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【कैसे नज़रे मिलाउंगी..?】 (भाग 2)

14 अक्टूबर 2021

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                【कैसे नज़रें मिलाऊंगी..!】




"ज़ीरू सुन मुझसे बात तो कर, तू घबरा क्यों रही है? यार जो हुआ वो स्वाभाविक और प्राकृतिक है। कोई बड़ी बात नहीं है। ज़ीरू ज़माना इस मुद्दे पर कहां से कहां आ गया, और तू आज भी वहीं बीस साल पीछे अटकी पड़ी है। यार मेरी बात तो सुन...." भावार्थ व्याख्या के पीछे चल रहा था। वह व्याख्या से बात कर उसे कुछ समझना चाह रहा था, पर व्याख्या हवा का हाथ पकड़े इतनी रफ़्तार से चल रही थी कि वह ना तो बात सुनने को तैयार थी, ना ही अपनी रफ़्तार धीमे कर रही थी।

"मां अब मैं भावार्थ को कैसे फेस करूंगी? मैं अब उससे कभी फ्रैंक हो भी पाऊंगी या नहीं... मैं फ़िर उसे कभी टावर कह कर चिढ़ा पाऊंगी या नहीं...? मैं अपने शर्म को नजरंदाज नहीं कर पा रही हूं। कैसे नज़रें मिलाऊंगी मां...?" व्याख्या रश्मि के गले लग कर रोई जा रही थी।

"व्याख्या बेटू, मैंने कभी तुमसे ये उम्मीद नहीं की थी। तुम तो मेरी ब्रेव गर्ल हो, फ़िर इतनी सी बात पर तुम ऐसे कैसे घबरा सकती हो...! जो हुआ वो स्वाभाविक था, बेटू मुझे तो ख़ुशी है, कि मेरी बिटिया अब सयानी हो रही है, और फ़िर तुम ही तो कहती थी न...कि तुम बड़ी हो के आई०ए०एस० बनोगी। तो बेटा अब तुम बड़ी हो रही हो तुम्हारे पास बहुत वक़्त नहीं हैं, मन लगा कर पढ़ाई करो, अपने सपने पूरे करो।" रश्मि व्याख्या को समझाती है।

"अच्छा-अच्छा मतलब अब मैं आपके लिए सयानी हो गई, फ़िर तो आपको कुछ दिन बाद मेरी मांग भी सूनी लगने लगेगी..! तो कर देना मेरा ब्याह। भेज देना मुझे ससुराल।" व्याख्या चिड़चिड़े अंदाज़ में रश्मि से कहती है।

"नहीं बेटा तू तो मेरे लिए तब भी बच्ची ही रहेगी, जब तेरी बच्ची मुझे नानी नानी कहने लगेगी। तु मेरे कहने का मतलब अच्छे से समझ चुकी है, फ़िर भी जान बूझकर मुझसे लड़ने का बहाना खोज रही है। अच्छा अब स्पष्ट बता कि तुझे कौन सी बात खल रही है, जिसे तू नजरंदाज नहीं कर पा रही..." रश्मि व्याख्या को पुचकारते हुए, कहती है।

"मां मैं इस बात से परेशान नहीं हूं, कि ये सब क्यूं हुआ। मुझे मलाल इस बात से है, कि जो कुछ हुआ वो स्कूल में क्यूं ? और वो भी भावार्थ के सामने...."

"तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई..? वो तो तुम्हारा बेस्टी है, न! बचपन से तुम दोनों के जीवन में जो भी नवीनता आई है, दोनों के मौजूदगी में आई है। तुम दोनों एक दूजे के अंतर्मन में बसते हो। आज तक दोनों की कोई बात एक दूजे से छिपी है, क्या? फ़िर तू इस बार क्यों परेशान है..? भावार्थ बहुत होशियार बच्चा है। वो इस बात को सामान्य तौर से लिया होगा। तू ही ख़ामख़ाह सोच सोच के परेशान हुई जा रही है।" रश्मि

उधर भावार्थ दो चार निवाला मात्र खा कर पूरा खाना छोड़ देता है, और जा कर अपने कमरे की बत्ती बुझा कर लेट जाता है। इंद्राणी के पूछने पर कि तुमने खाना क्यों नहीं खाया.... तो वह भूख ना होने का बहाना कर देता है।

"भाव बेटा उठ जा, ट्यूशन जाने का टाइम हो गया। व्याख्या भी आती होगी। तु देर करेगा तो वो चिल्लाएगी फ़िर दोनों लड़ते झगड़ते ट्यूशन पहुंचोगे।" इंद्रा भाव के कमरे की बत्ती जलाते हुए कहती है।

"मां शायद वो आज नहीं आएगी।" भावार्थ उदास मन से कहता है।

"क्यूं...व्याख्या की तबीयत तो सही है, न..! और ये शायद क्या है? तुम दोनों के मध्य शायद कब से लग गया..? वो आएगी या नहीं तुम्हें ये पक्का पता होना चाहिए न..!" इंद्रा भावार्थ पर एक साथ कई सवाल दागती हुई, पूछती है। पर भाव मौन रहता है। इंद्रा पुनः पूछती है...
"भाव तू बताएगा या व्याख्या से मैं ही सीधा बात कर लूं..?"

"मां आज इंटरवल में लंच से पहले व्याख्या हैंडवाश के लिए जा रही थी, तभी मेरी नज़र उसके स्कर्ट पर पड़ी। उसकी स्कर्ट पर दाग लगे थे, स्कर्ट थोड़ी गंदी हो चुकी थी। मैंने उसे रोक कर वापस सीट पर बैठा दिया। फ़िर मैंने विभावरी मैम को सूचित किया। वो आकर व्याख्या को अपने साथ ले गईं। व्याख्या जब आख़िरी घंटी में वापस क्लास में आई, तो बस रोती रही। मैंने उससे बात करने की बहुत कोशिश की पर उसने मुझसे कोई बात नहीं की। ऐसा लग रहा था, मेरी बात उसे सुनाई ही नहीं दे रही है। स्कूल से घर तक के पूरे रास्ते भर मैं उसके पीछे चलता रहा ताकि उसकी स्कर्ट पर किसी और की नज़र ना पड़े, और शायद इस वजह से वो और असहज महसूस कर रही थी। पर मां मैं व्याख्या कि सुरक्षा के लिए ऐसा कर था। मेरा उसको परेशान करने का कोई इरादा नहीं था।" भावार्थ बड़े भोलेपन से सम्पूर्ण वृतांत इंद्रा को सुनाता गया।

