बात 2009 की है भावी पीढ़ी से सम्बंधित और विचारणीय भी
मैं उन दिनों जिला फरुखाबाद के एक प्रतिष्ठित डिग्री कोलेज में भूगोल विभागाध्यक्ष के पद पर कार्य कर रही थी। यह कॉलेज श्री क्षत्रपति साहू जी विश्व विद्यालय से सम्बद्ध था , इस विष विद्यालय में स्नातक में तीन विषयों का ची करना होता है जिसमे अंतिम वर्ष में कोई एक विषय छोड़ देना होता है | एक लड़की स्नातक तृतीय वर्ष की छात्रा थी, कीर्ति वर्मा, (काल्पनिक नाम ) पता नहीं मुझसे बहुत स्नेह रखती थी मुझे पता ही नही चला कि वो मेरे साथ काफी घनिष्ठ हो चुकी थी ; मुझे भी मेरी छात्राओं से बेहद लगाव रहता है। उसने स्नातक तृतीय वर्ष में मेरा विषय छोड़ दिया तो जब भी वो मुझसे मिलने आती अमिन उसे टाल दिया करती कई बार मैं उससे नाराजगी व्यक्त कर देती कि अब तुमने मेरा विषय छोड़ दिया है तो मैं क्यों तुम्हरी बात सुनु ......जबकि वो अक्सर मुझसे मिलने के बहाने खोजती रहती और मैं टालती रहती। मुझे तो बस यही लगता कि वो मुझे मनाने की कोशिश कर रही है। मेरी गल्ती यह भी थी कि मैं जानती हती कि वो मुझसे अपना व्यक्तिगत समस्या का संधान भी ले लेती थी जिसकी उर ईउन दिनों मेरा ध्यान ही नही गया | ये भी सच है मुझे उसने अपने अफेयर के विषय में भी बहुत संक्षिप्त बताया था । मैंने सोचा दो तीन माह बाद कॉलेज खत्म है, सब ठीक हो जाएगा।
एक दिन मैं वहां बाजार गई हुई थी तो उसकी छोटी बहिन अचानक मुझे मार्ग में मिली और घर ले गई, उसने मुझे अपने परिवार से मिलवाया । मुझे काफी अच्छा लगा पर वहाँ भी कीर्ति वर्मायही कहती रही; मैम मुझे आपसे बहुत जरुरी बात करनी है कुछ सामान बनाया है आपके लिए आप एक बार देख लो। मुझे बच्चों से इस तरह मंहगे उपहार लेना कभी उचित न लगा अतः मैं टालती रही।उन दिनों वो कभी बेडशीट कभी कुछ लेकर मेरे पास आती और कहती, मुझे कुछ कहना है।
स्नातक अंतिम वर्ष में प्रायः बच्चे भावुक हो जाते हैं यही सोचकर उसे समझा बुझा देती । एक दिन उसने अपनी माँ से फोन करवाया कि उसके घर में भतीजे का जन्मदिन है मैं आ जाऊं सभी को ज्ञात था कि मैं इस तरह की गतिविधियों में कोई शिरकत नही पसंद करती थी लेकिन उसने मेरे सामने वाली भाभी जी को भी मना लिया और मुझे वहां जाना पड़ा, उस दिन मुझे याद है वो ऊपर छत के एक कोने में लेकर गई और मुझसे कहा .......... “मैडम अगर आप मेरी बात नही सुनेगी तो एक दिन अभीत पछतावा होगा| ” उसकी बात में इतनी गहराई लगी कि मैंने उस दिन निश्चित किया हर हाल में उससे बात करुँगी मैंने उस एकल बात करने का वचन दिया और अपने निवास पर आ गई |
सारी रात मैं उसकी कहीं हुई बातों पर विचार करती रही और मुझे लगा कि नहीं वो सीरियस है मुझे उसकी बात कल हर हाल में सुननी है .मुझे लगा कुछ अवश्य ही गम्भीर है, दो दिन फ्री पीरियड में उसे बिठाया, उसने कुछ पारिवारिक समस्याओं का ज़िक्र किया मुझे लगता रहा कि वो कुछ और कहना चाहती है पर कदाचित संकोच वश कह नही पा रही है | मैं चाहती थी कि वो स्वयं ही कहे लेकिन जब ऐसा नही हुआ तो मैंने उसे फ़ोर्स किया कि या तो तू वास्विकता से अवगत करा वरना कोई लाभ नही तेरे साथ बात करने का, और तीसरे दिन जब उसने सब बताने का वायदा किया उस दिन वो कॉलेज ही नहीं आई।
नीचे से दिनेश (काल्पनिक नाम है ) दौड़ता हुआ आया ..........प्रतिभा मैं आपके लिए फोन
मैंने कहा ....आई
ऑफिस में आई तो देखा कि बड़े बाबु जी चेहरा झुकाये बैठे थे, मैंने पूछा कौन है
उन्होंने कहा आप ही बात कर लेयो
फोन उठाया, "हैलो प्रतिभा मेम आ गईं क्या "
मैंने कहा जी कहिये मैं प्रतिभा ही बोल रही हूँ ,
हैलो मैम, मैं कीर्ति वर्मा की माँ बोल रही हूँ..... कीर्ति वर्मा ने सुसाइड कर लिया,आपके लिए एक पत्र है..
