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दिल्ली का पहला प्यार कनॉट प्लेस

विवेक शुक्ला

2 अध्याय
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1 पाठक
4 अप्रैल 2023 को पूर्ण की गई
ISBN : 9798889359678
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कनॉट प्लेस से मेरा पहला साक्षात्कार संभवतः 1970 के आसपास हुआ था। मतलब मुझे तब से इसकी यादें हैं। इसके आसपास दशकों तक रहना, पढ़ना, नौकरी करना, घूमना, फ़िल्में देखना वग़ैरह जिंदगी का हिस्सा रहा। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। जब तक जिंदगी है, तब तक कनॉट प्लेस से आत्मीय संबंध बने रहने का भरोसा भी है। इसने आनंद और सुख के भरपूर पल दिए हैं। आप चाहें, तो कनॉट प्लेस को एक 'हैप्पी प्लेस' भी कह सकते हैं। यहां आकर सबको एक तरह का सुकून मिलता है। आकर फिर जाने का मन ही नहीं करता। जाने के बाद फिर से यहां आने की इच्छा बनी रहती है। कोई बात तो है इसमें यों ही तो आपके दिल के इतने क़रीब कोई जगह नहीं हो जाती। जैसा मैंने ऊपर लिखा कि कनॉट प्लेस को लेकर पहली स्मृति संभवतः सन् 1970 के आसपास की है। मैं, मां और पापा रीगल बिल्डिंग से होते हुए जनपथ की तरफ़ पैदल जा रहे थे। हमने जनपथ जाने से पहले खादी के शोरूम में कुछ शॉपिंग की थी। जनपथ की तरफ़ जाते हुए जैसे ही हमने संसद मार्ग वाली सड़क को क्रॉस किया, तो मां ने पापाजी से बैंक ऑफ़ बड़ौदा बिल्डिंग की तरफ़ इशारा करते हुए पूछा था, सुनो जी, यह कौन-सी बिल्डिंग बन रही है? बहुत सुंदर है। पापाजी ने मां को बताया था कि 'यह बैंक ऑफ बड़ौदा की बिल्डिंग है।' सच में उस दौर में बैंक ऑफ़ बड़ौदा को कनॉट प्लेस की सबसे भव्य और बेहतरीन बिल्डिंग माना जाता था। वक़्त का खेल देखिए कि मैंने उसी बि-ल्डिंग में साल 2009 में मुंबई के सोमाया ग्रुप के सोमाया पब्लिकेशंस को एडिटर के तौर पर ज्वॉइन किया। वहां जब पहली बार ज्वॉइन करने के लिए जा रहा था, तब मां और पापाजी के बीच का वह संवाद याद आ रहा था। तब तक दोनो इस संसार से जा चुके थे इसलिए उन्हें मैं बता भी नहीं सकता था कि मेरा दफ़्तर उसी बिल्डिंग में होगा, जिसके बारे में उन्होंने एक बार चर्चा की थी। मैंने कनॉट प्लेस के बारे में लिखते हुए तथ्यों को बार-बार चेक किया। यह पत्रकार के रूप में सीखा था कि तथ्यों के साथ कहीं कोई समझौता ना हो। यदि फिर भी किताब में कहीं कोई कमी या भूल रह गई हो, तो इसके लिए सिर्फ मैं ज़िम्मेदार हूं। 

dillii kaa phlaa pyaar knoNtt ples

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विवेक शुक्ला एक मनमोहक कहानी बुनते हैं जो आपको दिल्ली के पहले प्यार, कनॉट प्लेस के दिल में ले जाती है। भावनाओं और अनुभवों की एक उदासीन यात्रा, यह पुस्तक एक युग के सार को पकड़ती है और मंत्रमुग्ध कर देती है।

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