"भाव बेटा आज तुमने मुझे ख़ुश कर दिया। मुझे गर्व है, कि तुमने हमेशा कि तरह व्याख्या को सताने के बजाय आज होशियारी से उसे समझाने और सहानुभूति देने का काम किया है। सच्चे अर्थ में आज तुमने अपनी दोस्ती निभाई है। बेटा व्याख्या ने आज जिस घटना का सामना किया है, ये घटना हर लड़की के जीवन का हिस्सा है। ऐसे में इन्हें स्नेह और सहानुभूति की नितांत आवश्यकता होती है। साथ ही साथ तुम जैसे दोस्त कि भी। व्याख्या गलत नहीं थी, उसका घबराना जायज़ था। तुम उससे बात और मज़ाक करते रहना वो जल्द ही सामान्य हो जाएगी। अच्छा मैं चाय बनाती हूं, दोनों चाय पी के व्याख्या के पास चलेंगे। ठीक है..."

"लेकिन अगर वो मुझे देख के फ़िर परेशान हो गई या मुझपर गुस्सा करने लगी तो..?"

"नहीं करेगी बाबा। वरन् वो खुद सोच रही होगी कि वो तुमसे बात कैसे करे..."

इधर रश्मि व्याख्या को समझा पाने में सफल हो गई थी।
"मां मैं अब भाव से कैसे बात करूं... बहुत नजरंदाज किया है, उसे बुरा लगा होगा। सॉरी भी तो नहीं कह सकती। कमबख्त को हज़म कहां होती है...! लगेगा इतरने। मिस्टर भाव के भाव आसमान छुएंगे।" व्याख्या

"इसमें इतना सोचना क्या है, भाव को कॉल करो और बात करो। रुको मैं कॉल करती हूं..." रश्मि फ़ोन उठाती ही है, कि -

"फ़ोन पर क्यों परेशान होना बाबा, लो मैं सीधा भाव को ही ले आई हूं।" इंद्रा हाॅल में दस्तक देती हुई कहती है।

"प्यारी मां आई मिस यू। बहुत अच्छा कि आप आ गईं। मुझे आपसे मिलने का बहुत मन था।" व्याख्या इंद्रा को देखते ही इंद्रा के गले लग जाती है, और एक ही सुर में बोलती चली जाती है। इंद्रा भी व्याख्या को गले लगाती हुई, पुचकारती है।

"ओए ऐसे क्या घूर रहा है... और स्कूल से घर तक मेरे पीछे पीछे क्यों चल रहा था। कोई पहचान का देखता तो क्या सोचता... तू मेरा पीछा कर रहा है।" व्याख्या इंद्रा के गले लगे हुए कहती है।

"नहीं व्याख्या मैं तो तुम्हारे...." भावार्थ

"ओह खबरदार मुझे बिचारी समझने कि कोशिश किया तो... और चिढ़ाने कि भूल तो करना मत बच्चु। मुझे भी खूब याद है, कैसे तुने क्लास फाइव के बीच असेंबली में अपनी पैंट गीली की थी। मैं छोडूंगी नहीं।" व्याख्या भाव के बात को बीच से काटती हुई, उंगली दिखा कर कहती है।

"देखा ना आंटी। ये ऐसी लड़की है, मैं इसके आंख का आंसू पोछने जाऊं तो कहेगी, मैंने इसकी आंखें नोच ली।" भावार्थ रश्मि से कहता है।

"ओए मां के सामने ज्यादा स्मार्ट बनने की कोशिश ना कर। मैं उन्हें सब बता दूंगी।" 

"चुप कर जिराफ। तेरी ऊंची सी गर्दन में ऊंची ऊंची आवाज़ें भरी हैं। तबीयत ज़रा तंग क्या हुई, चली आई मुंह फाड़ कर लड़ने।" भावार्थ

"मुझे जिराफ बोलने से पहले खुद को झांक ले। हाइट मोबाइल सिम के टावर सी है, और अक्ल इकदम छोटी। पढ़ता मुझसे दो गुना है, और नंबर मेरा आधा पाता है। गधा नहीं तो।" 

"नाटी नहीं तो।"

"खबरदार जो तूने नाटी कहा...पूरे पांच फुट तीन इंच कि हूं।"

"कितनी कि भी हो आती तो मेरे कांधे तक ही है। सर नीचे झुका के देखना पड़ता है, तुझे। मतलब तु नाटी हुई।" 

"दोनों झगड़ा ही करते रहोगे या ट्यूशन जाने का भी विचार है? इम्तहान नज़दीक है, और तुम दोनों ने इन दिनों पढ़ाई को इतना हल्का ले रखा है, कि मुझे चिंता हो गई है। इस बार क्या होगा दोनों का..." इंद्रा, व्याख्या और भाव को हल्का फटकारते हुई कहती है।

"ओह्हो प्यारी मां, आप ख़ामख़ाह परेशान हो कर अपना डायबिटीज ना बढ़ाओ। हम पूरे क्लास में इस बार फस्ट नहीं आए न तो आप भाव को घर से निकाल देना।" व्याख्या इंद्रा के पास बैठते हुए कहती है।

"ओए झल्ली है, क्या..! तेरे करतूत कि सजा मुझे क्यों मिलेगी।"

"अरे! तू मेरा बेस्टी है न। तुझको सजा मिलेगी तो मुझे ज्यादा तकलीफ़ होगी, फ़िर मैं मेहनत से पढूंगी। ताकि अगली बार तुझको फ़िर कोई सजा ना मिले।"

"फ़िर शुरू हो गए दोनों...." इंद्रा पुनः फटकारती है।

"मां मुझमें देर नहीं है। ये व्याख्या को कहो जल्दी तैयार हो कर आए। वरना मैं आज अकेला ही निकल जाऊंगा।"

"देख ज्यादा बन मत, पांच मिनट रुक मैं तैयार हो कर आती हूं।" व्याख्या यह कहते हुए अपने कमरे की ओर बढ़ जाती है।