मैं सन्न बस इतना ही बोल सकी
कैसे कब......
ऑफिस में सन्नाटा छाया हुआ था .............
मेरा मन ,मस्तिष्क सब शून्य
प्राचार्य जी को बताया
उन्होंने कहा, कॉलेज की तरफ से शोक पत्र लेकर जाना
गृह विज्ञान विभाग की छात्राएं मुझे आकर कहने लगी
मैम कीर्ति वर्मा ने क्या किया ? क्यों किया?
और वो प्रायश्चित मैं आज तक भूल ही न पाई। काश मैंने तब उसे और उसकी बातों को और गम्भीरता से लिया होता।अब कुछ भी नही बचा था आज भी मेरे मन से यह बात निकलती ही नहीं है ..................फिर क्या था
स्टाफ के उसके साथ घर गई, सबसे मिली
किसी का उत्तर नहीं दे पा रही थी सबने पूछा पत्र में क्या है क्योंकि वो पत्र चारों तरफ से पैक था जो उसके बिस्तर से मिला, जिस पर लिखा था
उस पत्र को उसकी माँ से ही खुलवाया और उसकी बहिन से पढवाया .......मैम माफ़ कर देना, अब बहुत देर हो चुकी है । मैंने होम साइंस अलमारी में आपके लिए बेडशीट कढ़ाई की है, कुशन कवर और रुमाल भी हैं। आपकी टेबिल का कवर भी स्वीकार कर लेना।
मैं सबकुछ बताना चाहती थी पहले दिन से ही डरती थी इसलिए भूगोल छोड़ दिया फिर भी आपसे छिपाना नहीं चाहती थी । छोटी का ध्यान रखिए।
अलविदा
अब इससे आगे क्या लिखूँ समझ परे हूँ । आज उसी नाम की एक लड़की मेरे साथ मेरे कक्ष में रहती है सुबह शाम जब भी उसके साथ होती हूँ मुझे लगता कि काश मैंने समय पर उसे सुन लिया होता।
कोई जातिवाद इंसानियत से ऊपर नहीं होती। जीवन अनमोल है हमारा नैतिक दायित्व है कि यदि बच्चे से कोई गलती हुई तो वो अक्षम्य नहीं। मेरा दुर्भाग्य कि अध्यापन छोड़ने के तीन माह बाद जब मैं पंजाब में रहने लगी तो एक दिन फिर उनकी माँ का फोन आया।
मैम कनिका ने आपको फोन किया
मैं घबराई........... नहीं तो सब ठीक है
उधर से; नहीं कुछ भी ठीक नहीं .... वो घर से गायब है
और फिर तीन चार दिन बाद मुझे मेरी अन्य छात्रा ने बताया कि उसका शव कानपुर सेंट्रल रेलवे क्रॉसिंग पर कटा हुआ मिला।
कई वर्षों बाद ज्ञात हुआ कि वो शायद लव जिहाद का शिकार बन गई ........पर सच्चाई ??
मुझे नहीं ज्ञात क्या कारण रहा होगा पर कहीं न कहीं हम सभी इसके लिए उत्तरदायी हैं नई पीढ़ी को सम्भालने की जिम्मेदारी हम निभा पा रहे हैं??