ़े सास- ससुर, तीन बच्चे और शराबी पति थे।घर का काम-काज करके,परिवार के लिए खाना बनाकर सुबह छह बजे काम पर निकल जाती और शाम को सात-आठ बजे घर पहुंचती थी। हर घर में दौड़-दौड़ कर झाडू- पोंछा, बरतन आदि का काम करती थी।पैंतीस साल की जवान रेवती दिन-रात काम करते-करते सूख कर बूढ़ी लगने लगी थी। वह अपने तीनों बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अफ़सर बनाना चाहती थी। तीनों बच्चे सरकारी स्कूल में पांचवीं, तीसरी और पहली में पढ़ते थे। स्कूल में सरकार की तरफ से सभी सुविधाएं प्राप्त थी। दोपहर का खाना भी स्कूल में मिल जाता था। सास-ससुर बीमार और बूढ़े थे। पति अकसर रेवती की पिटाई करके उसके द्वारा बचाकर रखे हुए पैसे छीन लेता और ठेके पर शराब पीने चला जाता था।
एक साल पहले उसके पति दिल्लन की लीवर खराब होने से मृत्यु हो गई थी।
रेवती को हर दिन सभी घरों में डांट फटकार झेलनी पड़ती थी लेकिन रेवती अपने परिवार के लिए सब कुछ सहन करती थी।
अकसर सभी घरों में बचा-खुचा बासी खाना दिया जाता था।
एक दिन रेवती बीमार हो गई। उसे उल्टियां हो रही थीं। इस कारण वो काम पर नहीं गई। शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण दूसरे दिन भी वह काम पर नहीं जा सकी। उसने सरकारी अस्पताल से दवाईयां लेकर खाईं। तब कहीं जाकर चौथे दिन उसे आराम मिला। पांचवें दिन वह थोड़ी देर से काम पर गई। तो श्रीमती पांडे ने तो सारा घर सर पर उठा लिया। चार दिन बाद आज भी महारानी देर से आईं हैं। हद तो तब हो गई। जब उन्होंने रेवती पर हाथ उठा दिया।
अब रेवती से रहा न गया। वह बोल पड़ी। मेम साहब रूखी-सूखी खाते हैं। अभावों में रहते हैं पर खुद्दारी से जीते हैं और खुद्दारी से मरते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमारा परिवार कैसे चलता है। हम भी इंसान हैं। हम भी बीमार पड़ते हैं। हमें भी दर्द होता है। हम कितने कष्ट उठाकर आप लोगों की सेवा करते हैं। सर्दी,गर्मी, बरसात इन सबको सहते हैं। रोते रोते रेवती जमीन पर बैठ गई और अपने फटे पैरों की बिवाइयों को सहलाते हुए बोली- न जाने कितने कष्ट उठाते हुए। हम दौलत वालों के महलों को बनाते हैं और खुद झोपड़-पट्टी में रहकर पूरा जीवन निकाल देते हैं।
मेम साहब ! फिर भी आप लोगों से अक्सर डांट-फटकार ही मिलती है। हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी आप लोग क्या मजदूरी देते हैं। सात सौ रूपए में आप हमें खरीद लेते हैं। इन पैसों में न जाने कैसे हम परिवार का पेट पालते हैं? आपको क्या मालूम । मेम साहब, हम मजदूर जरूर है पर मजबूर नहीं हैं। हम मेहनत से नहीं डरते हैं। हम कुछ भी काम करके कमा खा लेंगे। पर आप हमारे बिना एक कदम नहीं चल सकेंगी। यह कह कर रेवती दरवाजे से बाहर निकल गई। पांडे मेम साहब ठगी सी देखती रह गईं।
निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम
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हिंदी साहित्य को समर्पित शिक्षाविद एवं साहित्यकार डॉ. निशा गुप्ता उर्फ (डॉ.निशा नंदिनी भारतीय) का जन्म रामपुर(उत्तर प्रदेश) में 13 सितंबर 1962 में हुआ। आपने साहित्य के साथ-साथ शिक्षा जगत व समाज सेविका के रूप में भी एक अलग पहचान बनाई है। आपने तीन विषयों ( हिन्दी,समाजशास्त्र व दर्शनशास्त्र) में एम.ए तथा बी.एड
की शिक्षा प्राप्त की है। 40 वर्षों से निरंतर आपका लेखन चल रहा है।
लेखन क्षेत्र में आपने लगभग हर विधा पर अपनी कलम चलाई है।
कविता,गीत,उपन्यास,कहानियां, यात्रा वृतांत, जीवनियाँ तथा बाल साहित्य आदि अनेक विधाओं में आपकी लेखनी का प्रभाव माना गया है। आपके साहित्य से समाज व राष्ट्र में एक नई जागृति आई है।
आपकी अधिकतर रचनाएं राष्ट्रप्रेम की भावना से ओतप्रोत है।
विश्वविद्यालय स्तर पर आपके साहित्य को कोर्स में पढ़ाया जा रहा है। आपके साहित्य पर एम.फिल हो चुकी है और कुछ शोधार्थी शोधकार्य भी कर रहे हैं। 30 वर्ष तक आप शिक्षण कार्य करते हुए लेखन व समाजसेवा से भी जुड़ी रही हैं।आपकी अब तक विभिन्न विषयों पर 6 दर्जन से भी अधिक पुस्तकें, विभिन्न प्रतिष्ठित प्रकाशनों द्वारा प्रकाशित हो चुकी हैं। आप की पुस्तकें भारतीय समाज को दिशा निर्देशित कर प्रेरित करती हैं। यही कारण है कि आपकी अनेकानेक पुस्तकों पर आपको देश-विदेश की विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है। आपके सराहनीय कार्यों के लिए अब तक आपको साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओं द्वारा लगभग 4 दर्जन सम्मान एवं पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। डॉ.निशा गुप्ता
समाज सेविका के रूप में भी अपने कर्तव्य का निर्वाह बड़ी निष्ठा और ईमानदारी से करती हैं। आपने अपने जीवन में रचनात्मकता को विशेष महत्व दिया है,यही कारण है कि देश की प्रतिष्ठित संस्था "प्रकृति फाउंडेशन" द्वारा प्रकाशित "इंडियन रिकॉर्ड बुक" में आपके नाम को तीन बार चयनित किया गया है। जिसके लिए आपको " Indian record book" द्वारा मेडल तथा प्रमाण पत्र देकर सम्मानित भी किया गया है। इसके अतिरिक्त आप अनेकानेक प्रतिष्ठित सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से जुड़कर भारतीय समाज को एक नई दिशा प्रदान कर रही हैं। आप विभिन्न संस्थाओं में प्रतिष्ठित पद पर भी आसीन हैं। "विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ" द्वारा आपको विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किया जा चुका है।महान संत "कबीर" पर आपने शोध कार्य किया है।
आपके सामाजिक मूल्यों पर आधारित अनेक आलेख,गीत, कथा-कहानियां देश-विदेश की लगभग 5 दर्जन पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं, और निरंतर हो रही हैं। आपकी कुछ पुस्तकों का अनुवाद अन्य भारतीय भाषाओं में भी हो चुका है। इसके साथ ही आपकी रचनाओं, कहानियों, नाटक आदि का प्रसारण रामपुर,असम तथा दिल्ली आकाशवाणी से भी हो चुका है। दूरदर्शन के "कला संगम" कार्यक्रम में आप का साक्षात्कार भी लिया जा चुका है।D