"वैसे तुझसे एक बात कहनी थी..." व्याख्या रोड पर चलते हुए भाव से कहती है।

"तू कुछ बकने से पहले मुझसे पूछने कब से लग गई?" भाव रोड के सामने देख कर चलते चलते, ठिठक कर हँसते हुए पूछता है।

"तेरी न यही कमी है। मैं ज़रा प्यार से बोल क्या दूं, मजाल है तुझे हज़म हो जाय..!" व्याख्या अकड़ कर कहती है।

"तेरी भी तो यही कमी है। मैं ज़रा मजे क्या ले लू, मजाल है  बर्दाश्त कर ले...!" भावार्थ

"देख भाई अब तू बीच रोड मुझसे लड़ मत। मैं बता रही हूं, छोडूंगी नहीं।" व्याख्या तनिक तन कर कहती है।

"देख व्याख्या मैंने हज़ार दफा समझाया है, पर तू है कि समझती नहीं। यार तू कुछ भी बोल लिया कर, गाली दे दिया कर...लेकिन भाई! यार प्लीज़ भाई मत बोला कर।" भाव खींज कर कहता है।

"यार मैंने भी तो कितनी बार कहा है, तुझसे...यार की जगह मुझे भाई बोलने कि आदत है। मैं भाई अपनी दोस्तों को भी कहती हूं। अब जब मैं नहीं सुधार पा रही अपनी आदत तो तू ही खुद को समझा ले न। क्यों चिढ़ता है, इतना... और कौन सा मुझे तुझे लाइन मारने वाली हूँ, जो तुझे इतनी चिढ़ होती है।" व्याख्या भाव के मनोभाव को हल्के में लेती हुई कहती है।

"ठीक है, जिराफ। मैं तेरे मुंह नहीं लग रहा। कह...क्या कहने वाली थी?" भाव व्याख्या द्वारा प्रस्तुत किए गए विवरण को स्वीकारते हुए, कहता है।

"अब क्या...अब टाइम आउट। तूने मूड खराब कर दिया।" व्याख्या इतरा कर कहती है।

"कह देना यार... तू समझती नहीं है। अगर तू कुछ कहते कहते रूक जाय तो बेचैनी सी रहती है।" भाव लगभग विनम्र भाव से कहता है।

"आज के लिए दिल से शुक्रिया। अगर तू नहीं होता तो जाने क्या होता। मैं बहुत घबरा गई थी, पर तुने मुझे बहुत हिम्मत से संभाले रखा।" व्याख्या कुछ क्षण के लिए ठहर कर, भाव की तरफ़ देखते हुए कहती है।

"ओए तू ठीक तो है..! तेरी मती चकरा तो नहीं रही है?" भाव चौक कर पूछता है।

"नहीं रे टावर, मैं पूरे होशोहवाश में तुझे शुक्रिया अदा कर रही हूं।" व्याख्या मुस्कुरा कर कहती है।

"ओह! अब यहां बॉलीवुड सीन क्रिएट मत कर। कदमों को रफ़्तार दे, हम देर हो रहे हैं।" भाव मेन रोड देख कर, व्याख्या को दाएं से बाएं करते हुए कहता है।

"सुन...तुझे गाली देने को जी चाहता है। साले कह दूं?" व्याख्या खुन्नस में कहती है।

"साली गाली दे के पूछती है... मैं गाली दे दूं?" 

"साले अपनी हीरोपंती न अपने जेब में रखा कर। क्यों किया मुझे दाएं से बाएं..?" 

"मुझे कोई शौक भी नहीं है, तेरे सामने हीरो बनने की। मुझे बाएं असहज महसूस होता है, इसलिए मैं दाएं हो जाता हूं।"

"अगर कह देगा कि, तुझे मेरी चिंता हो रही है। तो तेरी ऊंचाई नहीं दब जाएगी।"

"बिन कहे अगर तु समझ जाएगी, तो तेरी गर्दन नहीं दुबक जाएगी।
अच्छा सुन न...आज गोलगप्पे खाएंगे। क्या कहती है..."

"लड़का हो कर इतना जीभचटोरापन... उफ़ मैंने तेरे सिवा किसी को नहीं देखा। ख़ैर प्रस्ताव तो तूने सही रखा है। ठीक है खाएंगे, लेकिन जाते समय नहीं। आते समय।"

"जीरु यार वापस आते समय काफ़ी देर हो जाती है। चल ना आज जाते समय ही खा लेते हैं।"

"नहीं यार। तुझे पता है न...एक तो मेकअप में मैं लिपस्टिक के सिवा कुछ लगती नहीं, और यहां के बड़े बड़े गोलगप्पे लिपस्टिक मिटाए बगैर भीतर जाते ही नहीं। मैं तेरे बात में नहीं आऊंगी। गोलगप्पे तो हम वापसी में ही खाएंगे।" व्याख्या अपने फैसले पर अडिग रहते हुए कहती है।

"ओह! मैं तो भूल ही गया था। जाते वक़्त तेरे गोलगप्पे ना खाने का फ्लॉप रिज़न।"

"वैसे ये बता...आज तू पैसे ले कर आया है, या नहीं। क्योंकि इस बार पैसे मैं नहीं देने वाली वो भी अगले एक हफ्ते तक। पिछले महीने एक भी दिन तूने अपने पैसे के गोलगप्पे नहीं खिलाए।" व्याख्या फक्कड़ता से हिसाब किताब बतियाते हुए कहती है।

"ज़िरू वो देख अपनी क्लासमेट सॉफ्टी... अकेली जा रही है। रोक ले उसे हम दोनों का साथ मिल जाएगा।" भाव अपनी सहपाठी कोमल की ओर इशारा करके कहता है। (कोमल आंतरिक व ब्राह्य तौर पर अपने नामानुसार गोरी तथा मुलायम थी। जिसके कारण पूरा क्लास उसे सॉफ्टी कह कर पुकारता है।) 

"काफ़ी आगे है, वह। ऊपर से गाड़ी का शोर-शराबा...मेरी आवाज़ नहीं पहुंचेगी।"

