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कभी माधोगंज था कनॉट प्लेस

4 अप्रैल 2023

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क्या आप मानेंगे कि आजकल जहां कनॉट प्लेस तथा संसद मार्ग आबाद हैं, वहां लगभग सौ साल पहले तक माधोगंज, जयसिंगपुरा और राजा का बाज़ार नाम के गांव थे। इन गांवों के बाशिंदों को हटाकर कनॉट प्लेस, संसद मार्ग, जनपथ आदि बने। उन गांववालों को करोल बाग के आसपास बसाया गया था। राजा का बाज़ार नाम का एक मोहल्ला अब भी मौजूद है। अब इसे राजा बाज़ार कहते हैं। यह शिवाजी स्टे- जियम से सटा है। यहां एक प्राचीन जैन मंदिर भी है। इंद्रप्रस्थ कॉलेज की मैनेजिंग कमेटी के अध्यक्ष लाला नारायण प्रसाद बताते थे कि कनॉट प्लेस तथा इसके आसपास के इलाक़ों में कीकर के घने पेड़ हुआ करते थे। जंगली सूअर और हिरण घूमते थे। उन्होंने एक बालक के रूप में कनॉट प्लेस को बनते हुए देखा था। उनके परिवार ने ही राजधानी में लड़कियों का पहला स्कूल (इन्द्रप्रस्थ हिन्दू कन्या विद्यालय) तथा कॉलेज (इंद्रप्रस्थ कॉलेज) स्थापित किया था। लाला नारायण प्रसाद की छोटी बहन थीं स्वाधीनता सेनानी और मशहूर सामाजिक कार्यकर्ता सरला शर्मा। रॉबर्ट टोर रसेल ने कनॉट प्लेस का डिज़ाइन तैयार करते वक़्त सुनिश्चित किया कि यहां के दुकानदार अपने शोरूम के ऊपर ही रहें इसलिए उन्होंने पहली मंज़िल में फ़्लैट के लिए जगह रखी। संभवतः यह देश का पहला डबल स्टोरी शॉपिंग सेंटर था। उनके सामने एक प्रस्ताव यह आया कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन वहां बनाया जाए, जहां अब सेंट्रल पार्क है, पर वह नहीं माने। यह बात अलग है कि दिल्ली मेट्रो के दौर में सेंट्रल पार्क के नीचे राजीव चौक मेट्रो स्टेशन बना। रॉबर्ट टोर रसेल की सिफ़ारिश पर बाद में पहाड़गंज में नई दिल्ली स्टेशन बना। वह मानते थे कि किसी भी बाज़ार के बीचोबीच पार्क होना ज़रूरी है, जहां शॉपिंग के बाद लोग कुछ लम्हे सुकून से बिता सकें। उन्होंने कनॉट प्लेस को इनर सर्किल, मिडिल सर्किल और आउटर सर्किल में बांटा। कहां गए आई, ओ, जे ब्लॉक? आप अपने किसी काम के सिलसिले में या शॉपिंग करने के लिए कनॉट प्लेस बार-बार आते-जाते हैं। आप राजधानी के इस सबसे महत्त्वपूर्ण प्रतीक के चप्पे-चप्पे से वाकिफ़ भी है, पर आपको यहां आई, ओ और जे ब्लॉक क्यों नहीं मिलते? कहां गए ये तीनों ब्लॉक? क्या कभी आपने सोचा? कनॉट प्लेस में शुरू में बारह ब्लॉक का निर्माण हुआ था। अंदर के वृत्त यानी सर्किल में छह ब्लॉक 'ए' से 'एफ़' और तथा बाहरी वृत्त में 'जी' से 'एन' ब्लॉक बने। इनमें आई, जे, ओ ब्लॉक नहीं रखे गए। ये ब्लॉक क्यों नहीं बने? इस सवाल का जवाब कोई नहीं देता। ज़ाहिर है, कोई बात तो होगी कि ये तीन ब्लॉक नहीं बने। सन् 1933 में यहां बारह ब्लॉक बन कर तैयार हो गए। इसके बाद यहां 'पी' ब्लॉक बना, जहां कभी बेहद लोकप्रिय मद्रास होटल होता था। उसके बाद सिंधिया हाउस, जनपथ, जहां एयर इंडिया का दफ़्तर था या भीमजी झावेरी का शोरूम है और रीगल बिल्डिंग का निर्माण हुआ। नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के पूर्व निदेशक मदन थपलियाल कहते हैं कि कनॉट प्लेस के सारे हिस्से बनकर तैयार हुए, तो 1935 में नई दिल्ली ट्रेडर्स एसोसिएशन बनी। यह कनॉट प्लेस के दुकानदारों और दफ़्तरों को चलाने वालों का संगठन है।

