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रॉबर्ट टोर रसेल का सीपी

4 अप्रैल 2023

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कनॉट प्लेस मतलब दिल्ली की जान और शान । राजधानी की सबसे ख़ास पहचान । आम और ख़ास की पहली पसंद। कौन-सा दिल्लीवाला होगा, जिसकी इसके साथ यादें ना जुड़ी हों। कौन-सा दिल्लीवाला होगा, जिसे इधर आना अच्छा ना लगता हो। कनॉट प्लेस में घूमना, शॉपिंग करना, किसी रेस्तरां में जाकर कॉफ़ी पीना या ढाबे पर खड़े होकर छोले-कुलचे खाने का सुख और दिल्लीवाला नहीं जान सकता। यह अकेली ऐसी जगह है, जहां आप अकारण और बिना अपने किसी दोस्त या क़रीबी के साथ भी घूम सकते हैं। इधर आना आपको एक नई एनर्जी देता है। आप कुछ पलों के लिए अपने रोज़मर्रा के तनावों को भूल से जाते हैं। दरअसल कनॉट प्लेस के आर्किटेक्ट रॉबर्ट टोर रसेल (1888-1972) ने इसका डिज़ाइन सन् 1929 में तैयार करके अपने बॉस और नई दिल्ली के चीफ़ आर्किटेक्ट एडविन लुटियंस को सौंप दिया था। इसके बाद इसका निर्माण शुरू हुआ और यह सन् 1933 तक लगभग बनकर तैयार हो गया। ब्रिटिश सरकार नई राजधानी की अन्य ख़ास इमारतों के साथ इसका निर्माण भी शुरू करना चाह रही थी, पर पहले विश्व युद्ध के शुरू होने के कारण बात आगे नहीं बढ़ सकी। तब ब्रिटिश सरकार कनॉट प्लेस के निर्माण पर बहुत अधिक निवेश करने की स्थिति में भी नहीं थी। ख़ैर, कनॉट प्लेस का एक बार निर्माण पूरा हुआ, तो यहां की दुकानों में ग्राहक आने लगे। दिल्ली के सन् 1911 में देश की राजधानी बनने के बाद यहां गोरों ने एक शानदार शॉपिंग सेंटर बनाने का फ़ैसला लिया था। वे चाहते थे कि यहां कुछ पिक्चर हॉल भी हों, ताकि वे वहां जाकर फ़िल्मों का लुत्फ़ भी उठा सकें। इन सब वजहों के चलते कनॉट प्लेस सामने आया। रॉबर्ट टोर रसेल से पहले कनॉट प्लेस का डिज़ाइन तैयार करने की ज़िम्मेदारी एडविन लुटियंस ने प्रख्यात आर्किटेक्ट डब्ल्यू.एच. निकोल्स को दी थी। लेकिन उन्हें निजी कारणों के चलते वापस इंग्लैंड जाना पड़ा। तब यह दायित्व आया रॉबर्ट टोर रसेल के कंधों पर तब तक रॉबर्ट टोर रसेल तीन मूर्ति (पहले फ़्लैग स्टाफ़ हाउस) का डिज़ाइन तैयार करके आर्किटेक्ट के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे। उनकी रचनाधर्मिता को सब मान रहे थे। उन्होंने आगे चलकर सफ़दरजंग एयरपोर्ट, वेस्टर्न कोर्ट, ईस्टर्न कोर्ट, लोदी रोड के सरकारी फ़्लैट वग़ैरह के भी डिज़ाइन तैयार किए थे। रॉबर्ट टोर रसेल ने ही 1, 3, 5, 7 रेस कोर्स रोड (अब लोक कल्याण मार्ग) के बंगलों के भी डिज़ाइन बनाए। राजीव गांधी ने सन् 1984 में प्रधानमंत्री बनने के बाद इन सब बंगलों को एक-एक करके प्रधानमंत्री निवास में तब्दील कर दिया था। रॉबर्ट टोर रसेल अप्रतिम आर्किटेक्ट थे। उनकी डिज़ाइन की हुई इमारतों में विविधता रहती थी। वह सीपीडब्लूडी यानी केन्द्रीय लोक निर्माण विभाग के चीफ़ आर्किटेक्ट थे। वह भारत आने से पहले ब्रिटिश सरकार की सेवा में थे। रॉबर्ट टोर रसेल के पिता एस. बी. रसेल (1864- 1955) भी आर्किटेक्ट थे इसलिए माना जा सकता है कि पिता के पेशे से प्रभावित होकर रॉबर्ट टोर रसेल ने भी आर्किटेक्ट बनने के संबंध में सोचा होगा। वह सन् 1919 में भारत आए थे। उनके लिए सन् 1929 से सन् 1933 का समय बेहद ख़ास रहा। इस दौरान उन्होंने तीन मूर्ति भवन, वेस्टर्न-ईस्टर्न कोर्ट वग़ैरह के भी डिज़ाइन बनाए। भारत में लगभग बाइस वर्षों तक अतुलनीय काम करने के बाद सन् 1941 में सर- कारी सेवा से रिटायर होने के बाद वह वापस अपने देश लौट गए। उनके जाने के बाद उनके डिज़ाइन पर लोदी रोड के डबल स्टोरी सरकारी घर बनाए गए। यह 1946 की बात है। इसे दिल्ली में गोरों की तरफ़ से बनाई गई अंतिम आवासीय कॉलोनी माना जाता है। इसे अब भी राज- धानी के सरकारी बाबुओं की सबसे पसंदीदा जगहों में से एक माना जाता है।