"छोड़ जाने दे। वैसे सॉफ्टी का नाम 'कोमल' बिल्कुल उसकी बनावट को ध्यान में रखते हुए रखा गया है। मालूम तुझे... उसके बर्थडे पर जब बधाई देते समय मैंने उससे हाथ मिलाया तो मेरे हथेली तले इतना कोमल स्पर्श मिला, मानों मेरे हाथ में रुई की गुड़िया हो।"

"अच्छा तो जनाब कोमल स्पर्श का आनंद ले रहे हैं। आज ये बात प्यारी मां तक पहुंचाई जाएगी।"

"तु चुगली के सिवा कुछ और कर भी नहीं सकती। तेरी अक्ल तेरी लंबी सी गर्दन में अटक सी गई है।"

"ओह... मिस्टर टावर ये जो तू बार बार मेरी लंबी गर्दन का मुद्दा छेड़ बड़ा ख़ुश हो जाया करता है, न... ये सोच के कि तूने मेरा मज़ाक बना लिया... तो मैं बता दूं कि - लंबी गर्दन वाली लड़कियां हॉट एंड सेक्सी मानी जाती हैं। तो जब अगली बार से मज़ाक बनाने की बारी आए तो तू पहले ये स्वीकार लेना की मैं पावक नारी हूं।"

"पावक नारी... मतलब?"

"अरे! हॉट गर्ल बाबा। प्यारी मां हिन्दी कि प्रोफेसर हैं। इतनी अच्छी हिंदी पढ़ाती हैं, बावजूद इसके तेरी हिंदी गोल माल है। ओह्ह गॉड कोई इतना डंब कैसे हो सकता है...!"

"तू वो सब छोड़... ये सोच कि तेरी प्यारी मां को तुझे ले कर कितने बड़े बड़े सपने हैं, फ़िर क्या होगा जब उन्हें पता लगेगा कि - उनकी व्याखु का पूरा ध्यान पावक नारी बनने पर आकृष्ट है।"

"बात तो तेरी सही है, लेकिन मुद्दा यहां आ कर ठहर जा रहा है, कि उन्हें बताएगा कौन...? अब वो क्या है कि, तेरे सिवा कोई बताएगा नहीं, और तू बताने से रहा क्योंकि साप्ताहिक टेस्ट के दौरान प्रत्येक विषय में तेरी गाड़ी दस में से चार या पांच से आगे तो बढ़ी ही नहीं है। दुर्भाग्य से क्लास मॉनिटर होने के नाते तेरी सारी कॉपी मेरे पास ही है, और मेरे यार तू कभी नहीं चाहेगा की ये कॉपी प्यारी मां तक पहुंचे। क्यों ठीक अनुमान लगाया न मैंने..." व्याख्या भाव के कांधे पर हाथ रख कर चलते हुए कहती है।

"ज़िरू यार मैंने तुझे कितनी बार कह रखा है, यूं लौंडो कि तरह कांधे पर हाथ धरे तन कर ना चला कर। पता नहीं भगवान तुझे लड़की क्यों बना दिए? सारे लक्षण तो तुझमें गली के लौंडों से है। कांधे पर हाथ धरे तन कर चलना, दोनों पैरों के बीच फांसले देते हुए जींस के पैकेट में हाथ डाल कर खड़े रहना, आस पास के लोगों को हड़का कर रखना और जाने कितने गुण होंगे जिसे मैंने ध्यान नहीं दिया होगा।" भाव अपने कांधे से व्याख्या का हाथ हटाते हुए कहता है।

" ओए, तू कभी अपने अंदर भी झांक लिया कर। तुझे भी तो लड़की ही होना था। जीभ से चटोरा, ख़ासियत से डरपोक और चाल ढाल से कमसिन जो है।"

"यार मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम खामखाह खींज गई।" भाव मुस्का कर कहता है।

"ओह! तो अब आया ऊंट पहाड़ के नीचे।" व्याख्या व्यंग करती हुई कहती है।

"हम दोनों की दोस्ती कितनी तुलनात्मक है, न। तेरी जिराफ सी गर्दन। मेरी ऊंट सी उचाई। हा हा हा।" भाव व्याख्या को चाटी ( हाई फाई ) के लिए आमंत्रित करते हुए कहता है।

"आज तेरी तबीयत तंग मालूम होती है। बड़ी मज़े कि बात ख़्याल कराई तूने। चल फ़िर आज से तेरा एक और नाम 'ऊंट'।" व्याख्या भाव के चाटी का आमंत्रण स्वीकारती हुई, प्रतिउत्तर करती है।

"वैसे ये बता तूने गणित के होमवर्क पूरे तो किए हैं, न! आज कल जाने क्यों ये लॉर्ड गवर्नर बौखलाया सा रहता है। मैं तो सारे कार्य छोड़ कर पहले ट्यूशन का कार्य पूर्ण करती हूं।" व्याख्या अपने ट्यूशन टीचर शशांक सर के बदले स्वभाव व सनक मिजाज़ का व्याख्यान देती है।

" तू गणित का कार्य कभी मत पूछा कर। शशांक सर की जगह कोई ढीले स्वभाव वाले सर भी हमें गणित पढ़ाएं न तो भी मैं सबसे पहले गणित का ही कार्य पूर्ण करूंगा। मेरा पसंदीदा विषय जो है। कमबख्त जान तो ये हिंदी, अनिवार्य संस्कृति, भूगोल और इतिहास लेती है। क्या बताऊं इन विषयों में अपना हाल.... ओह!"

अब ट्यूशन सेंटर के आ जाने से दोनों के मध्य वार्तालाप पुराण को कुछ क्षण के लिए विराम मिलता है। कुछ दो घंटे के बाद ट्यूशन क्लास ख़त्म होते ही व्याख्या और भावार्थ एक संग बाहर निकलते हैं।

"यार आज तो मज़ा ही आ गया। ये लॉर्ड गवर्नर सोचता है, कि अन्य विषयों की तरह मेरी गणित भी गई गुजरी है। बड़ा अकड़ कर बुलाया मुझे ब्लैक बोर्ड पर सवाल हल करने को... और जब मैंने हल कर दिया तो उसे हज़म ही नहीं हुआ। देखा तूने कैसे भूखे भैंस जैसा मुंह बन गया, था उसका। हा हा हा...।" भावार्थ बिंदास अंदाज में हस्ते हुए कहता है।

"अपने आप को तीस मार खां बाद में समझना। पहले तमीज सीख ले...अपने ही सर को ऐसे कौन बोलता है..!"

