प्रेम बंधन अजीब है
देह बंधन सजीव,
धर्म बंधन में बंधकर तू
पाप -पुण्य को सीज
कर्म बंधन में कर्म कर
ना सडे मुक्ति का बीज
रिश बंधन में बंधकर तू
अपने आप को जान
निभा सके तो परिपक्कव समझ,
ना निभे तो तू अनजान
विवाह बंधन में बंधकर तू
लगा प्रेम लगाम,
प्रिय-प्रियतम दोनों रहे,
एका-एक गुलाम