रॉबर्ट टोर रसेल ब्रिटेन वापस लौटने के बाद ब्रिटिश सरकार के हाउसिंग मामलों के सलाहकार बने और 1954 में पूरी तरह से रिटायर हो गए। उन्होंने शेष जीवन अपनी पत्नी इथेल हैच के साथ गुज़ारा। उनका एक पुत्र और पुत्री भी थे। रॉबर्ट टोर रसेल का 1972 में निधन हो गया। 

डिज़ाइन ग्रेगोरियन स्टाइल का 

कनॉट प्लेस का डिज़ाइन ग्रेगोरियन स्टाइल का है। इसमें डिज़ाइन सिमेट्रिकल यानी एक-सा रखा जाता है। आप नोटिस कर सकते हैं कि सारे कनॉट प्लेस का डिज़ाइन एक समान है। कनॉट प्लेस पूरी तरह से स्लेटी रंग का है। अपनी भव्यता और उम्दा डिज़ाइन के चलते कनॉट प्लेस के सामने अब भी कोई शॉपिंग सेंटर खड़ा नहीं होता। गोलाकार स्तंभों पर खड़ा कनॉट प्लेस अपूर्व और खूबसूरत है। इधर शोरूमों के आगे घूमने वालों के लिए पर्याप्त स्पेस मिलता है। एक बात साफ़ कर दें कि साल 1960 के बाद कनॉट प्लेस में जनपथ, शंकर मार्केट, मोहन सिंह प्लेस, पालिका बाज़ार वग़ैरह बने। ज़ाहिर है, इनका रॉबर्ट टोर रसेल से कोई लेना-देना नहीं था। उन्होंने कुछ प्राइवेट भवनों को भी डिज़ाइन किया था। इनमें पटौदी स्थित पटौदी हाउस भी है। यहां आजकल सैफ़ अली ख़ान-करीना कपूर बीच-बीच में सपरिवार रहने के लिए आते रहते हैं। दरअसल सैफ़ अली ख़ान के दादा इफ़्तिखार अली ख़ान के आग्रह पर रॉबर्ट टोर रसेल ने पटौदी हाउस को डिज़ाइन किया था। कहा जाता है कि भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान इफ़्तिखार अली ख़ान पटौदी कनॉट प्लेस के आकर्षक डिज़ाइन से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने रॉबर्ट टोर रसेल को पटौदी हाउस को डिज़ाइन करने का काम सौंप दिया। दरअसल उस समय भारत में काम कर रहे ब्रिटिश आर्किटेक्ट फ्रीलांसिंग भी करते थे। पटौदी सीनियर कनॉट प्लेस को बचपन से ही देख रहे होंगे। उनका जन्म दरियागंज के पटौदी हाउस में 16 मार्च 1910 को हुआ था। एक पटौदी हाउस कनॉट प्लेस के पास अशोक रोड के पीछे भी था। अब उसके अवशेष ही दिखाई देते हैं। तो ज़ाहिर है कि इफ़्तिखार अली ख़ान पटौदी ने भी कनॉट प्लेस को कई बार नापा होगा। भारत के प्रख्यात आर्किटेक्ट दीपक मेहता कहते हैं कि रॉबर्ट टोर रसेल के काम में विविधता उन्हें बाक़ियों से अलहदा खड़ा कर देती है। वह कनॉट प्लेस जैसे शॉपिंग सेंटर से लेकर तीन मूर्ति भवन तथा सफ़दरजंग एयरपोर्ट जैसी अलग-अलग इमारतों के डिज़ाइन बनाते हैं। ये सब एक-दूसरे से अलग हैं। इस तरह उनके काम की रेंज को समझा जा सकता है। अपने निर्माण के दशकों गुज़र जाने के बाद भी इन इमारतों को देखकर यह नहीं लगता कि ये पुरानी हो गई हैं। इनमें अब भी ताज़गी है। ये सभी समकालीन लगती हैं। 