"ओए मेरे सामने ज्यादा संस्कारी मत बन समझी। लॉर्ड गवर्नर किसने नाम रखा ? तूने। हमारी म्यूजिक टीचर ज्योति मैम का नाम लड्डू किसने रखा? तूने। और भी जाने क्या क्या खुरापात करती रहती है, और मुझे चली तमीज सिखाने।"

"अच्छा ये सब छोड़, चल गोलगप्पे खाते हैं। शाम ढलने को है, घर भी पहुंचना है।" व्याख्या भाव संग गोलगप्पे के ठेले कि ओर बढ़ते हुए कहती है।
गोलगप्पे खाने के बाद भाव व्याख्या को एक टक लगाए देखता है।

"क्या हुआ ऐसे क्यूं देख रहा है? पैसे दे के चल जल्दी, घर के लिए देर हो जाएंगे।" व्याख्या सुखी पूरी खाते हुए कहती है।

"यार वो....अऽऽऽ मैं पैसे लाना भूल गया। तू दे दे न यार।" भाव हकला कर कहता है।

"क्या.... तूने फ़िर आते वक़्त क्यों बोला कि, आज पैसे तू देगा...."

"यार मैंने कब बोला? याद कर जब तूने पैसे के लिए बोला था तो कोमल की बात छिड़ गई, तो ये बात ही कट गई थी।"

"साले तूने जान बुझ कर सॉफ्टी की बात छेड़ी, ताकि ये बात ही काट जाय।" व्याख्या अपने बस्ते के पिछले हिस्से से तीस रुपए निकाल कर गोलगप्पे वाले को देती हुई कहती है।
"आज तो मैं तुझे नहीं छोड़ने वाली...." भाव व्याख्या का गुस्सा देख दौड़ने लगता है। व्याख्या उसे दौड़ाने लगती है। दोनों के बस्ते में रखे कॉपी किताब ठक ठक कि ध्वनि उत्पन्न कर उनके दौड़ कि गति का विवरण प्रदान करते हैं।
चंडीगढ़ के चौड़ी सी सड़क पर मौजूद वाहनों के शोर-शराबों तथा जिम्मेदारियों से दबे लदे, व्यस्त व ज़िन्दगी का पीछा करते लोगों से बिल्कुल परे मुख्य सड़क के किनारे फ़ुटपाथ जो कि पैदलगाहों के लिए बने थे, उस पर आराम से ठहर कर चलते कुछ शांत लोगो के मध्य व्याख्या और भावार्थ के किलोलपूर्ण झगड़े किशोरी जीवन की अठखेलियां व ज़िन्दगी के प्रति उनके अल्हड़पन को दर्शा कर जीवन के नन्हे वास्तविकता का प्रदर्शन दे रही थी।

"प्यारी मां...प्यारी मां...बहुत जोरो कि भूख लगी है। कुछ बनाया हो तो दो न।" व्याख्या ट्यूशन क्लास से छूट कर सीधा इंद्राणी के पास आती है।

"बनाया तो है, लेकिन....सैंडविच बनाया है। पता नहीं तुम्हे अच्छा लगे ना लगे...." इंद्राणी मन ही मन मुस्काती हुई कहती है।

"वाह...सैंडविच! मुझे इंतजार नहीं हो रहा...जल्दी लाओ न प्लीज़।" व्याख्या इंद्राणी के कांधे पर हाथ धरे उसे किचन की ओर भेजती हुई कहती है।

"देख लो मां...कैसे भूखी भैंस जैसी बड़े बड़े मुंह खोल के खा रही है। अरे! मैं छीन नहीं रहा, आराम से खा ले।"

"ओए टावर, तेरी खुद कि बुद्धि तो गधे सी है, और सारे तुझे भैंस लगते हैं। जितनी बुद्धि तू मेरा मज़ाक बनाने में लगाता है, न..! उतनी पढ़ाई में लगा ले तो तेरा रिज़ल्ट बनाते वक़्त सर को लाल कलम की जरूरत ना पड़े।"

"अच्छा ये बताओ एक महीने बाद इम्तहान है। दोनों की पढ़ाई कैसी चल रही है?" इंद्राणी गोलमेज के तीसरी कुर्सी पर बैठते हुए कहती है।

"ठीक चल रही है, मां"

"हां प्यारी मां पढ़ाई ठीक चल रही है। गणित के कुछ सवाल रह गए हैं, जो इस हफ्ते पूरे हो जाएंगे, फ़िर दोहराना मात्र बाक़ी रह जाएगा।"

"मां मैं व्याख्या के घर जा रहा हूं। समय से आ जाऊंगा।" भावार्थ कांधे पर बस्ता टांग कर कमरे से बाहर निकलते हुए कहता है।

"बेटा अभी बैठ के पढ़ लो। शाम को चले जाना। अगले हफ़्ते इम्तहान है, कुछ तो ख्याल करो।" इंद्राणी रसोई से ही बोलती है।

"मां पढ़ने ही जा रहा हूं।" भावार्थ इंद्राणी का प्रतिउत्तर करते हुए, घर से बाहर कि ओर निकल जाता है।

"आंटी व्याख्या कहां है?" भाव व्याख्या के घर पहुंचते ही रश्मि से पूछता है।

"बेटा वो अपने कमरे में पढ़ाई कर रही होगी।"

भाव धीरे से व्याख्या के कमरे में प्रवेश करके उसके कमरे की बत्ती बुझा देता है। अब व्याख्या पीछे मुड़ कर देखती कि उससे पहले वह उसके आखों को अपनी हथेलियों से मूंद देता है।

"अऽऽऽ....भाव।" व्याख्या अपने दोनों हाथों से भाव के हथेली के उपरी हिस्से को छू कर बताती है।
"चल बत्ती जला और बता क्या काम है।" व्याख्या भाव के हाथों को अपने आखों पर से हटाती हुई कहती है।

"यार इतिहास और भूगोल के कुछ सवाल पल्ले नहीं पड़ रहे, समझा दे न। अगले हफ़्ते इम्तहान हैं, और ये दोनों विषय ने मेरे दिमाग का मिक्सवेज बना रखा है।"

"मुझे खुद पढ़ने के लिए वक़्त कम पड़ रहा है, और तू कह रहा कि मैं तुझे पढ़ाऊं?"

