मुझे मालुम है
ले वैठी होगी,
किसी नदी के किनारे
नाव जीवन की।
प्रतिक्षा होगी वस
जीवन साथी की,
आते ही उनके नाव
चल देगी....!
अनचाही मंजिल
की ओर...!
शांत वहती नदी के
किनारे वैठा हो मेरा अस्तित्व
प्रत्यक्षारत संध्या की...!
कुछ और हो गहरा आकाश
दिशा हो तरुणायी
तव वैंठू नाव में...
चल दूं कहीं ,विना दिशा के!
तव चमके शशि...!
मैं अपने अस्तित्व को उसी
मंद्र शीतल आलोकित सरिता में
लिए चलूं...
कहीं दूर, विना दिशा के !
वस खो जांऊ कहीं उन्ही
शांत वहती हुई सरिता में
सदा-सदा के लिए...
चमकता रहे चन्द्रमा ,
हमेशा हमेशा के लिए
मेरे जीवन के अस्तित्व में!
- यू.एस.बरी,,✍️