नंगल डैम रेलवे स्टेशन
रेलवे स्टेशन पहुचते ही टिकट निकाला तो होश फाख्ता पर्स तो बैग में है नहीं ओह !ये क्या?
"सर प्लीज़ क्या ट्रैन 5 मिनट ट्रैन रुक सकती है हड़बड़ाते हुए मैंने गार्ड से कहा "
सर, मैं फोन करती हूँ मेरा पर्स घर पर रह गया...............
गार्ड ने कहा "टी .टी .से पूछो हम नहीं रोक सकते"
मैं दौड़ती हुई सी.... टी. टी. से कहने लगी,
"सर प्लीज़ ट्रैन 5 मिनट रुकवा दीजिये मेरा टिकट पर्स सब कमरे पर छूट गया "
टी टी महोदय ने कहा,
"जाना बहुत् जरूरी है तो टिकट बाहर से ले लो 9 :40 हो रहा है 9:45 पर ट्रेन चल पड़ेगी"
वहां से दौड़ती हुई बाहर टिकट विंडो पर पहुंची जहां टिकट देने वाला एक पच्चीस तीस वर्ष का युवा था मैंने उसे कहा। "सर क्या बिना रुपयों के टिकट देंगे"
उसने बड़ी धीरता से सांत्वना देते हुए पूछा,
"क्या हुआ मैडम आप घबराइए नहीं "
मैंने उसे बताया कि मेरा फोन,टिकट और रूपए सारे गलती से टेबिल पर रखे छूट गए हैं।
उसने मुझसे गांव का नाम पूछा,
मैंने कहा मानकपुर
उसने सुना और बड़ी ही सहजता से मुझे अपना फोन दिया देते हुए कहा कि आप फोन कर लीजिए, आने में पांच मिनट ही लगेंगे।
मैंने कहा,
"शुक्रिया भाई मैं फोन कर रही हूँ"
ओह फोन भी ---इंगेज जा रहा है
तभी उसने कहा "आराम से बात कर लो कोई बात नहीं।टिकट मैं दे रहा हूँ"
रोने ही लगी 5 जुलाई 2013को किसी केस में गवाही थी ,जाना भी अनिवार्य क्या करूँ सोच रही थी तभी.....
"ये लो टिकट और फोन भी अपने पास रखो जब बात कर लो तब दे देना , विंडो वाले नौजवान ने कहा
फ़िलहाल मुझे बताओ कहाँ तक जाना है
मैंने कहा अलीगढ़ का टिकट चाहिए
मैंने झटपट नम्बर मिलाया मेरा पर्स कमरे में मेज पर रह गया ट्रैन का समय है जल्दी पहुंचा दो (" रेलवे स्टेशन से माणक पुर तीन किमी. लगभग है |)
……"आया "सामने से संक्षिप्त सा उत्तर मिला
तभी उस नौजवान ने कहा आप स्टेशन मास्टर से मिल लो।
मैंने पूछा कौन हैं वो
उसने कहा आप रंजन साब से मिल लो, वो ही गाड़ी 5 मिनट लेट कर सकते हैं।
प्लेटफार्म पर मैंने स्टेशन मास्टर राजीव रंजन को खोजकर उनसे अनुरोध किया "सर प्लीज़ 5 मिनट इन्तज़ार कीजिये मेरा पर्स लेकर अंकल आ रहे उसी में टिकट फोन और रूपये है "
उन्होंने बड़ी संजीदगी से कहा,
सॉरी ट्रैन नहीं रुक सकती 2 मिनट में चल पड़ेगी, हमें ट्रेन को रोकने के लिए यह कारण पर्याप्त नहीं।
मैं उन्हें....."सर प्लीज़" कहती रह गई
सर, मैं फोन करती हूँ मेरा पर्स घर पर रह गया..............
मैंने कहा जी बहुत
"जी मेरी गवाही है" सर प्लीज़
उन्होंने कहा "ठीक है देख लो"
इतने में सीटी बजी और पटरियों पर ट्रेन पहियों की आवाज ..... घिरर्र
ट्रैन चल पड़ी....
तभी अचानक बहुत ही तीव्र गति से किसी ने मुझे धक्का देते हुए हाथ मै कुछ पकड़ाया और कहा
"लो पकड़ो ट्रैन"
अरे यह तो राजीव रंजन स्टेशन मास्टर ही थे जिन्होने ने मुझे कहा…………
जाओ और घर तक पहुंच जाओगी
दौड़ते हुए चलती हुई ट्रेन से
S 2 बोगी पर खड़े टी टी ने हाथ पकड़कर झटके से ऊपर खींच लिया
बड़े ही सहजता से कहा
"लो जी आज आप हमारे वी आई पी मेहमान है
हम टिकट भी नहीं पूछेंगे "
मैंने महसूस किया कि धक्का देते हुए स्टेशन मास्टर ने हाथ में कुछ कागज भी पकड़ाए है । हाथ खोला तो आंसू निकल पड़े 100 के 5 नोट।
तभी आर ए सी सीट पर बैठे फौजी जवान ने
लो पानी पियो मैडम टिकट है न् गन्तव्य तक पहुंच जाना। आप मेरे फोन से फोन कर दीजिए ट्रेन मिल गई है ताकि कोई परेशान न हो; कहा और अपना फोन थमा दिया मुझे..