"व्याखी मेरी दोस्त पढ़ा दे यार। तू ही आखिरी उम्मीद है, जो नैया पार करा सकती है।"

"भाव कुछ खाना हो तो कहो, मैं बना लाती हूं।" रश्मि पूछती है।

"आंटी आप बस चाय बना लाओ।" 'भाव'

"और मेरे लिए कॉफी मां।" 'व्याख्या'

"कितनी अलग बात है न... तेरी थकावट चाय से मिटती है, और मेरी कॉफी से। चाय बनाम कॉफी... दोनों के नाम और स्वाद अलग अलग हैं, पर काम तो एक ही है...'थकावट' मिटाने का, हमें रफ़्तार प्रदान करने का। ठीक हमारे नाम की तरह...नाम अलग है, पर अंदर से तो लगभग एक जैसे ही हैं, और हों भी क्यों न... आख़िर तू मेरा लंगोटिया यार जो है।" व्याख्या भाव के पीठ पर धब्ब से मरती हुई कहती है।

"हां हां मैं तेरा लंगोटिया और तू मेरी घटिया यार है। यार मैंने कितनी बार कहा मुझे लंगोटिया मत बोला कर। पर तू है, कि....।" भाव खीज कर कहता है।

"क्यों? तू पैदा होते ही लक्स कोजी पहनने लगा था क्या? जो तुझे लंगोट से इतनी चिढ़ है..!" व्याख्या भाव को जानबूझ कर खीजते हुए कहती है।

"देख गुस्सा मत दिला वरना....।" भाव कहते कहते रुक जाता है।

"क्या वरना? बोल ना..." व्याख्या हड़का कर पूछती है।

"लगाऊंगा एक तमाचा खींच के, यहीं तमंचे पर डिस्को करने लग जाएगी। इस गलतफहमी में मत रहना कि मैं तुझसे डरूंगा। समझी! अब पढ़ाना शुरू कर।" भाव अनजाने में थोड़ा अकड़ जाता है।

"बाप रे, इतनी अकड़..! अब तो मैं तुझे नहीं पढ़ा रही, और हां कुछ बोलना मत क्योंकि पढ़ते वक़्त मुझे शांति पसंद है।" व्याख्या रुठे स्वर में अपनी बात कह कर अपना विषय पढ़ने में मसरूफ़ हो जाती है।

"यार देख मैंने मां से कहा है, कि मैं जल्द आ जाऊंगा। तू अब नाटक मत कर, पढ़ा दे।"

"मुझे आने वाले समय कि एक जिम्मेदार व ईमानदार नागरिक बनना है, तो तू मुझसे आज और कभी भी मित्रतावाद कि उम्मीद मत रखना। मेरे हृदय तल से आवाज़ निकली है, नहीं! तो नहीं। अब पढ़ने दे मुझे।" व्याख्या पुनः पढ़ने में मसरूफ़ हो जाती है।

"पढ़ा दे न यार..." भाव विनम्र स्वर में कहता है, पर व्याख्या कोई प्रतिउत्तर नहीं करती है।
"ठीक है, मत पढ़ा। अगर मेरा ये साल नुकसान हो जाएगा तो पढ़ना अपने दोस्त आभास के साथ। वैसे भी वो पढ़ने में तेरी तरह ही बढ़िया है। उसके साथ तू ट्यूशन भी जाना और गोलगप्पे भी खाना। मैं ठहरा तेरा क्लासमेट आज साथ हूं, कल नहीं रहूंगा। क्या फर्क पड़ता है... फ़िर तुझसे लड़ने को भी कोई नहीं रह जाएगा। तू सुकून से पढ़ना।" भाव अपना कॉपी किताब समेट कर कमरे से बाहर निकल जाता है।

"ओए...सुन!" व्याख्या हाथ बांधे कमरे के दरवाज़े पर खड़ी हो कर चिल्लाती है। भाव पीछे मुड़ कर देखता है।

"तेरी चाय ठंडी हो रही है।" व्याख्या इतना कह कर वापस अपने कमरे में अध्ययन मेज़ के सामने रखी कुर्सी पर जा बैठ जाती है। बिना कुछ कहे भाव भी अध्ययन मेज़ के दूसरी कुर्सी पर आ बैठता है, और चुप चाप चाय फूंक फूंक कर पीने लगता है।

"हां तो तुने क्या कहा था... ज़रा फ़िर से दोहराना तो।" व्याख्या कॉफी कि पहली घुट हलक से उतारती हुई पूछती है।

"मैंने क्या कहा था?"  'भाव' 

"कुछ कह रहा था न कि तू... किसी दोस्त और किसी क्लासमेट की बात कर रहा था। मैं पढ़ने में मशगूल थी, तो ध्यान नहीं दे पाई कि, क्लासमेट कौन और दोस्त कौन है। इसलिए कह रही हूँ, दुबारा से कह ....." व्याख्या अपनी लम्बी सी स्केल बाईं हाथ कि हथेली पर रगड़ती हुई कहती है।

"वो अऽऽऽ.... मैं कह रहा था कि, मैं दोस्त हूं और वो आभास क्लासमेट। तो अगर मान ले मेरा नुकसान होता है, तो तुझे अपने क्लासमेट के साथ पढ़ना पड़ेगा।" भाव अपना कथन संशोधित करता है।

"अच्छा हां कह तो तू सही रहा है। चल जो जो पुछना है, पूछ ले। सब बताउंगी लेकिन याद रहे...इम्तहान अच्छे से देना। क्योंकि मुझे स्कूल भी तेरे संग जाना है, और ट्यूशन भी, तुने इस वर्ष मेरे ही पैसे के गोलगप्पे खाएं हैं, मुझे हिसाब तो बराबर करना होगा न।" व्याख्या स्केल को यथास्थान रखती हुई कहती है।

"भाव ये बस्ते का भार न, स्कूल पहुंचने से पहले ही थका कर पसीना निकाल देता है।" व्याख्या बस्ते के भार से झुक कर चलती हुई, कहती है।

