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रेवती की खुद्दारी

24 मार्च 2022

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कहानी- रेवती की खुद्दारी

रेवती प्रतिदिन छह घरों में काम करके अपने सात लोगों के परिवार का पालन पोषण करती थी। परिवार में बूढ़े सास- ससुर, तीन बच्चे और शराबी पति थे।घर का काम-काज करके,परिवार के लिए खाना बनाकर सुबह छह बजे काम पर निकल जाती और शाम को सात-आठ बजे घर पहुंचती थी। हर घर में दौड़-दौड़ कर झाडू- पोंछा, बरतन आदि का काम करती थी।पैंतीस साल की जवान रेवती दिन-रात काम करते-करते सूख कर बूढ़ी लगने लगी थी। वह अपने तीनों बच्चों को पढ़ा-लिखा कर अफ़सर बनाना चाहती थी। तीनों बच्चे सरकारी स्कूल में पांचवीं, तीसरी और पहली में पढ़ते थे। स्कूल में सरकार की तरफ से सभी सुविधाएं प्राप्त थी। दोपहर का खाना भी स्कूल में मिल जाता था। सास-ससुर बीमार और बूढ़े थे। पति अकसर रेवती की पिटाई करके उसके द्वारा बचाकर रखे हुए पैसे छीन लेता और ठेके पर शराब पीने चला जाता था।
एक साल पहले उसके पति दिल्लन की लीवर खराब होने से मृत्यु हो गई थी।
रेवती को हर दिन सभी घरों में डांट फटकार झेलनी पड़ती थी लेकिन रेवती अपने परिवार के लिए सब कुछ सहन करती थी।
अकसर सभी घरों में बचा-खुचा बासी खाना दिया जाता था।
एक दिन रेवती बीमार हो गई। उसे उल्टियां हो रही थीं। इस कारण वो काम पर नहीं गई। शारीरिक रूप से कमजोर होने के कारण दूसरे दिन भी वह काम पर नहीं जा सकी। उसने सरकारी अस्पताल से दवाईयां लेकर खाईं। तब कहीं जाकर चौथे दिन उसे आराम मिला। पांचवें दिन वह थोड़ी देर से काम पर गई। तो श्रीमती पांडे ने तो सारा घर सर पर उठा लिया। चार दिन बाद आज भी महारानी देर से आईं हैं। हद तो तब हो गई। जब उन्होंने रेवती पर हाथ उठा दिया।
अब रेवती से रहा न गया। वह बोल पड़ी। मेम साहब रूखी-सूखी खाते हैं। अभावों में रहते हैं पर खुद्दारी से जीते हैं और खुद्दारी से मरते हैं। कभी आपने सोचा है कि हमारा परिवार कैसे चलता है। हम भी इंसान हैं। हम भी बीमार पड़ते हैं। हमें भी दर्द होता है। हम कितने कष्ट उठाकर आप लोगों की सेवा करते हैं। सर्दी,गर्मी, बरसात इन सबको सहते हैं। रोते रोते रेवती जमीन पर बैठ गई और अपने फटे पैरों की बिवाइयों को सहलाते हुए बोली- न जाने कितने कष्ट उठाते हुए। हम दौलत वालों के महलों को बनाते हैं और खुद झोपड़-पट्टी में रहकर पूरा जीवन निकाल देते हैं।
मेम साहब ! फिर भी आप लोगों से अक्सर डांट-फटकार ही मिलती है। हाड़-तोड़ मेहनत करने के बाद भी आप लोग क्या मजदूरी देते हैं। सात सौ रूपए में आप हमें खरीद लेते हैं। इन पैसों में न जाने कैसे हम परिवार का पेट पालते हैं? आपको क्या मालूम । मेम साहब, हम मजदूर जरूर है पर मजबूर नहीं हैं। हम मेहनत से नहीं डरते हैं। हम कुछ भी काम करके कमा खा लेंगे। पर आप हमारे बिना एक कदम नहीं चल सकेंगी। यह कह कर रेवती दरवाजे से बाहर निकल गई। पांडे मेम साहब ठगी सी देखती रह गईं।

निशा नंदिनी भारतीय
तिनसुकिया, असम





 

                             

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