घर वाले परेशान न हों स्तब्ध थी मैं ।क्या ये सच है?
इतने में आनंदपुर साहिब स्टेशन आ गया मुझे सीट मिल चुकी थी, लेटे हुए सोच रही थी कि अभी भी मानवता विश्वास जीवित है।
गाजियाबाद से अगलि सुबह मैंने कालका हावड़ा पकड़ी और उसमें भी मैं सबसे ऊपर वाली बिर्थ पर चदकर सो गई अभी खुर्जा निकला ही होगा इस ट्रेन में भी टीटीआय औसने पूछा .....मैडम आपका टिकट
मैंने बड़ी ही सहजता से दिखा दिया
उसने हंसकर कहा .................आप इस बोगी में क्यों ये तो जनरल बोगी अक टिकट है
मैंने कहा यह तिक्त भी आपके ही डिपार्टमेंट की मेहरबानी से सम्भव हुआ है वर्ना मेरे पास तो आज कुछ भी नहीं होता |
उसने हंसकर कहा ठीक है मैडम सो जाइए
अगले दिन दोपहर …………
मेरे घर पहंचने से पूर्व समान भूलने की बात ने सभी को चिंता में डाल हुआ था। सभी परेशान है रहे थे कि न रूपए न फोन न जाने क्या हुआ होगा??
आंगन में पिता श्री कुर्सी पर बैठे मां से यही चर्चा कर रहे थे कि अचानक मैंने दहलीज में प्रवेश किया।उन्हें तो विश्वास ही नहीं हो रहा था पर नेक कर्म का कोई फल है शायद यही सोच लिया।
मां और पिता जी दोनों ने मुझे देखा खुशी और हैरत से गले लगा लिया।
अगले दिन मैंने अपना कम निबटाया , और कोर्औट परिसर में वकील साहब के समक्रष इस घटना उल्लेख किया कि संसार में अभोई भी विश्वास जीवित है आप किसी की मदद करके देखिये |
लगभग दस दिनों के बाद जब मैं वापिस मानकपुर आई तो 12 जुलाई को आते हुए रूपये वापस करने रेलवे के ऑफिस में जाना ही था मैंने वहां उपस्थित स्टाफ से पूछा कि स्टेशन मास्टर ................. ………….
वो सभी लोग हंसने लगेऔर बोले आइये बैठिये ..............अब बताइए कि उस दिन क्या हुआ था
मैंने फिर पूछा सर ............
किसी ने जबाब दिया सर तो छुट्टी पर हैं .........तभी एक पुलिस सरदार जी आये और बोले मैडम उस दिन तो कमल ही हो गया
वहां सभी ने मुझे पहचान लिया था कि रेलवे प्लेटफार्म पर तीन जुलाई को क्या हुआ ............
सभी कहें लगे मैडम चाय पीजिये और हमें डिटेल में बताइए
हमारे रंजन सर हीरो हैं | मैंने उन सभी को सारी बात बताई वो सभी मिलकर रंजन जी के लिए क्लेपिंग कर रहे थे फिर उन्होंने रंजन सर को फोन मिलाया .............
और उन्हें मेरे आने के बारे में बताया .........
सर ने कोई उत्सुकता नहीं जताई बस इतना कहा कि दे जाओ किसी को
मैंने कहा सर मैं आपसे मिलकर आपका धान्यवाद करना चाहती हूँ |
किसका ,आगे से उत्तर मिला।(राजीव रंजन )
जी आपने ये मदद की।
अरे मैडम कोई किसी की मदद नहीं करता।ये परमात्मा किसी से कुछ भी करवा लेता है उसी के नियंत्रण में ही ऐसे काम होते है,उसका शुक्रिया करो घर जाओ
मैंने कहा सर अगर मैं झूठ बो रही होती तो ………
राजीव रंजन ने कहा …….अरे मैडम हम भी घरपरिवार वाले है | पांच सौ रूपये में हम कंगाल नहीं हो गये लेकिन आपका समय निकल गया इसी भरोसे ये दुनिया चली हुई है
मैं हैरान होकर उसे देखती रह गई बाहर विंडो पर भैया शुक्रिया ये लो टिकट के रूपये………….
उसने बताया कि कोई बुजुर्ग अंकल आये थे रूपये दे गये हैं | साथ ही उसने हंसते हुए कहा "दीदी हम घर से बाहर रहते है हमारी भी बाहिन के साथ कभी हो सकता है फोन भी ले जा सकते थे आप।
आप ये बताईए आपका काम हो गया।
मैं सन्न कौन कहता है भलाई का समय नही है।
हे ईश्वर शुक्रिया ।राजीव रंजन जी हर्ष (टिकट वाले भाई का नाम भूली हूँ ) ईश्वर आपको उन्नति दर उन्नति प्रदान करे