"ओह! तुझे अब बस्ता भारी लगने लगा है?" भाव व्याख्या कि ओर ताक कर कहता है।

"क्यों, तुझे नहीं लगता क्या...? वैसे मैं क्या कह रही हूं... कल से सात विषय के अनुसार चार विषय मैं ले आऊंगी, और बाक़ी के तीन तू ले आना। ऐसे भार भी कम पड़ेगा और दोनों साथ ही बैठते हैं, तो पढ़ाई भी हो जाएगी।" 

"ठीक है, कल से आधा आधा बाट कर ले आएंगे। मगर मुझे तेरी चिंता हो रही है।" 

"और वो क्यूं...?" 'व्याख्या'

"तुने कहा अब बस्ते का भार तुझसे वहन नहीं होता, और मैंने सुना है... 'जब बस्ते का बोझ कांधे पर भारी लगने लगे तो समझना दिल भारी होने की उम्र ने दस्तक दे दी है।' कहीं तू आभास कि ओर आकृष्ट..." भाव व्याख्या कि जोऱदार फिरकी लेता है।

"रूक मैं बताती हूं...." व्याख्या भाव के पीछे दौड़ने लगती है। दौड़ने के दौरान दोनों के बस्ते में रखे टिफिन, जियोमेट्री बॉक्स तथा कॉपी किताब परस्पर टकरा कर एक ध्वनि उत्पन्न करते हैं, जो ध्वनि इनके होशियार बुद्धि के पीछे छिपे बाल जीवन के उपस्थिति का परिचायक है। 

दोनों आज कल रोज़ाना किताब बाट कर स्कूल ले जाते हैं, और जब कभी कोई शिक्षक पूछते कि यह किसका किताब है? तो कभी भाव व्याख्या तो कभी व्याख्या भाव की ओर इशारा कर एक दूजे को बचा लिया करते हैं। किन्तु एक बार भूगोल के शिक्षक के अनुपस्थिति में अगले तीन चार दिन तक भूगोल कि घंटी में अध्यापन का जिम्मा खड़ूस व गंभीर स्वभाव शिक्षक विजय बहादुर सर को दे दिया जाता है। वह दो तीन दिन से नोट करते हैं, कि दो विद्यार्थी एक ही किताब परस्पर सांझा कर के पढ़ते हैं। अगले दिन वह अध्यापन के दौरान व्याख्या और भावार्थ की सीट के पास आते हैं। वह दोनों का नाम पूछने के पश्चात पूछते हैं, कि यह किताब किसकी है? 

व्याख्या व भावार्थ दोनों ही जानते हैं, कि विजय सर सज़ा दिए बगैर नहीं मानेंगे। अतः वह एक दूजे को बचाने के लिए एक संग ही बोलते हैं..."सर इसकी।"

विजय सर दोनों का झूठ पकड़ लेते हैं। लड़की होने के कारण वह व्याख्या को बैठा देते हैं, किन्तु भाव को कक्षा में सबसे आगे बुला कर हाथ ऊपर कर खड़ा कर देते हैं।

व्याख्या भाव को खड़ा देख अपने फैसले पर पछताती है। तभी...

"व्याख्या ये लो, तुम जब चाहो वापस करना और नहीं भी करोगी तो कोई दिक्कत नहीं है। मेरे पास एक एक्स्ट्रा है।" आभास ( भाव और व्याख्या का सहपाठी जिसका कक्षा में स्थान सदा व्याख्या के ही आस पास आता है। ) व्याख्या को भूगोल का किताब देते हुए कहता है। 

"धन्यवाद्! तुमने हैल्प करनी चाही, लेकिन मुझे इसकी जरूरत नहीं है। हम दोनों के पास किताब है। कल से ले आएंगे।" व्याख्या विनम्रता पूर्वक आभास का सहयोग लौटाते हुए प्रतिउत्तर करती है।

उधर हाथ ऊपर कर खड़ा भावार्थ आभास को देख कर गुर्राता है। व्याख्या भाव को चिढ़ता देख उसे शांत होने का इशारा करती है।

"अंकल प्यारी मां क्या कर रही हैं?" व्याख्या घर के बाहर बगीचे में अकेले टहल रहे प्रभात का चरणस्पर्श करती हुई पूछती है।

"बेटा जब घर में दोनों साथ रह कर भी मैं ऐसे तनहा घूमता फिरता दिखूं, बगीचे में चाय भरी प्याली के सहारे समय व्यतीत करता मिलू, तो बिन पूछे और बिन कहे समझ लेना इंदु अपने उपन्यास की दुनिया में प्रस्थान कर चुकी है।"
प्रभात व्याख्या के सर पर भरी हथेली से आशीर्वाद देते हुए मुस्कुरा कर कहते हैं।

"अंकल एक बात बताओ... आप दोनों को हफ्ते में एक दिन इतवार साथ रहने को मिलता है। इस दिन भी प्यारी मां आधा समय उपन्यास पढ़ने में व्यतीत कर देती हैं। आपको वक़्त नहीं देती हैं, तो क्या आपको उनसे शिकायत नहीं होती ?" 

"होती है, न बेटा क्यों नहीं होती है। लेकिन मैं इंदु पर अपनी मर्ज़ी तो नहीं थोप सकता न। उसे लत लग गई है, उपन्यास की। बिन पढ़े उसे चैन नहीं मिलता, और जब वह एक घंटे पढ़ लेती है, तो मन ही मन मुझे खोजती है, की मैं उसके पास आऊं, उसके हाथों से उपन्यास ले कर बंद करूं, और उसके साथ समय बिताऊं। उपन्यास खोलती खुद है, लेकिन बन्द करने का जिम्मा मन ही मन मुझे दे रखी है। अब कुछ दस मिनट और रह गए हैं। दस मिनट बाद मैं उसके हाथ से उपन्यास लेने जाऊंगा, फ़िर वो तिरछी निगाह से मुझे देखेगी, और अन्दर ही अन्दर मुस्काएगी।" प्रभात हृदय तल से मुस्कुरा कर अर्धांगिनी वृतांत का गुणगान करते हैं।