किसके नाम पर कनॉट प्लेस 

कनॉट प्लेस का नाम किस शख़्स के नाम पर रखा गया? यह सवाल बार-बार पूछा जाता है। दरअसल प्रिंस आर्थर, ड्यूक ऑफ़ कनॉट का सम्राट जॉर्ज पंचम से क़रीबी रिश्ता था। अगर अंग्रेज़ी रिश्ते के हिसाब से समझाया जाए, तो वह सम्राट जॉर्ज पंचम के अंकल थे। सम्राट जॉर्ज पंचम ने तीसरे दिल्ली दरबार में घोषणा की थी कि दिल्ली भारत की नई राजधानी होगी। उन्हीं की एक आदमकद प्रतिमा इंडिया गेट की छतरी पर लगी थी। उसके स्थान पर वहां अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आदमकद मूरत स्थापित हो चुकी है। बहरहाल, दरबार कोरोनेशन पार्क में 11 दिसंबर 1911 को आयोजित हुआ था। जब इंडिया गेट का 10 फ़रवरी 1921 को उद्घाटन हुआ, तब प्रिंस आर्थर, ड्यूक ऑफ़ कनॉट मौजूद थे। उन्होंने अपनी उसी यात्रा के दौरान संसद भवन की भी आधारशिला 12 फ़रवरी 1921 को रखी थी।

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रचनाएँ
दिल्ली का पहला प्यार कनॉट प्लेस
5.0
कनॉट प्लेस से मेरा पहला साक्षात्कार संभवतः 1970 के आसपास हुआ था। मतलब मुझे तब से इसकी यादें हैं। इसके आसपास दशकों तक रहना, पढ़ना, नौकरी करना, घूमना, फ़िल्में देखना वग़ैरह जिंदगी का हिस्सा रहा। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जब तक जिंदगी है, तब तक कनॉट प्लेस से आत्मीय संबंध बने रहने का भरोसा भी है। इसने आनंद और सुख के भरपूर पल दिए हैं। आप चाहें, तो कनॉट प्लेस को एक 'हैप्पी प्लेस' भी कह सकते हैं। यहां आकर सबको एक तरह का सुकून मिलता है। आकर फिर जाने का मन ही नहीं करता। जाने के बाद फिर से यहां आने की इच्छा बनी रहती है। कोई बात तो है इसमें यों ही तो आपके दिल के इतने क़रीब कोई जगह नहीं हो जाती। जैसा मैंने ऊपर लिखा कि कनॉट प्लेस को लेकर पहली स्मृति संभवतः सन् 1970 के आसपास की है। मैं, मां और पापा रीगल बिल्डिंग से होते हुए जनपथ की तरफ़ पैदल जा रहे थे। हमने जनपथ जाने से पहले खादी के शोरूम में कुछ शॉपिंग की थी। जनपथ की तरफ़ जाते हुए जैसे ही हमने संसद मार्ग वाली सड़क को क्रॉस किया, तो मां ने पापाजी से बैंक ऑफ़ बड़ौदा बिल्डिंग की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा था, सुनो जी, यह कौन-सी बिल्डिंग बन रही है? बहुत सुंदर है। पापाजी ने मां को बताया था कि 'यह बैंक ऑफ बड़ौदा की बिल्डिंग है।' सच में उस दौर में बैंक ऑफ़ बड़ौदा को कनॉट प्लेस की सबसे भव्य और बेहतरीन बिल्डिंग माना जाता था। वक़्त का खेल देखिए कि मैंने उसी बि-ल्डिंग में साल 2009 में मुंबई के सोमाया ग्रुप के सोमाया पब्लिकेशंस को एडिटर के तौर पर ज्वॉइन किया। वहां जब पहली बार ज्वॉइन करने के लिए जा रहा था, तब मां और पापाजी के बीच का वह संवाद याद आ रहा था। तब तक दोनो इस संसार से जा चुके थे इसलिए उन्हें मैं बता भी नहीं सकता था कि मेरा दफ़्तर उसी बिल्डिंग में होगा, जिसके बारे में उन्होंने एक बार चर्चा की थी। मैंने कनॉट प्लेस के बारे में लिखते हुए तथ्यों को बार-बार चेक किया। यह पत्रकार के रूप में सीखा था कि तथ्यों के साथ कहीं कोई समझौता ना हो। यदि फिर भी किताब में कहीं कोई कमी या भूल रह गई हो, तो इसके लिए सिर्फ मैं ज़िम्मेदार हूं।

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