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रचनाएँ
दिल्ली का पहला प्यार कनॉट प्लेस
5.0
कनॉट प्लेस से मेरा पहला साक्षात्कार संभवतः 1970 के आसपास हुआ था। मतलब मुझे तब से इसकी यादें हैं। इसके आसपास दशकों तक रहना, पढ़ना, नौकरी करना, घूमना, फ़िल्में देखना वग़ैरह जिंदगी का हिस्सा रहा। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जब तक जिंदगी है, तब तक कनॉट प्लेस से आत्मीय संबंध बने रहने का भरोसा भी है। इसने आनंद और सुख के भरपूर पल दिए हैं। आप चाहें, तो कनॉट प्लेस को एक 'हैप्पी प्लेस' भी कह सकते हैं। यहां आकर सबको एक तरह का सुकून मिलता है। आकर फिर जाने का मन ही नहीं करता। जाने के बाद फिर से यहां आने की इच्छा बनी रहती है। कोई बात तो है इसमें यों ही तो आपके दिल के इतने क़रीब कोई जगह नहीं हो जाती। जैसा मैंने ऊपर लिखा कि कनॉट प्लेस को लेकर पहली स्मृति संभवतः सन् 1970 के आसपास की है। मैं, मां और पापा रीगल बिल्डिंग से होते हुए जनपथ की तरफ़ पैदल जा रहे थे। हमने जनपथ जाने से पहले खादी के शोरूम में कुछ शॉपिंग की थी। जनपथ की तरफ़ जाते हुए जैसे ही हमने संसद मार्ग वाली सड़क को क्रॉस किया, तो मां ने पापाजी से बैंक ऑफ़ बड़ौदा बिल्डिंग की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा था, सुनो जी, यह कौन-सी बिल्डिंग बन रही है? बहुत सुंदर है। पापाजी ने मां को बताया था कि 'यह बैंक ऑफ बड़ौदा की बिल्डिंग है।' सच में उस दौर में बैंक ऑफ़ बड़ौदा को कनॉट प्लेस की सबसे भव्य और बेहतरीन बिल्डिंग माना जाता था। वक़्त का खेल देखिए कि मैंने उसी बि-ल्डिंग में साल 2009 में मुंबई के सोमाया ग्रुप के सोमाया पब्लिकेशंस को एडिटर के तौर पर ज्वॉइन किया। वहां जब पहली बार ज्वॉइन करने के लिए जा रहा था, तब मां और पापाजी के बीच का वह संवाद याद आ रहा था। तब तक दोनो इस संसार से जा चुके थे इसलिए उन्हें मैं बता भी नहीं सकता था कि मेरा दफ़्तर उसी बिल्डिंग में होगा, जिसके बारे में उन्होंने एक बार चर्चा की थी। मैंने कनॉट प्लेस के बारे में लिखते हुए तथ्यों को बार-बार चेक किया। यह पत्रकार के रूप में सीखा था कि तथ्यों के साथ कहीं कोई समझौता ना हो। यदि फिर भी किताब में कहीं कोई कमी या भूल रह गई हो, तो इसके लिए सिर्फ मैं ज़िम्मेदार हूं।

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