"वैसे तुम्हें इंदु से कोई ख़ास काम लगता है...।" प्रभात सवालिया ढंग में कहते हैं।

"हां अंकल, कल हिंदी का इम्तहान है न, तो मुझे प्यारी मां की जरूरत थी।" 

"ठीक-ठीक जाओ अंदर कमरे में होगी।" 

व्याख्या पहले भाव के कमरे में प्रवेश करती है। भाव अपने अध्ययन मेज़ के सामने कुर्सी पर बैठे मौन हो कर पढ़ रहा था, साथ ही आदतन कुर्सी को उसके पिछले पांव के सहारे आगे पीछे कर रहा है।

वह अपने इस बुरे आदत के कारण बहुत पहले कुर्सी पर से गिर भी चुका था, जिसके कारण उसे कमर में गहरी मोच आई थी।

"अगर तु गिरा न तो अबकी मलहम नहीं थप्पड़ लगाऊंगी।" व्याख्या कमरे के दरवाज़े पर ही खड़ी खड़ी कहती है।

भाव चौक कर व्याख्या की ओर देखता है, और कुर्सी को स्थिर कर देता है।

"मतलब तेरे ऊपर का माला खाली है, क्या? एक बार गिर चुका है, फ़िर भी मजाल है, ढीटपंती से बाज आए..!" 

"अरे! नहीं व्याखी... मैंने आदत छोड़ दी है। जाने कैसे आज दोहर गया...." भाव बात को संभालते हुए कहता है।

"मैं जा रही हूँ प्यारी मां से हिंदी पढ़ने। तुझको भी पढ़ना हो तो आ जा।" व्याख्या इंद्राणी के कमरे के तरफ़ जाती हुई, कहती है।

क्रमशः........
रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

बहुत सुन्दर 👌 👌 👌

30 दिसम्बर 2021

Jyoti

Jyoti

Badiya badiya

29 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया कहानी

27 दिसम्बर 2021

Pragya pandey

Pragya pandey

बहुत सुंदर भाग था दोस्ती का 👌👌

12 नवम्बर 2021

Shailesh singh

Shailesh singh

भाग के शुरुआत से ही एक लगाव शूरु हो गया घर मे दोस्तों को लेकर जो संवाद हुआ उससे पूरी प्री ग्रेड्यूएशन स्टुडेंट लाइफ की यादें ताज़ा हो गईं | जहां चालाकी , धोखा जैसे शब्द जीवन के शब्द कोष में नही होते हैं | उसके बाद के स्कूल की बातें आपकी रचना को काल्पनिक से वास्तविक बना रहे है 👌🙏

19 अक्टूबर 2021

आंचल सोनी 'हिया'

आंचल सोनी 'हिया'

19 अक्टूबर 2021

हम आपके वक़्त के आभारी ठहरे। कृपया यूं ही साथ बनाएं रखें।🌼🙏

Rajan Mishra

Rajan Mishra

खूबसूरत रचना है आपकी लयबद्ध तरीके से पटकथा और संवाद का समुचित तारतम्य स्थापित किया है

18 अक्टूबर 2021

आंचल सोनी 'हिया'

आंचल सोनी 'हिया'

19 अक्टूबर 2021

आदरणीय, आपका बहुत बहुत आभार। कृपया यूं ही साथ बनाये रखें।🙏🌼

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रचनाएँ
रिश्तों की व्याख्या...! (एक झलक)
5.0
रिश्तों की व्याख्या...! 'वक़्त'... आपने नाम तो सुना ही है। कितना निष्ठुर, कितना निर्दयी, कितना खुदगर्ज़ होता है। अपने ही चाल में मस्त मलंग बस चलता जाता है... चलता जाता है... चलता जाता है....। इस बेपरवाह अमूर्त प्राणी को कोई परवाह नहीं की इसके विशाल पैरों के नीचे कितने लोग दबते कुचलते जा रहे हैं... कितनी ज़िन्दगियाँ ख़त्म हो रही हैं... कितने रिश्ते टूट कर बिख़रते जा रहे हैं... कितने ही ऐसे कमज़ोर हैं, जो चलना तो चाहते हैं इसके साथ, लेक़िन उनकी किस्मत कुपोषण का शिकार है, अतः अभागे पीछे ही छूट जाते हैं। लेकिन मज़ाल है!! जो यह वक़्त पीछे पलट कर उन्हें एक नज़र देख ले। उन पर सहानुभूति जता दे... नहीं! कदापि नहीं। इतिहास हो या विज्ञान हो, चाहें वेद पुराण हो... किसी ने वक़्त के रहमदिल की पुष्टि नहीं की है। क्योंकि सभी को यह विदित था कि, इस अमूर्त प्राणी को बनाया ही बेरहमी की मिट्टी से गया है। वह मिट्टी जो पहले पाषाण था, सैकड़ों अब्द में वह कुछ कुछ मिट्टी सा बन पाया। तो वक़्त के इस खुदगर्ज़ी का हाल सुनाने आ रही है, मेरी कहानी "रिश्तों की व्याख्या" एक ऐसी कहानी जिसमे जीवन है, एहसास है, अनुभव है। जो आपको कहीं गुदगुदाएगा, कहीं रुलायेगा, कहीं रोएं खड़े कर देगा तो कहीं रोमांचित हो उठेंगे आप। वक़्त की इस बेरुखी को आप नज़दीक से देख पाएंगे। एक इंसान जन्म से ले कर मरण तक क्या खोता है.. क्या पाता है... और अंत में उसके समक्ष उसके हिस्से में क्या बच जाता है। तो पूरी कहानी से रूबरू होने के लिए बने रहिये मेरे साथ इस कहानी के हर एक भाग में। हमें ऐतबार है, इस कहानी का कोई न कोई हिस्सा आप अपने आप और अपनी ज़िंदगी से ज़रूर जोड़ पाएंगे। यक़ीनन ये कहानी आपको बहुत कुछ सिखायेगी। आपके मुरझाये रिश्तों में प्राण फूंक जायेगी... रिश्तों को निभाने का अदब बताएगी। बहुत ज़ल्द मिलूंगी एक झलक के साथ तब तक आप अपना धैर्य बनाये रखें। शुक्रिया!💐🙏 आँचल सोनी 'हिया' :-)
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